भारत को जुलाई के तीसरे हफ्ते में अमेरिका से तीन नए Apache AH‑64E अटैक हेलीकॉप्टर मिलने जा रहे हैं और इसे लेकर सेना से लेकर रणनीतिक हलकों तक खासी हलचल है। Apache हेलीकॉप्टर को दुनिया के सबसे घातक अटैक हेलीकॉप्टरों में गिना जाता है, जिसे उड़ता हुआ टैंक भी कहा जाता है। इसके आने से भारतीय थल सेना की ताक़त में वह धार जुड़ने वाली है जिसकी चर्चा कई सालों से हो रही थी। इस सौदे पर बातचीत तो 2020 में ही हो गई थी, लेकिन सप्लाई चेन में रुकावटें, तकनीकी फिटिंग और स्पेयर पार्ट्स के इंटीग्रेशन में देरी के कारण डिलीवरी टलती रही। अब जबकि 21 जुलाई को पहला बैच आने वाला है, तो सीमाओं पर तैनात भारतीय जवानों में भी एक नया उत्साह देखा जा रहा है।
Apache की खासियत इसकी मिसाइल कैपेसिटी, नाइट विज़न सिस्टम और स्टैंड-ऑफ अटैक रेंज है, जो इसे दुश्मन के ठिकानों को बिना ज़मीन पर उतरे नेस्तनाबूद करने में सक्षम बनाती है। पाकिस्तान सीमा से सटे इलाकों में इसे तैनात किया जाएगा ताकि घुसपैठ, आतंकवाद और आकस्मिक संघर्षों में सेना को आक्रामक जवाब देने में कोई कमी न रहे। दरअसल, इस हेलीकॉप्टर की तैनाती सिर्फ़ एक तकनीकी बात नहीं है, बल्कि यह भारत-अमेरिका की रक्षा साझेदारी को भी नई दिशा देती है। अमेरिका चाहता है कि भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करे और पाकिस्तान के साथ सीमाओं पर अपनी सुरक्षा को इतना मज़बूत बनाए कि कोई भी दुस्साहस करने से पहले सौ बार सोचे।
सेना के पायलटों और ग्राउंड स्टाफ़ के लिए Apache एक नई चुनौती भी है। इसकी ट्रेनिंग बेहद जटिल मानी जाती है क्योंकि इसे हर मौसम, हर इलाके में उड़ाना होता है — चाहे कश्मीर की बर्फ़ीली चोटियाँ हों या राजस्थान के रेतीले मैदान। इसके अलावा रखरखाव भी आसान नहीं है। Apache के पार्ट्स महंगे हैं, लॉजिस्टिक्स सपोर्ट महंगा है और इसके लिए अलग से मेंटेनेंस यूनिट्स तैयार करनी पड़ती हैं। यही वजह है कि इसके ऑपरेशन को लेकर रक्षा बजट में भी नई लाइनें खुलनी हैं। इसके बावजूद रणनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि Apache भारत के लिए 'लागत से कहीं ज़्यादा फायदेमंद सौदा' है, क्योंकि इससे सेना की आक्रामक क्षमताएँ नई ऊँचाई पर पहुंचेंगी।
इस सौदे को लेकर पाकिस्तान और चीन की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सैन्य सूत्रों का मानना है कि दोनों देशों की सीमाओं पर जासूसी ड्रोन और सैटेलाइट से इस मूवमेंट पर पैनी नज़र रखी जा रही है। भारत इस डिलीवरी को सिर्फ़ एक रक्षा उपकरण की खरीदारी नहीं बल्कि भविष्य में और बड़े को-प्रोडक्शन और टेक्नोलॉजी शेयरिंग का रास्ता मान रहा है। DRDO पहले ही इस तकनीक से प्रेरित होकर अपने घरेलू अटैक हेलीकॉप्टर 'प्रचंड' और हल्के कॉम्बैट हेलीकॉप्टर प्रोग्राम को और आधुनिक बनाने में जुटा है।
इस पूरी कवायद का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि भारतीय सेना के जवान सीमाओं पर पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित और आत्मविश्वासी महसूस करेंगे। सीमाओं पर मनोबल एक ऐसी चीज़ है जो कभी भी कागज़ों में नहीं दिखती लेकिन जंग के मैदान में सबसे पहले वही काम आती है। Apache की गूंज उन जवानों के हौसले को मज़बूत करेगी जो हर मौसम, हर मोर्चे पर तैनात रहते हैं।
अब असली सवाल यही है कि क्या Apache की यह पहली खेप भारत की रणनीतिक तैयारियों को अगले स्तर तक ले जा पाएगी? या यह सिर्फ़ शुरुआत है और भारत को आगे और भी हाई-टेक सैन्य सौदे करने होंगे? अगर Apache का प्रदर्शन उम्मीदों के मुताबिक़ रहा तो शायद आने वाले सालों में भारत अपनी सीमाओं पर ऐसी और भी घातक ताक़तें उतारने से नहीं हिचकेगा। इस वक्त भारत के पास मौका है कि वह न सिर्फ़ सैन्य तकनीक खरीदे बल्कि उसमें घरेलू उत्पादन और डिज़ाइन की क्षमता भी विकसित करे ताकि अगली बार Apache जैसी तकनीक भारत में ही बने और पूरी दुनिया में भारत उसे बेच सके।
श्रेया गुप्ता कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
निजी हैं और कल्ट करंट का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।