क्या केंद्र से आदेश न मिलने तक भंसाली के मामले पर जांच शुरू नहीं होगी?

जलज वर्मा

 |  01 Feb 2017 |   43
Culttoday

बॉलीवुड के दिग्गज डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के साथ फिल्म पद्मावती के सेट पर जयपुर में शूटिंग के दौरान हुई हाथापाई और मारपीट की केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने निंदा की है. उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर ट्वीट कर कहा है कि संजय लीला भंसाली के साथ हाथापाई करना और फिल्म की शूटिंग बाधित करना बहुत आपत्तिजनक है. नायडू ने कहा कि उन्होंने इस सिलसिले में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से बात की है और उन्हें जरूरी कार्रवाई करने को कहा है.

जयपुर में भंसाली को थप्पड़ मारे, और उनके बाल भी नोचे गये. पूरी यूनिट को तहस-नहस कर दिया. तोड़फोड़ के कारण रोकनी पड़ी फिल्म की शूटिंग और बाद में वह मुंबई लौट गये यह शपथ लेकर कि वह राजस्थान में कभी शूटिंग नहीं करेंगे. हालांकि पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन मामला ज्यादा बड़ा हो गया है. बाद में पहुंची पुलिस ने मामले को शांत कराया. दरअसल, राजपूत समाज की संस्था करणी सेना का आरोप है कि भंसाली की फिल्म पद्मावती में रानी पद्मावती की छवि और इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. मौके पर पहुंची आमेर थाना पुलिस ने मामले को शांत कराया. हालांकि भंसाली या करणी सेना ने पुलिस में मुकदमा दर्ज नहीं कराया है. करणी सेना के संरक्षक लोकेन्द्र सिंह कालवी ने बताया कि राजपूत समाज और राजस्थान के लोग यह कभी सहन नहीं करेंगे कि फिल्म में रानी पद्मावती को अल्लाउद्दीन खिलजी की प्रेमिका बताया जाए. इतने में करणी सेना के फाउंडर लोकेंद्र सिंह ने अब भंसाली पर हमला बोला है. उन्होंने पूछा, क्या जर्मनी जाकर हिटलर के खिलाफ फिल्म बनाने की भंसाली की हैसियत है. ऐसे में यदि यह कहें कि संजय लीला भंसाली के साथ जो हुआ, वह भयावह है, तो शायद गलत नहीं होगा. 

यहां सवाल यह उठता है कि संजय लीला भंसाली क्या दिखाने जा रहे हैं, यह किसी को नहीं मालूम. केवल एक शूटिंग के आधार पर इस तरह का क़ुकृत्य करना हम जैसे संस्कारवाले भारतीयों के लिए शोभा नहीं देता. कोर्ट है, कचहरी है, कानून है, और कानूने के रखवाले भी हैं. हम दहशत की जिंदगी जी रहे हैं. कहने को तो हमारे पास अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सही है? क्या हम आजाद हैं? जब हमें यह नहीं पता कि वे क्या दिखाने जा रहे हैं, तो ऐसे में उन लोगों को किसने यह हक दिया कि एक फिल्मवाले को बीच सड़क में पीट दें. यदि किसी समाज को, या फिर किसी को कोई शिकायत है, आपत्ति है, तो पहले तो बात करनी चाहिए, और बात का तात्पर्य न निकले, तो हमारे देश में कानून है. विशेषज्ञ हैं. बहस हो, एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी लगे, लेकिन इस तरह की वहशी हरकत न हो, न हो तो बेहतर होगा. हम कानून का दरवाजा खटखटा सकते हैं. इस घटना के बाद नाराज और भयभीत हैं बॉलीवुड के सितारे. इस घटना पर अपना विरोध जताते हुए संजय लीला भंसाली की फिल्म बाजीराव मस्तानी में काशीबाई का किरदार निभा चुकी प्रियंका चोपड़ा ने ट्विटर पर लिखा, संजय लीला भंसाली के साथ हुई यह घटना बेहद भयावह है. मैं बहुत दुखी हूं. दरअसल, प्रियंका का दुखी होना स्वाभाविक है, क्योंकि हमारे पूर्वजों ने हमें हिंसा कभी नहीं सिखाई. ऐसा लग रहा है कि देश में गुंडाराज चल रहा है. श्रेया घोषाल डर गई हैं, और इसीलिए वह कहती हैं, जो हुआ है उससे मैं इतना डर गया हूं कि शब्दों में नहीं बता सकती. पूरी इंडस्ट्री इस घटना पर थू थू कर रही है. वैसे इस दौरान हमें अपने मतभेद भुलाकर इस घटना का पुरजोर विरोध करना चाहिए. अब यदि यह कहें कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धैर्य, यह दो लोकतंत्र के मूल पिलर हैं, अगर हमारे ये दो अस्त्र ही न रहें, तो हम किस चीज का विरोध करेंगे. 

 

सच तो यही है कि अपनी बात रखने के अहिंसक तरीके भी हो सकते हैं, इस बात की सम्यक जानकारी हमें नहीं है. यह अपराध है. हाल ही में रिलीज हुई फिल्म काबिल की ऐक्ट्रेस यामी गौतम ने ट्वीट किया, डराने और भयभीत करने वाली घटना. ऐसी घटना करने वालों को सजा मिलनी चाहिए. हम आपके साथ हैं संजय लीला भंसाली सर. वेंकैया जी ने भी इस पर कार्रवाई करने के लिए राजस्थान सरकार को कहा है. यहां मेरा एक मासूम सा सवाल है. क्या राजस्थान सरकार बिना केंद्र के आदेश के नहीं चलती. सरकार को केंद्र से आदेश मिलने के बाद ही वह इस कुकृत्य घटना की जांच बैठाएगी. क्या राजस्थान में यह गुुंडागर्दी आम है. क्या वहां कुछ भी होते ही सरकार को केंद्र के आदेश का इंतजार होता है. मतलब यह हुआ कि यदि किसी महिला सेलेब्स के साथ दुष्कर्म हो जाए, तो वहां की सरकार और पुलिस पहले इंतजार करेगी कि केंद्र इस बारे में क्या कहता है. सोशल मीडिया का क्या रेस्पॉन्स है. लोगों में उस विषय को लेकर जागरूकता है या नहीं. आम जनता किस तरह से रिऐक्ट कर रही है. इसलिए विरोध होता रहे, लेकिन जब तक केंद्र से आदेश नहीं आता, तब तक उस घटना की जांच करना संभव नहीं है. हालांकि राजस्थान के गृहमंत्री  जीसी कटारिया ने स्वीकारा है, ऐसे केस में गुस्सा आना स्वाभाविक है, लेकिन कानून को हाथ में नहीं लिया जाना चाहिए. बस बयान देकर हमारे मंत्री अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. घटना घटते ही बयान आ जाता है. कार्रवाई हुई कि नहीं, इस पर बयान नहीं आता. कार्रवाई करना है, इस पर भी बयान नहीं आता. बस बयान देकर खानापूर्ति कर दी जाती है. बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि यह बात याद रखने की है कि घटना एक बीजेपी शासित प्रदेश में हुई है. दरअसल, तेजस्वी इसलिए यह बात कह रहे हैं क्योंकि बीजेपी हमेशा यही कहती है कि हम स्वराज चाहते हैं, हम स्वच्छ भारत चाहते हैं, इसीलिए तेजस्वी ने कहा कि यह दुर्भाग्यचपूर्ण है कि बीजेपी शासित राज्य में ऐसा हुआ है.

दरअसल, हमारा मस्तिष्क ही हमारी तमाम गतिविधियों-गड़बड़ियों का केंद्र है, इसलिए उसे सही दिशा में साधने का प्रयास होना चाहिए. हमें हमेशा विवेक और बुद्धि से काम लेना चाहिए, जो कि हम नहीं लेते. विचलित मस्तिष्क हमारे लिए चिंताएं और मनमुटाव पैदा करता है और हमें एक दूसरे का रातों रात शत्रु बना देता है. अगर हम इन बीमारियों से बचना चाहते हैं, तो हमें विवेक, बुद्धि, संयम और शालीनता से काम लेना होगा, तभी हम एक दूसरे को, उनके कार्यों को, उनकी कार्यशैली को, उनकी चिंता शक्ति को समझ पाएंगे, अन्यथा इसी तरह बिना सोचे समझे यदि कोई काम करेंगे, तो उसका नतीजा भयावह ही होगा. अब यदि यह कहें कि इस घटना में भंसाली ने विवेक और बुद्धि से काम लिया और शूटिंग बंद करना ही उचित समझा, तो शायद गलत नहीं होगा. लेकिन फिर भी सवाल यह उठता है कि क्या बिना जाने, बूझे, समझे, कोई किसी पर हमला कर सकता है? 

(लेखक दैनिक राष्ट्रीय उजालाके कार्यकारी संपादक है, उपरोक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक  के हैं, इससे कल्ट करंट का सहमत होना आवश्यक नहीं है)


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