बीजिंग में होने वाला आगामी ईयू-चीन शिखर सम्मेलन व्यापारिक विवादों के समाधान की दिशा में कोई बड़ी प्रगति लाने में असफल रहने की आशंका लिए हुए है। कूटनीतिक सूत्रों की मानें तो चीन ने इस शिखर बैठक को सिर्फ एक दिन तक सीमित कर दिया है और ब्रसेल्स में इसे आयोजित करने का यूरोपीय संघ का प्रस्ताव भी अस्वीकार कर दिया है।
यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी चिंता चीन के साथ उसका बढ़ता हुआ व्यापार घाटा है, जो 2023 में €400 बिलियन तक पहुंच गया। यूरोस्टेट के अनुसार, चीन से आयात €626 बिलियन रहा, जबकि निर्यात महज़ €226 बिलियन। यह असंतुलन वर्षों से बना हुआ है और अब ब्रसेल्स में इसे राजनीतिक रूप से असहनीय माना जा रहा है।
यूरोपीय आयोग ने बार-बार इस बात को उठाया है कि चीन में काम कर रही यूरोपीय कंपनियों को बाजार में समान अवसर नहीं मिलते। ज़बरदस्ती प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, संयुक्त उपक्रम की बाध्यता, लाइसेंसिंग में देरी, सरकारी खरीद में भेदभाव और अस्पष्ट नियमों जैसी समस्याएं प्रमुख हैं। इसके विपरीत, चीनी कंपनियों को यूरोपीय बाजारों में अपेक्षाकृत आसान पहुंच मिली हुई है।
इसका एक उदाहरण चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर ईयू की चल रही 'एंटी-सब्सिडी' जांच है, जो 2023 में शुरू की गई थी। इस जांच का मकसद यह देखना है कि क्या चीन की सरकार की भारी सब्सिडी ने उसके वाहन निर्माताओं को कृत्रिम रूप से सस्ते ईवी बेचने में सक्षम बनाया है, जिससे यूरोपीय कंपनियों को नुक़सान हो रहा है। आयोग के अनुसार, 2019 में 0.9% के मुक़ाबले अब चीनी ईवी ईयू बाज़ार में 8% हिस्सेदारी रखते हैं। यदि अनुचित प्रतिस्पर्धा की पुष्टि होती है, तो आयोग कार्रवाई का संकेत दे चुका है।
यूरोपीय संघ ने इसके जवाब में कुछ नए नियामक उपकरण भी लागू किए हैं। जुलाई 2023 में लागू विदेशी सब्सिडी विनियमन आयोग को यह जांचने का अधिकार देता है कि किसी बोलीदाता को विदेशी सब्सिडी का लाभ तो नहीं मिल रहा। इसके अलावा, क्रिटिकल रॉ मैटेरियल्स एक्ट के तहत ईयू ने लिथियम, कोबाल्ट और रेयर अर्थ जैसे खनिजों के मामले में चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने की दिशा में कदम उठाया है।
हालांकि बीजिंग ने बौद्धिक संपदा सुरक्षा को सख़्त करने के वादे किए हैं, फिर भी यूरोपीय कंपनियों को पेटेंट उल्लंघन, ज़बरदस्ती टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और न्यायिक समर्थन की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। 2024 के यूरोपीय चैंबर ऑफ कॉमर्स के बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे में 68% यूरोपीय कंपनियों ने माना कि चीनी बाजार पारदर्शी नहीं रहा, जबकि 40% से अधिक ने विदेशी कंपनियों के प्रति भेदभाव की शिकायत की।
वहीं चीन की कोशिश है कि बड़े व्यापारिक टकराव टाले जाएं, विशेषकर तब जब उसका पोस्ट-कोविड आर्थिक सुधार धीमा पड़ गया है। जीडीपी आंकड़े दिखाते हैं कि घरेलू खपत कमजोर है, युवा बेरोजगारी 15% के करीब है, और रियल एस्टेट क्षेत्र अब भी संकट में है। विश्लेषकों का मानना है कि बीजिंग इस सम्मेलन के माध्यम से संबंधों को स्थिर रखने की अपील कर सकता है, लेकिन व्यापारिक संरचना से जुड़े गहरे मसलों पर ठोस रियायतें देने के आसार नहीं हैं।
इन परिस्थितियों में, 2025 का ईयू-चीन शिखर सम्मेलन किसी निर्णायक मोड़ की ओर इशारा नहीं करता। यह सम्मेलन भले ही कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो, लेकिन दोनों पक्षों के बीच गहराई से जमे असंतुलन, अनुचित प्रतिस्पर्धा और बाजार पहुंच की बाधाएं जस की तस बनी हुई हैं। और सबसे अहम बात – दोनों में से कोई भी पक्ष इन मुद्दों के समाधान के लिए आवश्यक समझौता करने को इच्छुक नहीं दिखता।
धनिष्ठा डे कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
निजी हैं और कल्ट करंट का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।