रुपया - रूबल, स्वतंत्र प्रवाह
संदीप कुमार
| 01 Dec 2025 |
11
वैश्विक शक्ति संतुलन कभी सेनाओं और युद्धपोतों से तय होता था, फिर तेल, गैस और समुद्री तंत्र इसकी भाषा बने। पर आज की दुनिया में सत्ता का नया निर्धारक उभर रहा है — डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ, मुद्रा निपटान और वित्तीय संप्रभुता। रूस और भारत द्वारा अपने राष्ट्रीय भुगतान नेटवर्क — मीर और रूपे — को जोड़ने की दिशा में निर्णायक कदम इसी परिवर्तन का सबसे जीवंत संकेत है। यह सिर्फ तकनीकी सुविधा नहीं, बल्कि डॉलर-केन्द्रित वैश्विक ढाँचे के सामने एक वैकल्पिक वित्तीय धुरी की स्थापना है।
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आगामी नई दिल्ली यात्रा इस प्रक्रिया को औपचारिक रूप दे सकती है। कुछ वर्ष पहले तक अंतरराष्ट्रीय भुगतान की दुनिया वीजा, मास्टरकार्ड और स्विफ्ट के आधिपत्य में थी, और दुनिया उसे ही अंतिम मानती थी। लेकिन पश्चिमी प्रतिबंधों ने स्वयं अपने ही ढाँचे में सुराख कर दिए। रूस पर लगाए गए वित्तीय प्रतिबंधों ने मास्को को झुकाने के बजाय उसे एक नई राह दिखा दी — उसने भुगतान नेटवर्क विकसित किया, और भारत की तरह अपनी डिजिटल संप्रभुता को आकार दिया। भारत का रूपे और यूपीआई आज केवल घरेलू भुगतान प्रणाली नहीं बल्कि दुनिया में सबसे तेज़ और व्यापक डिजिटल ढाँचों में से एक है। अब दोनों देशों का लक्ष्य इन प्रणालियों का एकीकरण करना है, ताकि व्यापार और लेन-देन किसी तीसरे देश या मुद्रा पर निर्भर न रहे।
यह कदम केवल पर्यटन, एटीएम कार्ड या क्यूआर भुगतान तक सीमित नहीं है। असली उथल-पुथल उस स्तर पर हो रही है जहाँ मुद्रा विनिमय पर नियंत्रण ही शक्ति का मापदंड बनता है। आज रूस और भारत के बीच 90 प्रतिशत व्यापार सीधे रूपया-रूबल या मित्र देशों की मुद्राओं में होता है — यानी डॉलर को दरकिनार करते हुए। तेल, कोयला, खाद — सभी सौदे ऐसे रास्तों से गुजर रहे हैं जिन पर पश्चिम की पकड़ नहीं। यह वित्तीय व्यवस्था नहीं, संप्रभुता का प्रदर्शन है — वह अधिकार जो कभी वाशिंगटन के बैंकिंग सिस्टम की कृपा पर निर्भर था।
रूस और भारत के भुगतान नेटवर्क के एकीकरण के बाद स्थिति और नाटकीय रूप से बदल सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार पहले चरण में मीर–रूपे जोड़ना संभव है, फिर अगला कदम होगा रूस की फास्टर पेमेंट सिस्टम और भारत की यूपीआई को सीधा जोड़ना। उस स्तर पर पहुँचने के बाद भुगतान न डॉलर में होंगे, न किसी अमेरिकी प्रणाली की अनुमति पर टिका हुआ रहेगा। लेन-देन की लागत लगभग तीस प्रतिशत तक घट सकती है, और व्यापारी क्यूआर कोड या मोबाइल वॉलेट से निपटान कर सकेंगे। जब व्यापार की धारा स्वतंत्र होती है, तो शक्ति समीकरण भी स्वतंत्र होते हैं।
पश्चिमी दुनिया के लिए यह परिवर्तन असहज है। उसकी पूरी वित्तीय सत्ता तीन खंभों पर खड़ी रही — ऊर्जा का मूल्य डॉलर में तय होना, भुगतान स्विफ्ट नेटवर्क से गुजरना, और वीजा–मास्टरकार्ड जैसा निजी ढाँचा पूरी दुनिया पर लागू होना। रूस–भारत भुगतान पुल इन्हीं खंभों में पहली दरार है। चीन पहले ही अपनी वैकल्पिक भुगतान प्रणाली तैयार कर चुका है। यदि भारत और रूस सफलतापूर्वक इस डिजिटल वित्तीय गठजोड़ को स्थापित करते हैं, तो पश्चिम की वित्तीय वर्चस्व-व्यवस्था केवल चुनौती नहीं झेलेगी, बल्कि धीरे-धीरे अपनी केंद्रीयता खोने लगेगी। यह भविष्य का संकेत नहीं — यह भविष्य का प्रारूप है।
इस पूरी प्रक्रिया में भारत की भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह देश न मॉस्को की छाया है न वाशिंगटन का छात्र। वह स्वयं एक ध्रुव है, जिसका भू-राजनीतिक लक्ष्य स्पष्ट है — अपने हितों, अपनी ऊर्जा सुरक्षा और अपनी वित्तीय संप्रभुता को सर्वोपरि रखना। यही कारण है कि रूस–भारत भुगतान संपर्क सिर्फ तकनीकी जोड़ नहीं बल्कि शक्ति-मानचित्र का पुनर्संरेखन है, जहाँ एशिया महज़ बाज़ार नहीं बल्कि निर्णयकर्ता बनकर उभर रहा है।
रूस और भारत का यह कदम दुनिया को तीन बातें स्पष्ट संदेश देता है — वित्तीय स्वतंत्रता अब कूटनीति का परिशिष्ट नहीं, बल्कि शक्ति का केंद्र है; डिजिटल भुगतान महासागर है जिसे पुराने साम्राज्य बाँध नहीं पाएँगे; और ग्लोबल साउथ अब उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता है।
संक्षेप में, पश्चिम अभी भी प्रतिबंधों की दीवारें खड़ी कर रहा है, जबकि भारत और रूस नए गलियारे बना रहे हैं। भविष्य उन दीवारों का नहीं जो विश्व को विभाजित करती हैं, बल्कि उन रास्तों का है जो दो महाद्वीपों को जोड़ते हैं और पूरी प्रणाली को बदल डालते हैं। यह सिर्फ वित्तीय सुविधा नहीं — यह एक नई विश्व-व्यवस्था का प्रारंभिक खाका है।