क्या पानी बनेगा जंग का मैदान ?
संतु दास
| 01 May 2025 |
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पहलगाम में लहू बहा, और दिल्ली में सियासी हलचल तेज हो गई। भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया - वो समझौता जो दशकों से, युद्धों और आतंकी हमलों के बावजूद, भारत और पाकिस्तान को बांधे हुए था। यह फैसला सिर्फ एक रणनीतिक कदम नहीं, बल्कि पाकिस्तान की तरफ से किए गए हर जख्म का बदला था। लेकिन क्या भारत का यह कदम सही है? और इसका असर पाकिस्तान के साथ-साथ कश्मीर पर क्या होगा?
पाकिस्तान ने भारत की इस कार्रवाई को सीधे तौर पर ‘एक्ट ऑफ वार’ के रूप में देखने की धमकी दी है और यह भी कहा है कि वह जवाबी कदम के रूप में शिमला समझौते सहित भारत के साथ सभी द्विपक्षीय संधियों को रद्द कर सकता है। वहीं, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता और पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने एक उग्र जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अगर भारत ने सिंधु नदी का पानी रोका, तो सिंधु के पानी में भारतीयों का खून बहने लगेगा। इस तरह के धमकी भरे बयान ने दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को और भी विकराल बना दिया है, जिससे जंग की स्थिति और भी खतरनाक रूप ले सकती है।
1960 में बनी यह संधि भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के बंटवारे को लेकर हुई थी। इसके तहत भारत को पूर्वी नदियों - ब्यास, रावी और सतलज - पर पूरा अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों - सिंधु, झेलम और चिनाब - का पानी मिला। संधि में विवादों को सुलझाने के लिए स्थायी सिंधु आयोग, न्यूट्रल एक्सपर्ट और मध्यस्थता पंचाट जैसे उपाय भी दिए गए थे।
लेकिन क्या 1960 में बैठकर तय किया गया यह समझौता आज भी प्रासंगिक है? क्या पाकिस्तान ने कभी इस संधि का सम्मान किया? जवाब शायद 'नहीं' में है।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करके पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश की है। भारत का लक्ष्य है कि पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थन बंद करे, और कश्मीर में दखल देना बंद करे।
इस फैसले के बाद भारत अब पाकिस्तान को सिंधु नदी के पानी से जुड़ी जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं होगा, पश्चिमी नदियों पर बांध और जलाशय बना सकता है, और जलविद्युत परियोजनाओं पर पाकिस्तानी अधिकारियों की यात्राओं को रोक सकता है।
लेकिन क्या भारत के पास इतना बुनियादी ढांचा है कि वह पाकिस्तान का पानी रोक सके? फिलहाल जवाब है 'नहीं'। हालांकि, भारत कई जल परियोजनाएं शुरू कर चुका है - जैसे शाहपुरकंडी डैम, उझ डैम - जिनसे भविष्य में वह पाकिस्तान को जाने वाले पानी को कम कर सकता है।
सिंधु नदी पाकिस्तान की जीवन रेखा है। इसकी कृषि, ऊर्जा और शहरी जल आपूर्ति पूरी तरह से इस नदी पर निर्भर है। अगर भारत पाकिस्तान को पानी रोकता है, तो वहां भयानक जल संकट आ सकता है, जिससे कृषि उत्पादन में गिरावट, ऊर्जा संकट और सामाजिक अशांति फैल सकती है।
पाकिस्तान के नेता इसे 'जल युद्ध' की संज्ञा दे रहे हैं और इसे युद्ध की कार्यवाही के रूप में देख रहे हैं। पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने तो यहां तक कह दिया कि अगर भारत पानी रोकेगा, तो सिंधु में भारतीयों का खून बहेगा। क्या यह सिर्फ एक भड़काऊ बयान है, या पाकिस्तान सच में जंग के लिए तैयार है?
सिंधु जल संधि का निलंबन कश्मीर के लिए भी चिंता का विषय है। एक तरफ, कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के बाद कश्मीरी लोगों के मन में बदले और गुस्से की भावना है और भारत को हर तरीके से आतंकवाद को खत्म करने के लिए साथ देना चाहते हैं। तो दूसरी तरफ, अगर पाकिस्तान पर आर्थिक दबाव बढ़ाने के लिए पानी को हथियार बनाया जाता है, तो इसका असर कश्मीर पर भी पड़ेगा, क्योंकि पश्चिमी नदियों का उद्गम कश्मीर से ही होता है।
सिंधु जल संधि को निलंबित करना एक जटिल मुद्दा है, जिसके कई पहलू हैं। एक तरफ, यह पाकिस्तान पर दबाव बनाने का एक कारगर तरीका हो सकता है, लेकिन दूसरी तरफ, इससे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ सकती है और कश्मीरी लोगों को भी नुकसान हो सकता है।
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को सिंधु जल संधि को पूरी तरह से रद्द नहीं करना चाहिए, बल्कि पाकिस्तान के साथ बातचीत करके संधि में संशोधन करना चाहिए। इससे भारत को अपने हितों की रक्षा करने और पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन बंद करने के लिए मजबूर करने में मदद मिलेगी।
भारत का दृष्टिकोण आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर आधारित है। पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा, और इसके लिए हर संभव कदम उठाएगा, चाहे वह कूटनीतिक हो, आर्थिक हो, या सैन्य हो।
भारत को अपने हितों की रक्षा करने के लिए दृढ़ रहना चाहिए, लेकिन उसे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उसके फैसले का असर कश्मीरी लोगों और क्षेत्रीय स्थिरता पर न पड़े।
सिंधु जल संधि का निलंबन भारत और पाकिस्तान के बीच एक नए अध्याय की शुरुआत है। अब यह दोनों देशों पर निर्भर करता है कि वे इस स्थिति को कैसे संभालते हैं। अगर वे शांति और सहयोग का रास्ता चुनते हैं, तो वे इस संकट से उबर सकते हैं। लेकिन अगर वे टकराव का रास्ता चुनते हैं, तो उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
कश्मीर में शांति और स्थिरता लाने के लिए, भारत को पाकिस्तान के साथ सार्थक बातचीत करनी चाहिए, कश्मीरी लोगों के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए, और आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। तभी कश्मीर में अमन और चैन का सपना सच हो पाएगा।
ये सिर्फ पानी का बंटवारा नहीं है, ये दो देशों के भविष्य और एक घाटी के दर्द का सवाल है।