दिल्ली ब्लास्टः बारूदी त्रिकोण
संदीप कुमार
| 01 Dec 2025 |
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10 नवंबर, 2025 की शाम जब दिल्ली का आसमान धुंध और ऐतिहासिक लाल किले की रोशनी में नहाया हुआ था, ठीक उसी वक्त एक भीषण विस्फोट ने न केवल राजधानी की धरती को हिला दिया, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के विमर्श को एक नए और खौफनाक अध्याय में धकेल दिया। लाल किला, जो भारत की संप्रभुता और शक्ति का प्रतीक है, उसके साये में हुआ यह हमला महज एक विस्फोट नहीं था; यह भारतीय लोकतंत्र और उसकी सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक खुली चुनौती थी। हुंडई आई20 कार के परखच्चे उड़ने के साथ ही 14 निर्दोष जानें चली गईं, लेकिन धुएं के गुबार के छठने के बाद जो सच सामने आया, वह बारूद की गंध से भी ज्यादा जहरीला था।
यह हमला किसी अनपढ़, भटके हुए युवा द्वारा नहीं, बल्कि समाज के सबसे प्रतिष्ठित पेशे से जुड़े लोगों—'डॉक्टरों'—द्वारा रचा गया था। स्टेथोस्कोप थामने वाले हाथ जब डेटोनेटर थाम लें, तो समझ लेना चाहिए कि आतंकवाद ने अपनी रणनीति बदल ली है। इसे सुरक्षा एजेंसियों ने 'व्हाइट कॉलर टेरर' का नाम दिया है। लेकिन इस घटना की परतें जैसे-जैसे खुल रही हैं, जांच की सुई सिर्फ पाकिस्तान पर नहीं रुक रही, बल्कि तुर्की के अंकारा से लेकर बांग्लादेश की सीमाओं तक एक बड़े अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र का नक्शा खींच रही है।
डॉक्टर मॉड्यूल: 'धरती के भगवान' या मौत के सौदागर?
इस त्रासदी का सबसे विचलित करने वाला पहलू 'फरीदाबाद डॉक्टर मॉड्यूल' है। जांच में मुख्य आरोपी डॉ. उमर उन-नबी (जिसका शरीर विस्फोट में चिथड़े हो गया) और उसके सहयोगियों—डॉ. मुजम्मिल, डॉ. शाहीन शाहिद (मैडम सर्जन)—की भूमिका ने यह साबित कर दिया है कि कट्टरपंथ अब मदरसों की चारदीवारी से निकलकर मेडिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के वातानुकूलित कमरों तक पहुंच गया है।
अल-फलाह यूनिवर्सिटी, फरीदाबाद, जो शिक्षा का केंद्र होनी चाहिए थी, वह इस आतंकी नेटवर्क का 'नर्व सेंटर' बन गई। यह बेहद चिंताजनक है कि डॉ. उमर, जिसे एक मरीज की मौत के कारण कश्मीर के अनंतनाग अस्पताल से निकाला गया था, वह दिल्ली-एनसीआर में विस्फोटक से भरी कार लेकर 11 घंटे तक बेखौफ घूमता रहा। यह तथ्य हमारी जमीनी खुफिया तंत्र और तकनीकी निगरानी की एक गंभीर चूक की ओर इशारा करता है।
डॉक्टरों का आतंकी नेटवर्क में शामिल होना जैश-ए-मोहम्मद की एक सोची-समझी 'टैलेंट हंट' रणनीति का हिस्सा है। डॉक्टर होने के नाते उन्हें रसायनों (जैसे अमोनियम नाइट्रेट) तक आसान पहुंच मिलती है, समाज में उन पर शक कम किया जाता है, और वे अपनी कमाई से संगठन की फंडिंग भी कर सकते हैं। डॉ. शाहीन शाहिद का 'मैडम सर्जन' के रूप में महिला विंग का नेतृत्व करना यह दर्शाता है कि जेंडर और प्रोफेशन अब आतंकी प्रोफाइलिंग के पुराने मानकों को ध्वस्त कर चुके हैं।
'उकासा' का जाल: तुर्की कनेक्शन और एर्दोगान का तुर्क विजन
लाल किला ब्लास्ट की जांच में जो सबसे विस्फोटक खुलासा हुआ है, वह है—तुर्की कनेक्शन। 'उकासा' (अरबी में जिसका अर्थ मकड़ी होता है) नाम का हैंडलर अंकारा में बैठकर इस पूरे नेटवर्क को निर्देशित कर रहा था। जांच एजेंसियों के अनुसार, आरोपी 2022 में तुर्की गए थे, जहां उनकी मुलाकात विदेशी आकाओं से हुई।
तुर्की का इस षड्यंत्र में शामिल होना भारत के लिए महज एक आपराधिक मामला नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक चेतावनी है। पिछले कुछ वर्षों में, रेचब तैयब एर्दोगान के नेतृत्व में तुर्की ने खुद को इस्लामी दुनिया का नया खलीफा बनाने की महत्वाकांक्षा पाली है। कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का मुखर समर्थन और अब भारतीय जमीन पर आतंकी हमलों के लिए लॉजिस्टिक्स और फाइनेंशियल हब के रूप में अंकारा का इस्तेमाल, भारत-तुर्की संबंधों में एक 'टर्निंग पॉइंट' है।
तुर्की का इस्तेमाल 'रिमोट कंट्रोल' की तरह किया जा रहा है। 'सेशन' जैसे हाई-एनक्रिप्शन ऐप्स के जरिए अंकारा से फरीदाबाद तक निर्देश भेजे जा रहे थे। यह साबित करता है कि तुर्की अब केवल पाकिस्तान का कूटनीतिक मित्र नहीं है, बल्कि भारत के खिलाफ हाइब्रिड वॉरफेयर में एक सक्रिय भागीदार बन चुका है। भारत को अब यह स्वीकार करना होगा कि पश्चिम एशिया में उसका एक नया और सक्षम दुश्मन खड़ा हो रहा है, जो नाटो का सदस्य होने के कवच का फायदा उठाता है।
पाकिस्तान: पुराना दुश्मन, नई चालें
भले ही हैंडलर तुर्की में बैठा हो, लेकिन आतंकी विचारधारा और बारूद की गंध का स्रोत अभी भी पाकिस्तान ही है। 68 संदिग्ध मोबाइल नंबर, जो विस्फोट के वक्त लाल किला और पार्किंग क्षेत्र में सक्रिय थे, उनके तार पाकिस्तान और तुर्की के 'आईपी क्लस्टर्स' से जुड़े मिले हैं। 'सर्वर हॉपिंग' और 'वर्चुअल नंबरों' का इस्तेमाल कर जैश-ए-मोहम्मद ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि डिजिटल पदचिह्न मिटा दिए जाएं।
पोस्टर में 'ऑपरेशन सिंदूर' के जवाब और 6 दिसंबर (बाबरी विध्वंस की बरसी) के आसपास बड़े हमले की योजना ('डी-6 मिशन') यह बताती है कि पाकिस्तान का 'डीप स्टेट' (आईएसआई और सेना) भारत की आंतरिक स्थिरता को भंग करने के लिए अब सांप्रदायिक प्रतीकों का सहारा ले रहा है। यह हमला भारत की आर्थिक प्रगति और वैश्विक छवि को धूमिल करने का एक हताश प्रयास है।
बांग्लादेश: तीसरा मोर्चा और 'एनसर्कलमेंट' का खतरा
लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर सैफुल्लाह सैफ का यह दावा कि 'बांग्लादेश को लॉन्चपैड के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा,' भारत के लिए खतरे की घंटी है। बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और कट्टरपंथी तत्वों के उभार का फायदा उठाकर पाकिस्तान वहां अपनी जड़ें जमा रहा है।
अगर हम तुर्की-पाकिस्तान-बांग्लादेश के इस गठजोड़ को एक साथ देखें, तो यह भारत की 'चिकन नेक' (सिलीगुड़ी कारिडोर) और पूर्वी सीमाओं के लिए एक गंभीर रणनीतिक खतरा है। इसे भारत की 'घेराबंदी' की रणनीति कहा जा सकता है। पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम में तुर्की का डिजिटल और लॉजिस्टिक समर्थन, और पूर्व में बांग्लादेश का संभावित लॉन्चपैड—यह त्रिकोण भारत की सुरक्षा एजेंसियों के लिए 'थ्री-फ्रंट वॉर' जैसी स्थिति पैदा कर सकता है, जो पारंपरिक युद्ध न होकर 'आतंक और विद्रोह' का युद्ध होगा।
तकनीकी युद्ध और खुफिया विफलता: एक आत्मविश्लेषण
इस हमले ने यह भी उजागर किया है कि हम 'फिफ्थ जनरेशन वॉरफेयर' के दौर में जी रहे हैं। टेलीग्राम, सिग्नल और सेशन जैसे ऐप्स के जरिए आतंकी संचार को पकड़ना मुश्किल हो रहा है। 'उकासा' जैसे हैंडलर तुर्की में बैठकर भारत में एक डॉक्टर को आत्मघाती हमलावर बना देते हैं, और हमारी एजेंसियां अंधेरे में रहती हैं। 300 किलो विस्फोटक अभी भी गायब है। एक कार विस्फोटक लेकर राजधानी के सबसे संवेदनशील इलाकों (इंडिया गेट, कर्तव्य पथ) से गुजरती है और पकड़ी नहीं जाती। यह 'बीट पुलिसिंग' और 'इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस' के बीच के तालमेल की कमी को दर्शाता है। यह प्रश्न उठना लाजमी है कि क्या हम तकनीकी रूप से इतने सक्षम हैं कि 'सर्वर हॉपिंग' और 'डेटा स्पाइक्स' को रियल टाइम में डिकोड कर सकें?
भावनात्मक और सामाजिक प्रभाव: विश्वास का संकट
एक भारतीय नागरिक के दृष्टिकोण से, यह घटना दिल को तोड़ने वाली है। डॉक्टर, जिसे समाज 'मसीहा' मानता है, अगर वही जान लेने पर आमादा हो जाए, तो आम आदमी किस पर भरोसा करेगा? यह केवल सुरक्षा का संकट नहीं है, यह एक सामाजिक विश्वास का संकट है। जब उच्च शिक्षित वर्ग—इंजीनियर, डॉक्टर, प्रोफेसर—कट्टरपंथ की राह चुनते हैं, तो यह उस तर्क को खारिज करता है कि गरीबी और अशिक्षा ही आतंकवाद की जड़ है। यह एक वैचारिक वायरस है, जो अब बौद्धिक वर्ग को संक्रमित कर रहा है।
भारत की प्रतिक्रिया और कूटनीतिक चुनौतियां
इस घटना के बाद भारत की विदेश नीति और सुरक्षा नीति में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। भारत को तुर्की के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करनी होगी। राजनयिक स्तर पर यह संदेश देना होगा कि अंकारा का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए होना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। भारत को तुर्की के विरोधियों (जैसे ग्रीस, साइप्रस और आर्मेनिया) के साथ रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करना चाहिए। वहीं सर्जिकल स्ट्राइक या एयर स्ट्राइक के अलावा, भारत को पाकिस्तान को कूटनीतिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग करने की नीति जारी रखनी होगी। अब समय आ गया है कि 'साइबर और स्पेस' डोमेन में पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक क्षमता विकसित की जाए। साथ ही साथ ढाका में सरकार चाहे किसी की भी हो, भारत को वहां के सुरक्षा तंत्र के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि बांग्लादेश की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ न हो।
अब इस घटना के बाद अल-फलाह यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों की गहन जांच आवश्यक है। शैक्षणिक संस्थानों में कट्टरपंथ की घुसपैठ को रोकने के लिए सख्त निगरानी तंत्र बनाना होगा। साथ ही, गायब 300 किलो विस्फोटक को ढूंढना अब राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए, वरना खतरा अभी टला नहीं है।
मकड़जाल काटने के लिए अपनाना होगा 'चाणक्य नीति'
लाल किले की दीवारों पर लगे धुएं के निशान शायद बारिश में धुल जाएं, लेकिन इस हमले ने जो सवाल खड़े किए हैं, वे आसानी से नहीं मिटेंगे। डॉ. उमर उन-नबी की कार का विस्फोट सिर्फ आरडीएक्स का धमाका नहीं था; यह उस भ्रम का भी विस्फोट था कि हम सुरक्षित हैं।
आज भारत एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहां उसे अपनी सीमाओं की रक्षा के साथ-साथ अपने समाज के भीतर पनप रहे 'स्लीपर सेल्स' से भी लड़ना है। तुर्की से लेकर पाकिस्तान तक फैले इस मकड़जाल को काटने के लिए भारत को 'चाणक्य नीति' और आधुनिक तकनीक का एक अभूतपूर्व मिश्रण अपनाना होगा। यह लड़ाई अब केवल सैनिकों की नहीं, बल्कि हर जागरूक नागरिक, खुफिया अधिकारी और नीति निर्माता की है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लाल किले की प्राचीर से गूंजने वाली आवाज हमेशा 'जय हिंद' की हो, न कि किसी आतंकी विस्फोट की।
यह समय भावुक होने का भी है और कठोर होने का भी। हमारे 14 नागरिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। यह रक्तपात भारत को झुका नहीं सकता, बल्कि यह हमारे संकल्प को और फौलादी बनाएगा—आतंक के हर उस हाथ को तोड़ने के लिए, चाहे वह रावलपिंडी में हो, अंकारा में हो, या हमारे अपने पड़ोस के किसी क्लिनिक में।