ईरान और इज़राइल के बीच अस्थायी संघर्षविराम के बावजूद, अधिकांश प्रमुख पश्चिमी एयरलाइंस अब भी ईरानी हवाई क्षेत्र से दूरी बनाए हुए हैं। यह झिझक इस बात को दर्शाती है कि विमानन क्षेत्र अब भू-राजनीतिक संघर्षों के प्रति पहले से कहीं अधिक संवेदनशील हो गया है, और एयरलाइंस को अब एक ऐसे बंटे हुए विश्व में बढ़ते परिचालन जोखिमों से जूझना पड़ रहा है। पश्चिम एशिया में लगातार बनी अस्थिरता, रूसी हवाई क्षेत्र की बंदी, और भारत-पाकिस्तान हवाई गलियारे को लेकर चल रही तनातनी ने विमानन नियोजन के एक नए युग की शुरुआत कर दी है—जहाँ अब कूटनीति और रक्षा नीतियाँ भी उड़ानों की दिशा तय कर रही हैं, केवल ईंधन दक्षता या मौसम नहीं।
हालांकि ईरान-इज़राइल के बीच तनाव फिलहाल शांत है, फिर भी यह क्षेत्र एक संवेदनशील बिंदु बना हुआ है। एयरलाइंस को आशंका है कि कूटनीतिक प्रयासों के बावजूद, अचानक भड़क उठने वाली झड़पों, मिसाइल हमलों या हवाई क्षेत्र बंदी का खतरा बना रहेगा। वर्ष 2020 में ईरान द्वारा यूक्रेन इंटरनेशनल एयरलाइंस की उड़ान 752 को दुश्मन विमान समझकर गिराया जाना आज भी विमानन उद्योग की स्मृति में ताजा है। इसी कारण, उड़ानों को मोड़ना—चाहे वह ईंधन और समय की दृष्टि से महंगा क्यों न हो—अब अधिक सुरक्षित विकल्प माना जा रहा है। यह रुझान दिखाता है कि यात्रियों की सुरक्षा और कॉर्पोरेट जवाबदेही, अब सहूलियत पर भारी पड़ रही है।
यह सतर्कता केवल ईरान तक सीमित नहीं है। वर्ष 2022 से अब तक, विमानन उद्योग को कई हवाई क्षेत्र बंदियों से तालमेल बिठाना पड़ा है, विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण। पश्चिमी प्रतिबंधों के जवाब में रूस ने यूरोपीय और अमेरिकी एयरलाइनों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया, जिससे उन्हें एशिया के लिए लंबी, अधिक ईंधन खर्च करने वाली वैकल्पिक उड़ानों का सहारा लेना पड़ा। कई मामलों में ये रास्ते न केवल आर्थिक रूप से महंगे हैं, बल्कि विमानों की सीमा तक उनकी क्षमता को भी चुनौती देते हैं, अधिक ठहराव की आवश्यकता पैदा करते हैं और शेड्यूलिंग व क्रू प्रबंधन को भी जटिल बनाते हैं। लुफ्थांसा, ब्रिटिश एयरवेज और एयर फ्रांस जैसी एयरलाइनों को भारी परिचालन लागत झेलनी पड़ी है, और उन्होंने इसका बोझ आंशिक रूप से यात्रियों पर महंगे टिकटों के रूप में डाल दिया है।
इसी तरह, भारत-पाकिस्तान के बीच हवाई क्षेत्र को लेकर तनातनी भी समय-समय पर क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी को प्रभावित करती रही है। 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक और उसके बाद पाकिस्तान द्वारा भारतीय उड़ानों के लिए हवाई क्षेत्र बंद करने के निर्णय ने महीनों तक उड़ानों को मोड़ने की स्थिति पैदा कर दी थी और करोड़ों डॉलर का नुकसान हुआ था। यह घटना दर्शाती है कि क्षेत्रीय शक्तियों के बीच मामूली अवधि के राजनीतिक तनाव भी वैश्विक विमानन व्यवस्था पर अत्यधिक व्यापक और महंगे प्रभाव डाल सकते हैं।
इस प्रकार, वैश्विक हवाई क्षेत्र का बढ़ता विखंडन एयरलाइंस के लिए केवल लंबी उड़ानों का ही संकेत नहीं है, बल्कि यह विमानन लॉजिस्टिक्स में एक गहरे रणनीतिक बदलाव का सूचक है। एयरलाइंस अब अधिक परिष्कृत भू-राजनीतिक जोखिम आकलन प्रणाली में निवेश कर रही हैं, अपने मार्गों में विविधता ला रही हैं, और लचीली शेड्यूलिंग अपना रही हैं। सरकारें भी अब अधिक सक्रिय हो गई हैं, जैसे यूरोकंट्रोल और एफएए की रीयल-टाइम एयरस्पेस अपडेट सेवाओं के माध्यम से जोखिमों की जानकारी साझा करना।
इस बदलाव का असर बेड़े और हवाई अड्डा रणनीति पर भी दिख रहा है। एयरलाइंस अब ऐसे ईंधन-कुशल विमानों को प्राथमिकता दे रही हैं, जैसे एयरबस A350 और बोइंग 787 ड्रीमलाइनर, जो लंबी दूरी की उड़ानों को अधिक किफायती बना सकते हैं। साथ ही, संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की और मध्य एशिया जैसे कूटनीतिक रूप से स्थिर देशों के हवाई अड्डे वैकल्पिक वैश्विक केंद्रों के रूप में उभर रहे हैं, जिससे विमानन का भौगोलिक संतुलन धीरे-धीरे स्थानांतरित हो रहा है।
अंततः, विमानन अब वैश्विक स्थिरता का सीधा संकेतक बन गया है। जो कभी निर्बाध अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव का प्रतीक था, वह अब अंतरराष्ट्रीय विभाजन का प्रतिबिंब बनता जा रहा है। ईरानी हवाई क्षेत्र से एयरलाइनों की लगातार दूरी, भले ही कूटनीतिक माहौल सुधर गया हो, केवल अस्थायी सतर्कता नहीं है—बल्कि यह इस व्यापक प्रवृत्ति का संकेत है कि अब वाणिज्यिक विमानन रणनीतियाँ स्थायी रूप से आधुनिक भू-राजनीति की अनिश्चितताओं को ध्यान में रखकर बनाई जाएंगी।
निष्कर्षतः, जैसे-जैसे वैश्विक संघर्ष अधिक जटिल और सामान्य होते जा रहे हैं, विमानन उद्योग को एक नई वास्तविकता के अनुरूप ढलना होगा—एक ऐसी दुनिया में जहाँ राजनीतिक तनाव, केवल बाजार या पर्यावरणीय चिंताओं से कहीं अधिक, आने वाले कल की उड़ानों की दिशा तय करेंगे। आकाश, जो कभी खुला और सीमा-रहित था, अब एक सतर्क और संघर्षपूर्ण क्षेत्र बनता जा रहा है।
आकांक्षा शर्मा कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
निजी हैं और कल्ट करंट का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।