दलाई लामा का उत्तराधिकारी: आस्था बनाम सत्ता का संघर्ष

संदीप कुमार

 |  02 Jul 2025 |   45
Culttoday

चीन सरकार और दलाई लामा के बीच उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति को लेकर विवाद एक अंतरराष्ट्रीय शक्ति संघर्ष का रूप ले चुका है, जो सीमाओं, धर्मों और विचारधाराओं से परे है। इस विवाद के मूल में है तिब्बती बौद्ध धर्म की पुनर्जन्म परंपरा, जिसे चीन अपने राजनीतिक हितों के लिए नियंत्रित करना चाहता है।

2007 में चीन ने "आदेश संख्या 5" के तहत यह घोषणा की कि सभी तिब्बती लामाओं—यहां तक कि दलाई लामा—के पुनर्जन्म को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से स्वीकृति लेना अनिवार्य होगा। यह कदम धार्मिक परंपराओं को राज्य के नियंत्रण में लाने का प्रयास है, जो सदियों से स्वतंत्र रही हैं।

दलाई लामा, जो 1959 से भारत में निर्वासन में हैं, चीन के इस अधिकार को सिरे से खारिज कर चुके हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि उनका पुनर्जन्म चीन के बाहर होगा और उसे केवल तिब्बती बौद्ध धर्मगुरुओं द्वारा मान्यता दी जाएगी, न कि किसी सरकारी आदेश से। यह घोषणा आध्यात्मिक होने के साथ-साथ राजनीतिक भी है—तिब्बती बौद्ध धर्म की पवित्रता को बनाए रखने और चीनी हस्तक्षेप का विरोध करने का एक प्रयास।

राजनीतिक रूप से देखा जाए, तो चीन का यह प्रयास तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन की शक्ति को खत्म करने की रणनीति है। चीन दलाई लामा को महज एक धार्मिक गुरु नहीं, बल्कि एक ‘विभाजनकारी’ शक्ति मानता है। यदि बीजिंग अपनी पसंद से एक "सरकारी दलाई लामा" नियुक्त करता है, तो यह तिब्बत पर नियंत्रण मजबूत करने का हथकंडा होगा।

लेकिन दलाई लामा की स्पष्ट स्थिति इस योजना को चुनौती देती है। तिब्बती समुदाय—चाहे वह तिब्बत के भीतर हो या बाहर—किसी चीनी समर्थन प्राप्त उत्तराधिकारी को शायद ही स्वीकार करेगा। इससे भविष्य में दो दलाई लामा उभरने की संभावना बनती है—एक निर्वासित समुदाय द्वारा मान्य, और दूसरा चीन द्वारा नियुक्त। यह स्थिति धर्म में भ्रम और बंटवारे को जन्म दे सकती है।

धार्मिक दृष्टिकोण से, चीन की यह दखलंदाज़ी तिब्बती बौद्ध परंपरा की आत्मा पर चोट है। पुनर्जन्म की पहचान एक गूढ़ और आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें दिव्य संकेत, स्वप्न और वरिष्ठ लामाओं की सामूहिक सहमति शामिल होती है। सरकारी हस्तक्षेप न केवल इस पवित्र प्रक्रिया का अपमान है, बल्कि तिब्बती बौद्ध धर्म की मूल आत्मा को भी खतरे में डाल देता है।

इस बीच, निर्वासित तिब्बती समुदाय अपने धर्म की शुद्ध परंपराओं के अनुसार उत्तराधिकारी तय करने की तैयारी में जुटा है। वह दुनिया से मांग कर रहे हैं कि दलाई लामा को अपने उत्तराधिकारी के चयन का संपूर्ण अधिकार दिया जाए।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह मुद्दा गहराता जा रहा है। अमेरिका जैसे देशों ने स्पष्ट रूप से तिब्बती लोगों के धार्मिक अधिकारों का समर्थन किया है, जबकि भारत एक संवेदनशील स्थिति में है—एक ओर चीन से रणनीतिक प्रतिस्पर्धा, तो दूसरी ओर तिब्बती संस्कृति और धर्म की रक्षा का नैतिक दायित्व।

मानवाधिकार संगठनों और कई देशों ने चीन के रवैये की आलोचना करते हुए इसे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया है। यह विवाद अब चीन के साथ वैश्विक कूटनीतिक संबंधों में धार्मिक अधिकारों और सांस्कृतिक अस्तित्व की पहचान बन गया है।

दुनियाभर के तिब्बती समुदायों के लिए यह केवल एक उत्तराधिकारी की तलाश नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व, धर्म और सांस्कृतिक स्वायत्तता की रक्षा की लड़ाई है। दलाई लामा की उम्र बढ़ने के साथ यह संघर्ष और तीव्र हो रहा है—यह सवाल अब सिर्फ यह नहीं कि अगला दलाई लामा कौन होगा, बल्कि यह है कि उसे चुनने का नैतिक और आध्यात्मिक अधिकार किसके पास होगा।

आकांक्षा शर्मा कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
निजी हैं और कल्ट करंट का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।


Browse By Tags

RECENT NEWS

BMD का सवाल, सुरक्षा या सर्वनाश?
कार्तिक बोम्माकांति |  01 Aug 2025  |  46
भारत और नाटोः रक्षा सौदों की रस्साकशी
संजय श्रीवास्तव |  01 Aug 2025  |  47
भारत का शक्ति प्रदर्शन: टैलिसमैन सेबर
आकांक्षा शर्मा |  16 Jul 2025  |  66
ब्रह्मोस युग: भारत की रणनीतिक छलांग
श्रेया गुप्ता |  15 Jul 2025  |  34
भारत बंद: संघर्ष की सियासत
आकांक्षा शर्मा |  10 Jul 2025  |  61
To contribute an article to CULT CURRENT or enquire about us, please write to cultcurrent@gmail.com . If you want to comment on an article, please post your comment on the relevant story page.
All content © Cult Current, unless otherwise noted or attributed. CULT CURRENT is published by the URJAS MEDIA VENTURE, this is registered under UDHYOG AADHAR-UDYAM-WB-14-0119166 (Govt. of India)