भारत की समुद्री छलांगः नेवी ड्राइव 2035
संदीप कुमार
| 30 Sep 2025 |
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भारत 21वीं सदी में एक प्रमुख समुद्री शक्ति बनने के लिए एक महत्वाकांक्षी मार्ग तय कर रहा है। भारतीय नौसेना ने अपने इतिहास का सबसे बड़ा जहाज निर्माण कार्यक्रम शुरू किया है। यह कार्यक्रम न केवल नई दिल्ली की रणनीतिक मंशा का संकेत है बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ दृष्टि के अंतर्गत आत्मनिर्भरता की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। मुंबई, कोलकाता, गोवा और विशाखापत्तनम के शिपयार्ड में वर्तमान में 54 पोत निर्माणाधीन हैं। 2035 तक भारतीय नौसेना का बेड़ा 200 से अधिक जहाजों का हो जाएगा और 2037 तक यह संख्या 230 तक पहुँच सकती है, जो विश्व के सबसे बड़े नौसैनिक विस्तारों में से एक होगी।
इतना विशाल जहाज निर्माण कार्यक्रम हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती समुद्री प्रतिस्पर्धा की पृष्ठभूमि में शुरू किया गया है, विशेषकर चीन की बढ़ती ब्लू-वाटर नेवी को देखते हुए। चीन के विमानवाहक पोतों, परमाणु पनडुब्बियों और विदेशी ठिकानों के तेजी से विस्तार ने भारत के लिए सामरिक चुनौतियाँ बढ़ा दी हैं। ऐसे में भारतीय नौसेना का आधुनिकीकरण केवल आकांक्षा नहीं बल्कि आवश्यकता है, ताकि समुद्री मार्गों की सुरक्षा, हिंद महासागर क्षेत्र की रक्षा और बदलते समुद्री परिदृश्य में शक्ति प्रदर्शन सुनिश्चित हो सके।
वर्तमान में भारत के पास लगभग 140 युद्धपोत हैं, जिनमें विमानवाहक पोत, विध्वंसक, फ्रिगेट, कोर्वेट और पनडुब्बियाँ शामिल हैं। प्रस्तावित विस्तार अगले दशक में इस संख्या को लगभग दोगुना कर देगा। दिसंबर 2025 तक 10 नए जहाज नौसेना में शामिल हो जाएंगे और शेष 2030 तक सेवा में आ जाएंगे। आधुनिकीकरण के तहत सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली जैसे उन्नत हथियारों का एकीकरण किया जा रहा है। रूस के साथ संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस दुनिया की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइलों में से एक है, जो समुद्र और स्थल दोनों लक्ष्यों पर सटीक प्रहार कर सकती है।
इस पहल के केंद्र में है स्वदेशीकरण। विदेशी आयात पर निर्भरता कम करना और घरेलू रक्षा उद्योग को सशक्त बनाना ‘मेक इन इंडिया’ रणनीति का प्रमुख आधार है। शिपबिल्डिंग क्षेत्र न केवल रक्षा उद्योग बल्कि इस्पात, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रणोदन प्रणालियों और उन्नत सामग्रियों जैसे क्षेत्रों में भी उच्च कौशल रोजगार पैदा कर रहा है। अनुमान है कि 2030 तक यह परियोजना लाखों रोजगार उत्पन्न करेगी और विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता घटाएगी।
फिर भी, अंतरराष्ट्रीय सहयोग महत्वपूर्ण बना हुआ है। रूस तकनीकी हस्तांतरण और जहाज उत्पादन में अहम भागीदार है। कालिनिनग्राद के यान्तर शिपयार्ड से आठवें क्रिवाक श्रेणी के फ्रिगेट ‘तामल’ की आपूर्ति एक मील का पत्थर रही, जिसमें 26% भारतीय घटक शामिल थे। इसी तरह INS तुशील जैसे प्रोजेक्ट 11356 स्टेल्थ फ्रिगेट लंबी दूरी की मारक क्षमता और उन्नत स्टेल्थ तकनीक के प्रतीक हैं। इन सहयोगों से भारत को आधुनिक विशेषज्ञता मिलती है और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलता है।
इस नौसैनिक विस्तार का रणनीतिक महत्व केवल रक्षा तक सीमित नहीं है। 200 से अधिक जहाजों वाला बेड़ा भारत को समुद्री मार्गों की सुरक्षा, क्वाड जैसे बहुराष्ट्रीय अभ्यासों में भागीदारी और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों का संतुलन साधने में सक्षम बनाएगा। मजबूत नौसेना भारत को पूर्वी अफ्रीका से लेकर बंगाल की खाड़ी और व्यापक हिंद-प्रशांत तक प्रभाव स्थापित करने का अवसर देती है।
हालाँकि चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। भारतीय शिपयार्ड अक्सर देरी, लागत वृद्धि और प्रशासनिक अड़चनों से जूझते रहे हैं। 54 जहाजों का समय पर निर्माण, कर्मियों का प्रशिक्षण - रखरखाव ढाँचे का विकास रक्षा-औद्योगिक तंत्र की दक्षता की परीक्षा होगी। लेकिन दांव बड़ा है। स्वदेशी उत्पादन व चुनिंदा अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के सम्मिश्रण से भारत समय पर उन्नत जहाजों की आपूर्ति सुनिश्चित करने व तकनीकी आत्मनिर्भरता बनाए रखने की दिशा में काम कर रहा है। यह विस्तार व्यापक रणनीतिक दृष्टि को भी दर्शाता है। भारत जानता है कि 21वीं सदी में समुद्री प्रभुत्व केवल संख्या से नहीं बल्कि क्षमताओं से तय होगा। पनडुब्बियाँ, स्टेल्थ फ्रिगेट, विमानवाहक पोत और मिसाइल-सुसज्जित सतही जहाज सामूहिक रूप से संभावित दुश्मनों के लिए निवारक शक्ति का निर्माण करते हैं। संख्या और तकनीकी प्रगति का संयोजन भारत को एक विश्वसनीय समुद्री शक्ति बनाता है।
आर्थिक दृष्टि से भी इस पहल के व्यापक लाभ हैं। शिपबिल्डिंग कार्यक्रम सहायक उद्योगों को प्रोत्साहित करता है, रक्षा तकनीक में नवाचार लाता है और आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करता है। जटिल नौसैनिक प्लेटफॉर्म का स्वदेशी उत्पादन भारत के औद्योगिक आधार को सुदृढ़ करते हुए रणनीतिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। भारत की यह नौसैनिक पहल वैश्विक मंच पर उसकी बदलती भूमिका का प्रतीक है। जैसे-जैसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन रहा है, भारत यह संदेश दे रहा है कि वह अपने समुद्री हितों की रक्षा, क्षेत्रीय प्रभाव स्थापित करने और व्यापार मार्गों की सुरक्षा के लिए पूरी तरह तैयार है।
निष्कर्षतः, भारत का यह अभूतपूर्व जहाज निर्माण कार्यक्रम उसकी रक्षा और औद्योगिक दिशा में एक निर्णायक मोड़ है। स्वदेशी उत्पादन, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और रणनीतिक दूरदृष्टि को मिलाकर भारत ऐसी नौसेना का निर्माण कर रहा है जो आधुनिक समुद्री युद्ध की मांगों को पूरा करने में सक्षम हो। चुनौतियाँ भले हों, लेकिन दृष्टि स्पष्ट है—भारत विश्व की अग्रणी नौसैनिक शक्तियों में अपना स्थान सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि आने वाले दशकों तक राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहे।