आखिर इस हवा की दवा क्या है?

संदीप कुमार

 |  01 Dec 2025 |   5
Culttoday

पृथ्वी पर सबसे जहरीली हवा हमारी राजधानी की है जिसके बाद आने वाला शहर उससे तकरीबन तीन गुने पीछे है। नई दिल्ली की हवा में ज़हर घुला है', हर साल अक्तूबर से फरवरी तक यह खबर मीडिया में तकरीबन रोज रिपीट होती है। इसकी निरंतरता प्रमाण है कि हम इस जहर के प्रति उदासीन हैं। डब्ल्यूएचओ ने साल 2016 के लिए दुनिया के सबसे 15 प्रदूषित शहरों की सूची जारी की तो भारत के 14 शहर उसमें शामिल थे। नीले की बजाए भूरे, धूसर रंग के आसमान वाली दिल्ली अव्वल थी, आज 2025 में भी हमने अपनी यह जगह बरकरार रखी है।
 संसार में हमारी राजधानी की हवा का कोई मुकाबला नहीं। सर्दियों में इसकी हवा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से दस गुना और राष्ट्रीय मानक से तीन गुना खराब बनी रहती है। राजधानी में एयर क्वालिटी इंडेक्स 500 के पार और उसके कुछ इलाके बहुधा 700 भी पार कर जाते हैं। कभी 177 प्रदूषित देशों में हमारा स्थान 155वां था,फिर 180 में 176 आज 183 देशों में 177वां। जनमानस में यह धारण बलवती है कि दिल्ली की अथवा बड़े औद्योगिक शहरों की हवा ही ज़हरीली है या फिर कभी कभार समाचार में आने वाले कुछ छोटे बड़े शहरों की हवा के अलावा बाकी दुरुस्त है, पर ऐसा नहीं है।
 राजस्थान, महाराष्ट्र, उतर प्रदेश, हरियाणा सहित दक्षिणी राज्यों का भी शायद ही कोई शहर एयर क्वालिटी इंडेक्स पर 100 सूचकांक से नीचे नजर आए, यह खराब की श्रेणी में ही है, पर 500 से 700 के मुकाबले संतोषजनक। देश ज्यादातर शहरी   200 से 400 के बीच बेहद खराब और जानलेवा हवा के बीच जी रहे होते हैं वे यह सोच भी नहीं सकते कि नार्वे के ओस्लो का औसत एक्यूआई मान महज 1 से 2 तक, ऑटो इंडस्ट्री के चलते कभी वायु प्रदूषण के लिए कुख्यात डेट्रॉइट का 8, व्यस्त तटीय शहर भारी वाहन यातायात, औद्योगिक गतिविधियों के लिये जाना जाने वाला अल्जीरिया के अल्जीयर्स का 11, आस्ट्रेलिया के सिडनी का 16, साल्ट लेक सिटी का 17 भी हो सकता है। 
भारतीय नगरों के नागरिक तो क्या ग्रामीण भी शायद यह कभी महसूस न कर पाएंगे कि ऐसी हवा कैसी होती है। ऐसा ही रहा तो कुछ बरसों में देश के औद्योगिक शहरों का वातावरण दमघोंटू हो जायेगा। सवा दशक पहले के बीजिंग, हैबई और तिंजियान जैसे कुछ शहरों की तरह अस्पतालों के बेड़ वायु प्रदूषण प्रभावित बीमारों से भर जायेंगे, लोग केन या पाउच में अपनी साफ हवा लेकर चलेंगे। एयर प्यूरीफायर, ह्यूमिडिफायर, इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर और कैटालिस्ट कनवर्टर, डीह्यूमिडिफायर और उन्नत फ़िल्टरेशन सिस्टम, खास तरह के मास्क, पोर्टेबल ऑक्सीजन कैन, जैसे उत्पादों वाला प्रदूषण का बाजार फलफूल रहा होगा। 
भले सरकार की हो या समाज की, यह लापरवाही आत्मघाती है, पर प्रश्न है कि इसका करें क्या? इस हवा के इलाज की कोई अकसीर दवा भी है? क्या अपने शहरों का सैकड़ों के सूचकांक वाले वायु प्रदूषण को दहाई तक लाने वाले देशों ने जो उपाय अपनाए हमारी सरकार क्यों नहीं कर रही? क्या हमें वे उपाय रास नहीं आएंगे अथवा हम उसे करना नहीं चाहते?  
चीन, यूरोप और अमेरिका में आम तौर पर एयर क्वालिटी इंडेक्स 100 के ऊपर जाते ही तात्कालिक सुधारात्मक उपाय शुरू कर दिए जाते हैं। नॉर्वे ने जीवाश्म ईंधन चालित वाहनों को बड़े पैमाने पर घटा इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित किया तो कोलंबिया ने अपनी राजधानी बोगोटा में सार्वजनिक बस नेटवर्क का विद्युतीकरण करने के साथ साइकिल के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर वायु प्रदूषण पर काबू पाया। 
पर हमारे लिए चीन एक संभावित मॉडल लगता है क्योंकि दोनों के लिए विकास और शहरीकरण वायु प्रदूषण के समान कारक हैं। उसने दीर्घ अवधि की नीतियाँ और त्वरित क्रियाओं को मिलाकर लागू किया। भौगोलिक उपायों के तहत शहरों में विंड-वेंटीलेशन कॉरिडोर बनाया, ताकि स्मॉग जमा न हो सके। स्टील उत्पादन, सीमेंट निर्माण जैसे भारी प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को बंद या अपग्रेड किया अथवा कहीं दूर स्थानांतरित कर दिया साथ ही उद्योगों को पर्यावरण प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए मजबूर किया। 
शहरों को अपनी वायु गुणवत्ता मानकों में सुधार के लिए प्रेरित किया तथा रिन्यूएबल एनर्जी और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देते हुये कोयले का इस्तेमाल न्यून किया, स्वच्छ ऊर्जा जैसे नेचुरल गैस, सोलर पावर का उपयोग बढाया, पुराने वाहनों को सड़कों से हटा कर इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया। वायु गुणवत्ता के लिए और अधिक कठोर मानक ही नहीं पेश किया बल्कि  कड़ी निगरानी व्यवस्था के साथ विचलन पर कठोर दंड लगाया। दंडात्मक दृष्टिकोण ने जवाबदेही की संस्कृति को बढ़ाया। उसने 'ग्रेट ग्रीन वॉल' जैसी बड़ी वृक्षारोपण परियोजनाएं चलायी इसके अलावा ऊर्जा प्रणाली में सुधार, उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण और स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने वाली उसकी तीन वर्षीय ब्लू स्काई योजना बेहद सफल साबित हुई। 
इसने बहुत से शहरों में वायु प्रदूषण लगभग 60 फीसदी तक कम किया। चीनी नीतियों ने चार साल के भीतर बीजिंग सहित कई शहरों का वायु प्रदूषण 35 प्रतिशत सालाना तक घटा लिया। 
चीन में हवा की गुणवत्ता के आंकड़े बिना हेरफेर के रीयल टाइम जारी होते हैं, 72 घंटे पहले बता दिया जाता है कि हवा में प्रदूषण की मात्रा कितनी रहने वाली है। पोल्यूशन इमरजेंसी लगा कर स्कूल बंद करना, वाहनों पर प्रतिबंध लगाना, नागरिकों को सार्वजनिक स्वास्थ्य अलर्ट भेजना शुरू हो जाता है। चीनी सरकार ने वायु और सौर ऊर्जा में भारी निवेश किया है। इसके चलते सैकड़ों में रहने वाला एक्यूआई दहाई तक पहुंचा है। 
चीन की सफलता उल्लेखनीय है। उसने हमें वायु प्रदूषणॅ से निबटने में सहयोग का वादा भी किया है। सरकार सीमा और दूसरे विवाद को भुला कर उसके प्रस्ताव का स्वागत अवश्य करेगी। पर सवाल यह है कि क्या उसकीउपचार प्रणाली हमारी हवा का भी इलाज बन पायेगी? हम चीन की तरह संयमित, सख्त वायु-प्रदूषण नियंत्रण रणनीति अपना सकेंगे? 
पर्यावरणीय स्वास्थ्य की कीमत पर होने वाले औद्योगिक विकास को थामना, कॉरपोरेट को पर्यावरणीय नियमों में ढील देना रुकेगा?  पर्यावरण मंत्रालय का घटा हुआ बजट, वैज्ञानिक अनुसंधान बढ़ पायेगा? इस मद में राज्यों को आवंटित बजट पूरा खर्च करने पर बाध्य करने के अलावा केंद्र राज्यों को साधन संसाधन देकर इस बावत दीर्घकालिक योजना चलवाएगी? बिजली चालित वाहनों को बढ़ावा देने के लिए लाखों चार्जिंग स्टेशन और उनके लिए विद्युत आपूर्ति के लिए सरकार कितनी तैयार है? चीन की तरह मज़बूत पर्यावरणीय निगरानी, वोट और चुनावी चंदे के प्रबंधक कारपोरेट, उद्योग आदि के प्रति कठोर दंड व्यवस्था कितना आसान होगा? आम जन न इसकी भयावहता के बारे में न जागरूक हैं न चिंतित और सतर्क। तिस पर सरकार के लिए यह वोट का मुद्दा नहीं है ऐसे में शासन तंत्र की जवाबदेही और नागरिक जागरूकता का स्तर कैसे बढ़ेगा?   
  साफ बात यह भी कि जब तक वायु प्रदूषण की शिकार जनता खुद इसके लिये आंदोलन कोशिश नहीं करेगी तब तक किसी की सहायता से अथवा कोई मॉडॅल अपनाने से बड़ा बदलाव लाना मुश्किल है। हम हवा को पानी की तरह पीने का और अन्य काम आने वाले पानी की तरह वर्गीकृत करके उसकी आपूर्ति नहीं कर सकते। हमें समूचे वायुमंडल को सांस लेने लायक बनाने के लिए किसी उधारी मॉडॅल की बजाए आत्मनिर्भर हो कर अपने देश समाज व्यवस्था के अनुरूप योजना बनानी चाहिये ईमानदारी तथा पूरी ईच्छाशक्ति से अभियान चलाना चाहिये इस हवा की यही दवा है।


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