'सामान्य स्थिति' का खोखला दावा (आवरण कथा)

संतु दास

 |  01 May 2025 |   70
Culttoday

22 अप्रैल, 2025... बैसरान घाटी, पहलगाम। हरे-भरे मैदान, पर्यटकों की चहल-पहल और हंसी-खुशी का माहौल अचानक चीखों, गोलियों और मातम में बदल गया। आतंकवादियों ने मासूम नागरिकों को निशाना बनाया, उनकी धार्मिक पहचान पूछी और फिर बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। यह एक नरसंहार था, जिसने न केवल कश्मीर की वादियों को शोक की चादर में लपेट दिया, बल्कि 'सामान्य स्थिति' के उस खोखले दावे की भी पोल खोल दी, जिसे सरकार और मीडिया पिछले कई सालों से लगातार प्रचारित कर रहे थे।
पहलगाम हमला एक ऐसी त्रासदी है, जिसने कश्मीर में व्याप्त असुरक्षा, भय और अनिश्चितता को उजागर कर दिया है। यह हमला सिर्फ कुछ आतंकवादियों द्वारा की गई हिंसा का परिणाम नहीं है, बल्कि यह सरकारी तंत्र की विफलता, सुरक्षा में चूक और कश्मीर की जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेने का नतीजा है।
पिछले कुछ सालों में सरकार और मीडिया ने मिलकर कश्मीर में 'सामान्य स्थिति' बहाल होने का एक झूठा नैरेटिव तैयार किया है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या, विकास परियोजनाओं की शुरुआत और शांतिपूर्ण माहौल की तस्वीरें दिखाकर यह दावा किया गया कि कश्मीर में अब सब ठीक है। लेकिन पहलगाम हमला इस झूठे नैरेटिव पर एक करारा तमाचा है।
यह हमला यह सिद्ध करता है कि कश्मीर में आतंकवाद अभी भी मौजूद है, अलगाववादी भावनाएं अभी भी सुलग रही हैं और आम नागरिक सुरक्षित नहीं हैं। 'सामान्य स्थिति' का दावा सिर्फ एक मृगतृष्णा है, जो वास्तविकता से कोसों दूर है।
प्रसिद्ध पत्रकार अनुराधा भसीन के अनुसार, 'कश्मीर में सामान्य स्थिति महज एक मृगतृष्णा साबित हुई है। कश्मीरी लोग पर्यटकों, तीर्थयात्रियों और आम नागरिकों पर हमलों का समर्थन नहीं करते। पहलगाम की घटना एक नरसंहार है। ऐसे कृत्य न केवल मानवता के खिलाफ हैं, बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डालते हैं।'
पूर्व सैन्य अधिकारी प्रवीण साहनी का भी मानना है कि कश्मीर में सामान्य स्थिति का दावा गलत है। उन्होंने कहा, 'यह गलत है। वास्तविकता यह है कि कश्मीर एक युद्धक्षेत्र है।' उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा बलों की भारी तैनाती, नागरिकों पर प्रतिबंध और गैर-कश्मीरियों को डोमिसाइल प्रमाणपत्र जारी करने से जनसंख्या संतुलन बदलने का खतरा है।
पहलगाम हमला सुरक्षा में एक बड़ी चूक का परिणाम है। यह सवाल उठना लाज़मी है कि इतने संवेदनशील इलाके में, जहां पर्यटकों की भारी भीड़ मौजूद थी, सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम क्यों नहीं किए गए थे? आतंकवादियों को बिना किसी रोक-टोक के हमला करने और भागने का मौका कैसे मिल गया?
यह किसकी जिम्मेदारी थी कि पर्यटकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए? क्या खुफिया एजेंसियों ने खतरे की जानकारी दी थी? अगर दी थी, तो उस पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
श्रीनगर की अधिवक्ता अर्शी जुहर ने सरकार से जवाबदेही की मांग करते हुए कहा, 'सबसे पहले जवाबदेही सरकार की बनती है। कोई आगे आकर यह नहीं कह रहा कि सुरक्षा में चूक हुई है या हमने हालात को हल्के में लिया। गृहमंत्री अमित शाह और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को जिम्मेदारी लेनी चाहिए।'
सुरक्षा में चूक सिर्फ एक लापरवाही का मामला नहीं है, बल्कि यह सरकारी तंत्र की विफलता और कश्मीर की जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेने का नतीजा है।
कश्मीर में सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और जवाबदेही की कमी से ग्रस्त है। सरकारी अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के बजाय राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने में लगे रहते हैं।
यह जवाबदेही की कमी ही है, जिसके कारण पहलगाम जैसे हमलों को अंजाम देना आसान हो जाता है। आतंकवादियों को स्थानीय अधिकारियों और पुलिस की मिलीभगत से ही मदद मिलती है।
सरकार को इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और सरकारी अधिकारियों को जवाबदेह बनाना चाहिए। पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना, कश्मीर में शांति और विकास की उम्मीद करना बेमानी है।
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता और अनिश्चितता और बढ़ गई है। सरकार ने दावा किया था कि इस फैसले से कश्मीर में विकास और शांति आएगी, लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है।
अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं कमजोर हो गई हैं, राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया है और आम नागरिकों पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। इससे लोगों में सरकार के प्रति गुस्सा और अविश्वास बढ़ गया है।
प्रवीण साहनी का मानना है कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद चीन का प्रभाव कश्मीर में और बढ़ गया है। उन्होंने कहा, 'चीन युद्ध नहीं चाहता, लेकिन अगस्त 2019 से वह पाकिस्तान की संप्रभुता के समर्थन में खड़ा है।' कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता और अनिश्चितता को दूर करने के लिए सरकार को लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं बहाल करनी चाहिए, राजनीतिक कार्यकर्ताओं को रिहा करना चाहिए और आम नागरिकों पर लगे प्रतिबंधों को हटाना चाहिए।
पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देने में हमेशा से शामिल रहा है। पहलगाम हमला भी पाकिस्तान की उसी नापाक साजिश का हिस्सा है। पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवादियों को प्रशिक्षण, हथियार और वित्तीय सहायता प्रदान करता है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई कश्मीर में अलगाववादी भावनाओं को भड़काने और अस्थिरता पैदा करने का प्रयास करती है।
भारत को पाकिस्तान के साथ सख्ती से निपटना चाहिए और उसे आतंकवाद का समर्थन बंद करने के लिए मजबूर करना चाहिए। भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को बेनकाब करना चाहिए और उस पर दबाव बनाना चाहिए कि वह कश्मीर में दखल देना बंद करे। चीन का प्रभाव कश्मीर में लगातार बढ़ रहा है। चीन पाकिस्तान का एक करीबी सहयोगी है और वह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता है।
चीन कश्मीर में अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) के माध्यम से पाकिस्तान के साथ संपर्क बढ़ा रहा है। चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए एक नया खतरा है, क्योंकि इससे पाकिस्तान को और अधिक समर्थन और आत्मविश्वास मिलेगा।
भारत को चीन के साथ अपनी सीमाओं की सुरक्षा मजबूत करनी चाहिए और चीन को कश्मीर में दखल देने से रोकना चाहिए। पहलगाम हमला भारत के लिए एक वेक-अप कॉल है। यह हमला हमें बताता है कि कश्मीर में 'सामान्य स्थिति' का दावा झूठा है और सुरक्षा, शासन और राजनीतिक स्थिरता के क्षेत्र में कई चुनौतियां मौजूद हैं।
भारत को कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद को खत्म करने के लिए एक व्यापक और बहुआयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। इस रणनीति में निम्नलिखित उपाय शामिल होने चाहिए:

  •  सुरक्षा: कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करना, आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना और सीमा पार से होने वाली घुसपैठ को रोकना। 
  •  शासन: भ्रष्टाचार को खत्म करना, सरकारी अधिकारियों को जवाबदेह बनाना, पारदर्शिता को बढ़ावा देना और आम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना।
  • राजनीतिक स्थिरता: लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं बहाल करना, राजनीतिक कार्यकर्ताओं को रिहा करना, आम नागरिकों पर लगे प्रतिबंधों को हटाना और सभी हितधारकों के साथ बातचीत शुरू करना।
  • आर्थिक विकास: कश्मीर में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, रोजगार के अवसर पैदा करना और गरीबी को कम करना।
  • सामाजिक सद्भाव: विभिन्न समुदायों के बीच सामाजिक सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा देना, युवाओं को कट्टरपंथी विचारधाराओं से दूर रखना और शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से सकारात्मक बदलाव लाना।
  • अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति: पाकिस्तान पर आतंकवाद का समर्थन बंद करने के लिए दबाव बनाना, चीन को कश्मीर में दखल देने से रोकना और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का समर्थन हासिल करना।

पहलगाम हमले के बाद अब यह ज़रूरी है कि भारत  सरकार सच्चाई का सामना करे, अपनी गलतियों से सीखे और कश्मीर में स्थायी शांति और स्थिरता लाने के लिए एक नई शुरुआत करे।
 


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