नौसेनाओं का नव जागरण काल
संदीप कुमार
| 01 Dec 2025 |
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ग्लोबल साउथ के समुद्री सीमा रखने वाले देशों में एक नयी प्रवृत्ति परिलक्षित हो रही है। ऐसे देशों की नौसेनाएं जैसे नवजागरण युग में प्रवेश कर चुकी हैं। ये देश अपनी नौसेना के साज संवार, आधुनिकीकरण के प्रति इतने उद्धत दिखते हैं कि यह भी नहीं देख रहे कि उनकी समुद्री सीमाओं पर खतरे के अनुपात में यह कवायदें कहीं अतिरेकी तो नहीं। ज्यादातर की कोशिश नौसेना क्षमताओं के विकास से समुद्री शक्ति को एक नए स्तर पर ले जाने का है।
दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, ईरान, थाईलैंड आदि भी अपने बेड़े में अत्याधुनिक फ्रिगेट, पनडुब्बी और मल्टी रोल युधपोत जोड़े जा रहे हैं, इससे हिंद महासागर और दक्षिणी समुद्री क्षेत्र की जियो-सामरिक प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। इस नौसेना नव-जागरण के परिदृश्य में चीनी नौसेना का लगातार विस्तार, पाकिस्तानी, बांग्लादेशी नौसेना में आपसी सहकार तथा इन दोनों के लिए चीन जिस तरह बन रहा है मददगार, वह काबिले ग़ौर है।
भारत को दक्षिण एशिया में मुख्यतः चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश की नौसानिक तैयारियों पर गहरी नजर रखनी ही होगी और उसके मद्देनजर तैयारियां भी। उसे वैश्विक परिदृश्य में नौसैनिक विस्तार को देखते हुए इस क्षेत्र में श्रीलंका, मालदीव वगैरह से भी बाखबर रहना होगा।
पाकिस्तान का जो युद्धपोत 54 साल बाद पहली बार बंगाल की खाड़ी से होता हुआ रक्षा सहयोग को मजबूत करने के मकसद से गुडविल विजिट पर बांग्लादेश पहुंचा था वह 12 नवंबर को भारत के लिए यह सवाल छोड़ते हुए विदा हो गया कि दोनों देशों के बीच नौसेना के सुदृढीकरण के लिए कोई खिचड़ी क्यों और कैसे पक रही है?
चटगांव बंदरगाह बंगाल की खाड़ी में देश के पूर्वी तट के करीब है, चीन यहां अपना अड्डा बनाना चाहता है, इसलिए पाकिस्तानी और चीनी जहाजों की आवाजाही से भारत की समुद्री सुरक्षा पर खतरा बढेगा। फोर्सेस गोल-2030 के अंतर्गत बांग्लादेश नौसेना नए युद्धपोत खरीदने के अलावा पनडुब्बी, आईएसआर यानी इंटेलिजेंस, सर्विलांस, रिकॉन तथा स्वदेशी निर्माण क्षमताएँ बढ़ा रही है। पनडुब्बी और समुद्री विमान संचालन की सुविधाओं में वृद्धि के लिए राबनाबाद में देश का सबसे बड़ा नौसैनिक अड्डा बन रहा है।
पाकिस्तान चीन तथा तुर्की के बने कई युद्धपोत खरीदने के साथ उनके सहयोग से युद्धपोतों व पनडुब्बियों के 9-वर्षीय आधुनिकीकरण कार्यक्रम में लगा है। चीन के सहयोग से विकसित उसकी पहली हांगोर-क्लास पनडुब्बी अगले साल उसकी नौसेना में शामिल हो जाएगी और इसकी संख्या 2028 तक आठ पहुंचाने का उसका इरादा है। तुर्की में बना अत्याधुनिक हथियार व स्टील्थ खूबियों से लैस बाबर-क्लास फ्रिगेट इसी साल शामिल होने की खबर है।
पाकिस्तान नौसेना तुर्की द्वारा दान की गई डोगन-क्लास फास्ट अटैक क्राफ्ट को अपनी नौसेना में शामिल करने वाले मालदीव के साथ संयुक्त अभ्यास कर रही है। इन कवायदों के पीछे पाकिस्तान का मकसद समुद्री संसाधनों और रणनीतिक समुद्री मार्गों की सुरक्षा के अलावा शक्ति प्रदर्शन भी है। श्रीलंका नौसेना भी चीनी, रूसी और पश्चिमी साझेदारों के साथ मिलकर ताकत बढाने की जुगत में है।
चीन ने हाल-ही में अपना तीसरा अत्याधुनिक तकनीक संपन्न एयरक्राफ्ट कैरियर फुजियान उतारा और चौथे की घोषणा करने के साथ हिंद-महासागर, बंगाल की खाड़ी और हिन्द-ओमान जलडमरूमध्य में चीन अपनी समुद्री महत्वाकांक्षा तथा शक्ति प्रदर्शन का ड़ंका बजा दिया। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट सिस्टम वाले फुजियान के आने पर चीन की नौसेना अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरी ऐसी नौसेना बन गई जिसके पास इतनी आधुनिक तकनीक से संपन्न कैरियर फ्लीट है। फुजियान जैसे बड़े जहाज पर जे-35 स्टेल्थ फाइटर, केजे-600 वॉर्निंग विमान और जे-15 जैसे आधुनिक विमान तैनात हो सकते हैं, छोटे रनवे से भी उडान भर और उतर सकते हैं। इससे उसकी नौसेना की लंबी दूरी की मारक क्षमता को कई दिनों तक अबाध जारी रखने की उसकी क्षमता बढ़ेगी। वह एक साथ रक्षा या बचाव तथा हमले और निगरानी संबंधी ऑपरेशंस को लंबे समय तक चला सकता है। वह इसके चलते चीन ताइवान, दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में अपनी ताकत दिखा सकता है।
अब चीन अपने तीनों कैरियर्स रूस की डिजाइन पर बने लियाओनिंग, शानडोंग और स्वदेशी फुजियान को एक साथ कर के एक कैरियर स्ट्राइक ग्रुप बना सकता है जिससे प्रभावित होने वाला इस क्षेत्र में महज भरत ही होगा। भारत की मुसीबत यह है कि उसके ईंधन आपूर्ति और व्यापार मार्ग यहीं से गुजरते हैं। हालांकि फुजियान कितनी जल्दी वार रेडी होगा यह अभी देखना है फिर भी इसके आने के बाद भारतीय नौसेना पर दबाव बढ़ेगा कि वह भी अपने जहाजों, विमानों और रडार सिस्टम को आधुनिक बनाए।
भारत के पास फिलहाल आईएनएस विक्रमादित्य और आईनएस विक्रांत दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। दोनों स्की-जंप रैंप तकनीक वाले हैं, के पास इससे बहुत आगे की तकनीक है जो नौसेना को जंग के दौरान दुश्मन से मीलों आगे ले जाते हैं, हालांकि भारत अगली पीढ़ी के ऐसे युद्धपोत बनाने पर विचार कर रहा है जिसमें इक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट सिस्टम हो। अज की रफ्तार से अनुमान लगाएं तो उसे लक्ष्य प्राप्ति में कई बरस लगेंगे।
आईनएस विक्रमादित्य को साल 2035 में रिटायर्ड किया जा सकता है। हिंद महासागर में सामरिक संतुलन बनाए रखने के लिए तीसरे विमानवाहक पोत की ज़रूरत है जिसकी तैयारी तेज़ है, इसके अलावा दो अन्य युद्धपोत की तैनाती की भी योजना हैं। पर सवाल यह है कि क्या वे फुजियान जितने आधुनिक होंगे?
बांग्लादेश का चीन-सहयोग और नेवल बेस के माध्यम से चीन का विस्तार भारत के लिए चिंता का विषय है तो पाकिस्तान-चीन गठबंधन, बंगाल की खाड़ी में चीन-बांग्लादेश समुद्री घुसपैठ तथा अफ्रीका-अरब सागर में चीन की नज़र भारत को रणनीतिक रूप से दबाव में लाता है। हमारे प्रतिस्पर्धियों ने तय समय-सीमा वाले कार्यक्रम अपनाए हैं, हमने इसके क्वाब में इतनी तीव्र प्रक्रिया अपनाई है कि हमारा पिछड़ना नामुमकिन है।
हालांकि पड़ोसी और ग्लोबल साउथ के देशों की नई नौसैनिक तैयारियां भविष्य में सीधे तौर पर भारत की सामरिक और नीतिगत कार्रवाइयों को प्रभावित करेंगी, जिससे हमारे लिए सतर्क, उन्नत और सहयोग आधारित अप्रोच जरूरी हो जाती है। हमको बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिंद महासागर में मल्टी-डोमेन सतर्कता, निगरानी और नौसैनिक शक्ति प्रदर्शन को बढ़ाना होगा। प्रतिस्पर्धात्मक नौसेना विस्तार से शक्ति प्रदर्शन का खेल के बढने से सागरीय संपर्क, संसाधनों की रक्षा, समुद्री आपूर्ति शृंखला एवं मल्टी-लैटरल समन्वय अगे बहुत आवश्यक हो जाएगा। इसलिए हमें टेक्नोलॉजिकल अपग्रेडेशन, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, बीस्पोक शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए रणनीतिक व कूटनीतिक सक्रियता और बढ़ानी होगी।
हमें क्षमताओं का विस्तार करने के लिए जहाज, पनडुब्बी, विमान व बेस इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण समय-सीमा के भीतर सुनिश्चित करने के साथ समुद्री खुफिया नेटवर्किंग बढाने के साथ मित्र देशों के साथ आधार व अभ्यास बढ़ाना होगा। अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया,जापान व फ्रांस के साथ साझा नौसैनिक मिशनों और प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों पर साझेदारी करनी होगी।
हालांकि ग्लोबल साउथ में नौसैनिक नव-जागरण का दौर भारत के लिए चुनौती के साथ अवसर भी प्रस्तुत कर रहा है। यदि भारत ने समय पर आत्मनिर्भर, स्वदेशी नव-नौसैनिक क्षमताओं को स्थिरता व विस्तार के साथ लागू किया, तो वह भारतीय-महासागर क्षेत्र में अपना नेतृत्व सुनिश्चित कर सकता है। सरकार और नौसेना यह बात जानती है कि क्षमता विकास से अपने समुद्री हितों को वास्तविक शक्ति में तब्दील करना होगा। इस दिशा में पीछे रहना जोखिम भरा हो सकता है। उसने इस ओर महत्वपूर्णॅ ठोस कदम उठा भी लिए हैं। बेशक समुद्र में भारत की शक्ति बढ़ेगी, वहाँ भू-राजनीतिक समीकरण जल्द पलटेंगे।