प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक दशक से अधिक समय में अपनी सबसे लंबी राजनयिक यात्रा की शुरुआत की, जो 2 जुलाई से 9 जुलाई 2025 तक चलेगी। इस महत्वपूर्ण पाँच देशों की यात्रा में उन्होंने घाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राज़ील और नामीबिया का दौरा करेंगे। इन यात्राओं का केंद्र बिंदु व्यापार, ऊर्जा, महत्वपूर्ण खनिज और दक्षिण-दक्षिण सहयोग रहा, जिसका उद्देश्य अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में भारत की साझेदारियों को मजबूत करना है। इस दौरे में द्विपक्षीय वार्ताएँ, संसद में संबोधन के साथ-साथ रियो डी जनेरियो में 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भागीदारी भी शामिल हैं।
यह यात्रा भारतीय कूटनीति को किस प्रकार सशक्त बनाती है? यह दौरा भारतीय विदेश नीति में एक ऐतिहासिक कदम है जो वैश्विक दक्षिण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को उजागर करता है और भारत को बहुपक्षीय मंचों में एक अग्रणी राष्ट्र के रूप में स्थापित करता है। पिछले 30 वर्षों में यह पहली बार है जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने घाना का दौरा किया है, जबकि यह 57 वर्षों में अर्जेंटीना की पहली द्विपक्षीय यात्रा है—ऐसे देश जहां भारतीय उपस्थिति प्रतिस्पर्धी देशों जैसे चीन की तुलना में सीमित रही है। यह दौरा विकासशील देशों के लिए भारत की वकालत को दर्शाता है और उभरती अर्थव्यवस्थाओं की आवाज को मजबूत करता है। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भागीदारी भारत की सहयोग और बहुपक्षीय जुड़ाव की प्रतिबद्धता को उजागर करती है। मोदी की भारतीय प्रवासियों के साथ बातचीत सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को पुनर्जीवित करती है, जिससे भारत की सॉफ्ट पावर और प्रभावशीलता में वृद्धि होती है।
भारत ने अफ्रीका और लैटिन अमेरिका को ही क्यों चुना? भारत की घाना और नामीबिया जैसे अफ्रीकी देशों की यात्रा व्यापार, संसाधनों और भू-राजनीतिक प्रभाव पर केंद्रित है। घाना की यात्रा के दौरान द्विपक्षीय व्यापार $2.5 बिलियन से अधिक दर्ज किया गया, जिसमें दवाइयों, सूचना प्रौद्योगिकी और कृषि-प्रसंस्करण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया। व्यापार, तकनीक, क्षमतावर्धन और विकास से जुड़े चार समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर हुए। मोदी ने अफ्रीका की वैश्विक आकांक्षाओं के प्रति समर्थन व्यक्त किया और उन्हें घाना के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ घाना" से सम्मानित किया गया, जो गहरे होते संबंधों का प्रतीक है। वहीं, नामीबिया में यात्रा का मुख्य फोकस रक्षा सहयोग, महत्वपूर्ण खनिजों की खोज और औद्योगिक साझेदारी पर रहा। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री की अर्जेंटीना और ब्राज़ील की यात्रा आर्थिक और संसाधन साझेदारियों में विविधता लाने की रणनीतिक पहल को दर्शाती है। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मिली के साथ हुई बातचीत में ऊर्जा, रक्षा उत्पादन, अंतरिक्ष तकनीक और डिजिटल नवाचार में सहयोग बढ़ाने पर बल दिया जाएगा। भारत-मर्कोसुर प्रेफरेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट (PTA) इस संबंध को आर्थिक मजबूती प्रदान करता है। ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा के साथ चर्चाओं में वैश्विक दक्षिण की प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने का उद्देश्य रहेगा, जो 1948 से स्थापित दीर्घकालिक राजनयिक संबंधों को नई दिशा देता है।
भारत इस यात्रा से क्या हासिल करना चाहता है? लिथियम, हाइड्रोकार्बन, यूरेनियम और रेयर अर्थ एलिमेंट्स जैसे संसाधनों की वैश्विक दौड़ मोदी के एजेंडे का प्रमुख केंद्र है। उन्होंने घाना के साथ व्यापार को पाँच वर्षों में दोगुना करने का लक्ष्य घोषित किया और त्रिनिदाद और टोबैगो में डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, जलवायु अनुकूलन और स्वास्थ्य सेवा सहयोग पर बल दिया, जबकि अर्जेंटीना और ब्राज़ील में कृषि, खाद्य तेलों और तकनीक पर ध्यान केंद्रित है। भारत अक्षय ऊर्जा और हाइड्रोकार्बन के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करना चाहता है, वहीं घाना में जन औषधि केंद्रों के माध्यम से सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने की पहल की गई। नामीबिया और ब्राज़ील में रक्षा उत्पादन और अंतरिक्ष तकनीक पर चर्चा जो होनी है, वह भारत के नवाचार और सुरक्षा साझेदारी केंद्र बनने के लक्ष्य के अनुरूप है।
क्या यह भारत के वैश्विक रुख में बदलाव को दर्शाता है? हाँ, मोदी की यह यात्रा भारत की पुनःसंयोजित विदेश नीति को दर्शाती है, जहाँ भारत खुद को विकासशील देशों का प्रतिनिधि बनाकर पश्चिम-प्रधान वैश्विक विमर्श को चुनौती देता है। यह भारत को इन क्षेत्रों में रणनीतिक स्वायत्तता प्रदान करता है और चीन के प्रभाव का जवाब देते हुए देश के आर्थिक भविष्य को सुरक्षित करता है। त्रिनिदाद और टोबैगो में प्रवासी भारतीयों से जुड़ाव और अफ्रीका के साथ ऐतिहासिक संबंधों का लाभ भारत के सांस्कृतिक प्रभाव को मजबूत करता है। मोदी के घाना और नामीबिया में संसदीय संबोधन इस सॉफ्ट पावर को और मजबूती देते हैं। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन और अफ्रीकी संघ, इकोवास तथा कैरिकॉम के साथ संवाद भारत को वैश्विक दक्षिण और वैश्विक मंचों के बीच एक सेतु के रूप में स्थापित करने के लिए हैं, जो 2026 में ब्रिक्स अध्यक्षता की तैयारी को दर्शाता है।
मोदी की पाँच देशों की यह यात्रा भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ाने की एक रणनीतिक पहल है, जो वैश्विक दक्षिण के साथ संबंधों को गहरा करती है और भारत के आर्थिक व तकनीकी लक्ष्यों के लिए आवश्यक संसाधनों की सुरक्षा करती है। अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से जुड़ाव के माध्यम से भारत न केवल चीन के प्रभाव को संतुलित करता है, बल्कि व्यापार और ऊर्जा साझेदारी को सशक्त करता है और बहुपक्षीय मंचों में अपनी नेतृत्व भूमिका को भी मजबूत करता है। यह यात्रा प्रवासी भारतीयों, ऐतिहासिक संबंधों और दक्षिण-दक्षिण सहयोग को प्राथमिकता देकर भारत के एक आत्मविश्वासी, भविष्य के लिए तैयार वैश्विक शक्ति के रूप में उभरते स्वरूप को दर्शाती है।
रिया गोयल कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
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