पूर्वोत्तर में चीनी बांध: भारत के लिए संभावित खतरे और समाधान

जलज वर्मा

 |  31 Dec 2024 |   105
Culttoday

चीन द्वारा यारलुंग सांगपो नदी (भारत में ब्रह्मपुत्र) पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने के प्रस्ताव ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और बांग्लादेश के लिए गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। इस कदम से न केवल पर्यावरणीय और सामाजिक संकट गहराएगा, बल्कि भारत की जल सुरक्षा को भी गंभीर खतरा हो सकता है।

यारलुंग सांगपो से ब्रह्मपुत्र तक: एक नदी, तीन नाम

यह नदी तिब्बत में यारलुंग सांगपो, अरुणाचल प्रदेश में सियांग और असम में ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है। बांग्लादेश में इसे जमुना कहते हैं। इसकी कुल लंबाई 2,880 किमी है, जिसमें से 1,625 किमी तिब्बत में, 918 किमी भारत में और 337 किमी बांग्लादेश में बहती है।

चीनी बांध की विशेषताएं और चिंताएं

चीन का प्रस्तावित बांध 137 अरब डॉलर की लागत से बनेगा और 60,000 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता वाला होगा।

  • भूकंप-संवेदनशील क्षेत्र: बांध जिस क्षेत्र में बनेगा, वह भूकंप के लिहाज से अत्यधिक संवेदनशील है।
  • पर्यावरणीय असंतुलन: बांध का निर्माण नदी के पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।
  • सिंचाई और बाढ़ का खतरा: गर्मियों में पानी रोककर सूखे की स्थिति उत्पन्न करना और बरसात में अतिरिक्त पानी छोड़कर बाढ़ लाने की आशंका है।
  • नदी का प्रवाह बदलने का खतरा: चीन नदी के प्रवाह को बदलकर उत्तरी चीन के सूखाग्रस्त क्षेत्रों की ओर मोड़ सकता है, जिससे भारत के पूर्वोत्तर और बांग्लादेश की जल आपूर्ति बाधित होगी।

पूर्व की घटनाएं: खतरे की झलक

  • 2000 में यारलुंग सांगपो की सहायक नदी में भूस्खलन के कारण अरुणाचल और असम में बाढ़ आई थी।
  • 2017 में आए भूकंप से बनी अस्थायी झीलें अब भी खतरा बनी हुई हैं।

भारत का जवाब: सियांग बहुउद्देशीय परियोजना

चीन के बांध के संभावित प्रभावों से निपटने के लिए भारत ने अरुणाचल प्रदेश में सियांग बहुउद्देशीय परियोजना की योजना बनाई है।

  • परियोजना का उद्देश्य:
    • बाढ़ नियंत्रण और सूखे की समस्या का समाधान।
    • चीन द्वारा छोड़े गए अतिरिक्त पानी को रोकने के लिए जलाशय निर्माण।
    • 11,000 मेगावाट बिजली उत्पादन।
  • चुनौतियां:
    • स्थानीय विरोध: परियोजना से 13 गांव डूब जाएंगे और 34 गांवों की आजीविका प्रभावित होगी।
    • पर्यावरणीय प्रभाव: पर्यावरणविदों ने इसे "वाटर बम" कहा है, जो कभी भी फट सकता है।
    • पुनर्वास की समस्या: स्थानीय आदिवासी अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

स्थानीय विरोध और सरकार की रणनीति

सियांग और अपर सियांग जिलों के आदिवासी परियोजना का कड़ा विरोध कर रहे हैं। वे इसे अपनी भूमि, आजीविका और पर्यावरण के लिए खतरा मानते हैं।

  • सरकार की प्रतिक्रिया:
    • पुनर्वास का आश्वासन।
    • परियोजना के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयास।
    • सुरक्षाबलों की तैनाती।

मुख्यमंत्री का दृष्टिकोण

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस परियोजना को राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास के लिए महत्वपूर्ण बताया है। उन्होंने कहा कि यह परियोजना न केवल बाढ़ और सूखे की समस्याओं को हल करेगी, बल्कि चीन के बांध के कारण उत्पन्न खतरों का मुकाबला करने में भी सहायक होगी।

भारत के लिए आगे की राह

  • राजनयिक प्रयास: चीन के साथ कूटनीतिक वार्ता के माध्यम से नदी जल समझौता सुनिश्चित करना।
  • स्थानीय सहमति: आदिवासियों और पर्यावरणविदों की चिंताओं को दूर करते हुए परियोजना को आगे बढ़ाना।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण: जल विज्ञान और भूकंप विज्ञान के विशेषज्ञों की सलाह से परियोजना की योजना बनाना।
  • पुनर्वास नीति: प्रभावित लोगों के लिए प्रभावी और मानवीय पुनर्वास योजनाएं लागू करना।

चीन का प्रस्तावित बांध भारत के लिए जल, पर्यावरण और सामाजिक दृष्टिकोण से गंभीर चुनौतियां पैदा कर सकता है। सियांग बहुउद्देशीय परियोजना इन खतरों का समाधान प्रदान कर सकती है, लेकिन इसे सफलतापूर्वक लागू करने के लिए स्थानीय लोगों की सहमति और पर्यावरणीय चिंताओं का समाधान करना अनिवार्य है। भारत को इस मुद्दे पर ठोस और संतुलित कदम उठाने होंगे ताकि पूर्वोत्तर का विकास और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।


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