संविधान पर संकट: फ्राउके ब्रोजियस गर्सडॉर्फ को लेकर जर्मन संसद में गतिरोध

संदीप कुमार

 |  16 Jul 2025 |   44
Culttoday

पिछले सप्ताह जर्मनी की संघीय संवैधानिक न्यायालय में तीन नए न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर बुंडेस्टाग (जर्मन संसद) में होने वाला मतदान टाल दिया गया — विशेषकर एसपीडी की ओर से नामित फ्राउके ब्रोजियस‑गर्सडॉर्फ की नियुक्ति को। यह घटनाक्रम राजनीतिक ध्रुवीकरण, व्यक्तिगत हमलों और न्यायिक विश्वसनीयता के बीच खतरनाक टकराव को उजागर करता है।

विवाद की शुरुआत

11 जुलाई 2025 को बुंडेस्टाग की बैठक तीन नए संवैधानिक न्यायाधीशों की पुष्टि के लिए बुलाई गई थी, जिसमें ब्रोजियस‑गर्सडॉर्फ भी शामिल थीं। सामान्यतः ऐसी नियुक्तियाँ औपचारिक रूप से और बिना विवाद के पारित हो जाती हैं, लेकिन इस बार CDU/CSU (कंजरवेटिव गठबंधन) ने ऐन वक्त पर मतदान रुकवा दिया। कारण बताया गया — "प्लेज़रिज़्म हंटर" कहे जाने वाले स्टेफ़न वेबर द्वारा अचानक लगाए गए नकल के आरोप।

वेबर का आरोप था कि ब्रोजियस‑गर्सडॉर्फ के 1997 के डॉक्टरेट शोधपत्र और उनके पति की 1998 की हाबिलिटेशन थीसिस (उच्च शैक्षिक शोध) में फुटनोट्स की समानता है। बाद में उन्होंने अपने बयान को "संभावित अनैतिक लेखन" तक सीमित कर दिया, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था और मतदान स्थगित हो गया।

राजनीतिक ध्रुवीकरण की भूमिका

यह विवाद ऐसे समय हुआ जब चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ के नेतृत्व में सरकार बेहद पतले बहुमत पर टिकी थी। दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता के कारण CDU/CSU और SPD को विपक्ष का समर्थन चाहिए था। ब्रोजियस‑गर्सडॉर्फ के प्रगतिशील विचार — गर्भपात अधिकारों और महामारी टीकाकरण पर — पहले से ही कंजरवेटिव खेमे में असहजता पैदा कर रहे थे। आरोपों से पहले ही CDU/CSU में उनके नाम पर विरोध था।

SPD के डिर्क वीज़े ने इस पूरे प्रकरण को "राजनीतिक चुड़ैल शिकार" बताया, जिससे जर्मनी की लोकतांत्रिक छवि को नुकसान हुआ। ग्रीन्स पार्टी की ब्रिट्टा हासेलमैन ने कंजरवेटिवों पर न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया।

नकल का आरोप या चरित्र हनन?

हालांकि प्लेजरिज़्म (नकल) के आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन उनका राजनीतिक उपयोग स्पष्ट है। वेबर का पहला आरोप अस्पष्ट था और बाद में उसे कमजोर किया गया — परंतु इससे पहले ही कंजरवेटिव सांसदों ने इसे मतदान रोकने का आधार बना लिया।

साथ ही, दक्षिणपंथी वेबसाइटों द्वारा सोशल मीडिया पर चलाई गई मुहिम — जो अक्सर AfD (अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी) के नैरेटिव को दोहराती हैं — ने वैचारिक और नैतिक हमलों को और बढ़ा दिया। यह घटनाक्रम इस बात का उदाहरण है कि कैसे अपुष्ट शैक्षणिक आरोपों को राजनीतिक प्रचार और सोशल मीडिया के ज़रिये न्यायपालिका पर हमले के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

न्यायपालिका की साख पर असर

संवैधानिक न्यायालय की प्रतिष्ठा राजनीतिक तटस्थता और नैतिक अधिकार के भरोसे पर टिकी होती है। जर्मनी की नियुक्ति प्रक्रिया जानबूझकर गुप्त और दो-तिहाई बहुमत वाली रखी गई है, ताकि आम सहमति बने और दलगत टकराव से बचा जा सके।

लेकिन यह गतिरोध अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट की नियुक्ति प्रक्रियाओं से मेल खाता है — जहाँ राजनीतिक ध्रुवीकरण और विचारधारा की कसौटियाँ निर्णायक हो गई हैं।

वैश्विक तुलना: अलग-अलग मॉडल

  • ब्रिटेन: स्वतंत्र ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन के माध्यम से मेरिट आधारित चयन, जिसमें राजनीति की भूमिका न्यूनतम होती है।
  • अमेरिका: कार्यपालिका और विधायिका द्वारा नियुक्ति, जिससे अक्सर गहरे राजनीतिक टकराव होते हैं।
  • जर्मनी/फ्रांस: मिश्रित प्रणाली — संसद और क्षेत्रीय निकाय उम्मीदवार तय करते हैं, परंतु राजनीतिक सौदेबाज़ी अहम भूमिका निभाती है। जर्मनी की संघीय व्यवस्था में राज्य स्तरीय न्यायिक समितियाँ अतिरिक्त निगरानी देती हैं।

ब्रोजियस‑गर्सडॉर्फ प्रकरण यह दिखाता है कि कैसे जर्मनी की सहमति आधारित प्रणाली भी नाजुक है और कैसे संदेहास्पद प्रमाणों के आधार पर भी किसी की साख पर सवाल उठाए जा सकते हैं।

लोकतंत्र पर व्यापक खतरे

यह विवाद सिर्फ एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है। SPD द्वारा लगाए गए "चरित्र हनन" और ग्रीन्स द्वारा जताई गई "संस्थागत क्षति" की आशंका, यह संकेत हैं कि कैसे न्यायपालिका का राजनीतिकरण लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर सकता है।

यह वही प्रवृत्ति है जो पोलैंड और हंगरी जैसे देशों में देखी गई — जहाँ न्यायिक स्वतंत्रता, मीडिया ट्रायल और ध्रुवीकरण के कारण संस्थाएं बिखर गईं।

जर्मनी के लिए यह संकट गंभीर है, क्योंकि उसका संवैधानिक न्यायालय आपातकालीन कानूनों, कार्यकारी शक्तियों और यूरोपीय संघ की नीतियों की निगरानी करता है। इसके न्यायाधीशों को केवल कानूनी ज्ञान ही नहीं, बल्कि निष्पक्षता के प्रति सार्वजनिक भरोसा भी अर्जित करना होता है।

आगे की राह

यदि SPD और CDU/CSU के बीच समझौता नहीं हुआ — या तो ब्रोजियस‑गर्सडॉर्फ का नाम वापस लेकर या ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद मतदान करवाकर — तो अदालत की पीठ हफ्तों तक अधूरी रहेगी।

यह स्थिति यह संकेत दे सकती है कि संदेहपूर्ण आरोपों और सोशल मीडिया दवाब के साथ विचारधारात्मक शुद्धता की मांगें लोकतांत्रिक संस्थाओं को भी पंगु बना सकती हैं।

निष्कर्ष

फ्राउके ब्रोजियस‑गर्सडॉर्फ को लेकर बुंडेस्टाग में उत्पन्न गतिरोध एक गंभीर चेतावनी है: जब न्यायिक नियुक्तियाँ योग्यता की बजाय राजनीतिक युद्धभूमि बन जाती हैं, तो न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता, बल्कि लोकतंत्र की बुनियादी संरचना भी खतरे में पड़ जाती है।

यदि जर्मनी को अपने युद्धोत्तर संवैधानिक आदर्शों की रक्षा करनी है, तो उसे एक ऐसी पारदर्शी और विश्वसनीय नियुक्ति प्रक्रिया को दोहराना होगा, जो ध्रुवीकरण के हथकंडों के सामने भी टिक सके।

आकांक्षा शर्मा कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
निजी हैं और कल्ट करंट का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।


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