अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) को खुले तौर पर धमकी देते हुए वैश्विक राजनीति में एक बार फिर हलचल मचा दी है। यह घटनाक्रम सिर्फ एक व्यक्ति का बयान नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक भू-राजनीतिक परिदृश्य का हिस्सा है, जिसमें अमेरिका के विदेश नीति के प्राथमिकताएँ और बदलते वैश्विक समीकरण शामिल हैं। इसी संदर्भ में, एक अन्य घटनाक्रम - नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई टेलीफोन वार्ता, भी महत्वपूर्ण है, जो दोनों देशों के बीच संबंधों की जटिलताओं और वैश्विक मुद्दों पर उनके अलग-अलग दृष्टिकोण को उजागर करता है। इन दोनों घटनाओं को मिलाकर देखें तो, हमें एक ऐसी तस्वीर मिलती है जो अमेरिका की विदेश नीति के इरादों को दर्शाती है, और भारत के लिए इसके क्या मायने हो सकते हैं, इसका विश्लेषण करने की आवश्यकता है।
पहले इन दोनों नेता के बीच हुई बातचीत का विश्लेषण करते है। यह वार्ता अमेरिका-भारत के बीच रणनीतिक साझेदारी की पुष्टि करती है, जबकि दूसरी ओर, यह उन मुद्दों को उजागर करती है, जो दोनों देशों के लिए प्राथमिकता रखते हैं। इस बातचीत को कई दृष्टिकोण से देखा जा सकता है, खासकर जब वैश्विक स्तर पर अमेरिका-चीन संबंध और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति जैसे मुद्दे सामने हैं।
एक महत्वपूर्ण पहलू जो इस बातचीत से उभरकर आता है, वह है भारत और अमेरिका की प्रेस रिलीज़ में स्पष्ट भिन्नता। भारत की प्रेस रिलीज़ में बातचीत को एक सामान्य और औपचारिक रूप में प्रस्तुत किया गया है, जहां तकनीकी, व्यापार, निवेश, ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में साझेदारी की बात की गई है। वहीं, अमेरिका की प्रेस रिलीज़ में इंडो-पैसिफिक सुरक्षा, वैश्विक मुद्दों, और नरेंद्र मोदी के वाइट हाउस दौरे का उल्लेख प्रमुखता से किया गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका ने इस बातचीत को सुरक्षा और वैश्विक रणनीति के संदर्भ में देखा, जबकि भारत ने इसे एक सामान्य साझेदारी वार्ता के रूप में प्रस्तुत किया। यह अंतर दोनों देशों के आंतरिक और बाहरी संबंधों में इन भिन्नताओं के प्रभाव को दर्शाता है।
अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक सुरक्षा का जिक्र किया, जबकि भारत की प्रेस रिलीज़ में इसका कोई जिक्र नहीं था। यह स्पष्ट करता है कि अमेरिका की प्राथमिकता इस समय इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना है, और इसके लिए भारत को एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में देखा जा रहा है। क्वाड (अमेरिका, भारत, जापान, और ऑस्ट्रेलिया का समूह) की भूमिका भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि यह गठबंधन इस क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए बना है। हालांकि, भारत ने अभी तक इस क्षेत्र में अपनी भूमिका को बहुत अधिक उभारने से बचा रखा है, जो भारत की संतुलित विदेश नीति को दर्शाता है।
दोनों देशों की प्रेस रिलीज़ में एक सामान्य बिंदु जो उभरकर आया, वह था वैश्विक शांति और सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता। ट्रंप ने विशेष रूप से यूक्रेन और मध्य पूर्व के मुद्दों पर चर्चा की, जबकि भारत ने इन मुद्दों को उतनी प्रमुखता नहीं दी। यह दिखाता है कि अमेरिका, जो वर्तमान में यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, इन मुद्दों को अपनी प्राथमिकताओं में रख रहा है। भारत, जो अपनी गुटनिरपेक्ष नीति के तहत वैश्विक विवादों में सीधे तौर पर हस्तक्षेप से बचता रहा है, ने इस बातचीत में इन मुद्दों पर चर्चा को प्राथमिकता नहीं दी।
डोनाल्ड ट्रंप ने नरेंद्र मोदी को फरवरी में वाइट हाउस आने का निमंत्रण दिया, जबकि भारत की प्रेस रिलीज़ में इसका कोई जिक्र नहीं था। यह संकेत करता है कि अमेरिका ने इस बातचीत को एक उच्च स्तरीय कूटनीतिक अवसर के रूप में देखा, जबकि भारत ने इसे एक साधारण वार्ता के रूप में लिया। इससे यह प्रश्न उठता है कि भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में क्या कुछ अनकहे पहलू हैं, जिन्हें दोनों देश एक-दूसरे से अलग तरीके से देख रहे हैं।
अब ब्रिक्स देशों को ट्रंप के द्वारा धमाकाएं जाने पर भी बात हो जाए। दरअसल, ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को व्यापार में असमानता के लिए खुले तौर पर धमकाया है। उनका तर्क है कि अमेरिका इन देशों से आयातित सामानों पर इतना अधिक टैक्स लगाएगा कि इन देशों का माल अमेरिका में बिकना मुश्किल हो जाएगा। ट्रंप का कहना है कि अमेरिका इन देशों को माल बेचता है, तो ये देश टैक्स लगाकर अमेरिकी माल को महंगा कर देते हैं, जबकि वे अमेरिका में टैक्स नहीं लगाते हैं। इस "लॉपसाइडेड ट्रेड" को ठीक करने के लिए ट्रंप ने भारी टैरिफ लगाने की धमकी दी है। यह नीति अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग को वापस लाने और अमेरिकी नौकरियों को बचाने के उद्देश्य से प्रेरित है।
ट्रंप की नीति 'मेक इन अमेरिका' पर आधारित है, जो 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' जैसे नारों के समान है। उनका कहना है कि कंपनियां अमेरिका में ही उत्पादन करें, जिससे अमेरिकी लोगों को रोजगार मिले। ट्रंप ने अमेरिकी कंपनियों को अपने देश में कारखाने लगाने के लिए कर में छूट देने की बात कही है, साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि यदि कोई कंपनी अमेरिका में उत्पादन नहीं करती है तो उन्हें भारी टैक्स देना होगा। यह नीति न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। इससे कई देशों की सप्लाई चेन और व्यापारिक समीकरण प्रभावित हो सकते हैं।
ट्रंप ब्रिक्स देशों द्वारा डॉलर के विकल्प के रूप में एक समानांतर मुद्रा बनाने की योजनाओं को भी अस्वीकार करते हैं। उनका मानना है कि यह प्रयास अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने का एक प्रयास है, और वह इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। ट्रंप ने कहा है कि अगर ब्रिक्स देश डी-डॉलराइजेशन की तरफ बढ़ते हैं, तो वह उनके ऊपर और अधिक टैक्स लगाएंगे। अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है, और ट्रंप का यह रुख दर्शाता है कि वह इस स्थिति का इस्तेमाल अन्य देशों पर दबाव बनाने के लिए कर रहे हैं।
ट्रंप का ध्यान केवल मैन्युफैक्चरिंग पर ही नहीं है, बल्कि सेवा क्षेत्र पर भी है। उन्होंने कहा है कि अमेरिका में आईटी पेशेवरों की बजाय अच्छे वेटर, प्लंबर, कारपेंटर, डॉक्टर आदि की भी जरूरत है। ट्रंप के इस बयान का तात्पर्य है कि वह केवल आईटी क्षेत्र पर निर्भरता कम करना चाहते हैं और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में विविधता लाना चाहते हैं। यह नीति दिखाती है कि ट्रंप का लक्ष्य केवल तकनीकी उन्नति ही नहीं, बल्कि हर स्तर पर अमेरिकी नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना है।
ट्रंप ऊर्जा स्वतंत्रता पर भी जोर दे रहे हैं। उनका मानना है कि अमेरिका को कनाडा और सऊदी अरब से तेल खरीदने की बजाय खुद के तेल संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। उन्होंने अपने कार्यकाल में ड्रिलिंग को बढ़ावा दिया है और कहा है कि अमेरिका को अपने तेल संसाधनों का दोहन करके दुनिया भर में बेचना चाहिए, ताकि अमेरिकी खर्च को कम किया जा सके। यह नीति अमेरिका को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाना चाहती है और यह सुनिश्चित करना चाहती है कि अमेरिका को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए अन्य देशों पर निर्भर न रहना पड़े।
अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर ट्रंप की नीतियों ने मेक्सिकन ड्रग कार्टेल के साथ संघर्ष को जन्म दिया है। ट्रंप ने सीमा को सील कर दिया है, जिसके कारण ड्रग कार्टेल और अमेरिकी सुरक्षा बलों के बीच सीधी झड़पें हो रही हैं। ड्रग कार्टेल मानव तस्करी में भी शामिल हैं, और वे सीमा पर घुसपैठ कराने के लिए अमेरिकी सुरक्षा बलों पर हमला कर रहे हैं। यह स्थिति एक जटिल चुनौती प्रस्तुत करती है, जिसमें न केवल अमेरिका की सीमा सुरक्षा बल्कि दक्षिणी अमेरिका में ड्रग माफिया के बढ़ते प्रभाव को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
वास्तव में ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाली है। उनकी नीतियों का उद्देश्य अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना और अमेरिकी हितों की रक्षा करना है, लेकिन इसके लिए वह व्यापार युद्ध और अंतरराष्ट्रीय संघर्षों को भी बढ़ावा दे रहे हैं। नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच यह वार्ता एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक घटना है, जो दोनों देशों के बीच वर्तमान संबंधों और वैश्विक मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण को दर्शाती है। भारत और अमेरिका के बीच की प्रेस रिलीज़ में स्पष्ट भिन्नताएँ दिखाती हैं कि दोनों देश अपनी-अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार इस बातचीत को देख रहे हैं।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, क्वाड की भूमिका, वैश्विक शांति, और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा से यह साफ होता है कि दोनों देश एक व्यापक वैश्विक दृष्टिकोण साझा कर रहे हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण और प्राथमिकताओं में अंतर स्पष्ट है। यह परिदृश्य जटिल है और इसके लिए व्यापक विश्लेषण और रणनीतिक तैयारी की आवश्यकता है। भारत को अपनी गुटनिरपेक्ष नीति को बनाए रखते हुए अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी को संतुलित करने की आवश्यकता है, जबकि अमेरिका को यह समझना होगा कि भारत एक स्वतंत्र और शक्तिशाली राष्ट्र है जिसके अपने हित हैं। आने वाले समय में, इन जटिलताओं को कैसे सुलझाया जाता है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।