बिहार के समस्तीपुर जिले के विद्यापति नगर प्रखंड का हरपुर बोचहा पंचायत ने मिसाल कायम की और सर्वोत्तम पंचायत का दर्जा हासिल पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट किया था. केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रलय ने सर्वोत्तम पंचायत का पुरस्कार दिया था. इसके लिए हरपुर बोचहा पंचायत को लगभग 2.50 करोड़ रु पये की राशि इनाम में दी गई थी. इस राशि को पंचायत के विकास कार्य पर खर्च किया गया. उन्होंने कहा कि पंचायत में कोल्ड स्टोर कार्य भी पूरा किया गया . जिससे किसानों को लाभ को मिलेगा. इस पंचायत के पूर्व मुखिया प्रेमशंकर सिंह ने हरपुर बोचहां को राष्ट्रीय मानचित्न पर स्थान दिलाने में अथक प्रयास किया. काम के बदौलत सन 2001 और 2006 में मुखिया निर्वाचित हुए. सन 2011 में मुखिया की सीट जब महिला के लिए रजिर्व हो गयी तब प्रेमशंकर सिंह ने अपनी भाभी को मैदान में उतारा जिन्हे जनता ने अपना मुखिया चुन लिया. इस चुनाव में ही प्रेमशंकर सिंह उपमुखिया के पद पर निर्वाचित हए. पंचायत के विकास में प्रेमशंकर सिंह की बहुत बड़ी भूमिका है.
हरपुर बोचहां पंचायत शुरू से ही बाढ़ और सुखाड़ से अभिशप्त रहा है. प्रकृति की दोनों मार को यह पंचायत हमेशा सहता रहता था. इस हालात में 65 सौ एकड़ जमीन में खेती करना इनके लिए एक चुनौती बन गयी थी. इस जमीन में एक खास बात यह भी था कि इसमें से 42 सौ एकड़ जमीन गांव की किसानों की पुश्तैनी जमीन थी. प्रेमशंकर सिंह जब मुखिया बने तब उन्होंने इस जमीन को चुनौती के रूप में लिया और इस जमीन पर खेती करने की ठानी. इसके लिए उन्होंने इस जमीन को हरा-भरा बनाने और किसानों की आर्थिक हालात के लिए स्थायी तौर पर एक योजना तैयार किया. सबसे पहले इस जमीन में सिंचाई की पानी को पहुंचाने की चुनौती को लिया गया. इस काम के लिए तीन बड़े पोखरों का निर्माण कराया गया. लगभग तीन हजार एकड़ की जमीन को पहली बार पानी से सींचा गया. इसके बाद नहर का निर्माण कराया गया जिसकी लंबाई तीन किलोमीटर के करीब थी. इस नहर के जरिये नदी का पानी खेतों तक आने लगा. ग्रामसभा की दूरिदर्शता और स्थानीय लोग और किसानों की मेहनत ने अपना असर दिखाया. बेकार जमीन पर हरियाली छा गयी. इसके बाद 10 एकड़ जमीन पर मछली पालन और मुर्गीपालन का काम शुरू किया गया. इसक सुखद परिणाम सामने आया. गांव के युवा बड़े पैमाने पर इसमें रु चि लेने लगे. रोजगार उपलब्ध कराने को लेकर यह पंचायत की यह पहल बहुत अच्छी थी.
प्रतिव्यक्ति आय में हुई बढ़ोत्तरी
गांव के लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मुहैया कराने को लेकर गंभीरता से विचार किया गया. इसके लिए सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं से लाभ लेने की योजना बनाई गयी. मनरेगा जैसी योजना के जरिये मजदूरों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिला. इसका शानदार परिणाम यह आया कि मजदूरों का पलायन रूक गया और प्रतिव्यक्ति आय में आश्र्चयजनक रु प से 552 रु पये से बढ़ कर 1664 रु पये की वृद्धि हो गयी.
पर्यावरण पर दिया गया ध्यान
एक और खासियत ले इस पंचायत को इस क्षेत्न में ब्रांड बनाया. वह है मंदिर और तालाबों की संख्या. पंचायत का एक भी गांव ऐसा नहीं है, जहां तालाब और मंदिर न हो. यह पुरखों की देन है, लेकिन नयी पीढ़ी इस परंपरा को आगे बढ़ाने में तत्पर है. इसकी एक बानगी देखिए. वर्ष 12-13 में इस पंचायत में मनरेगा के तहत करीब 44 लाख रु पये का काम हुआ. इसमें से 27 लाख रु पये पौधारोपण पर खर्च किये गये. इस ने इस गांव को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्न में ब्रांड बनाया. यह पंचायत जिले के नावा नगर प्रखंड मुख्यालय से महज 12 किलो मीटर दूर है.
पर्यावरण और हरियाली को ध्यान में रख कर पंचायत ने कुछ अलग करने को सोचा और नहर एवं सड़क किनारे की भूमि पर पंचायती योजना के तहत लगभग छह किलोमीटर तक पौधारोपण किया गया. इस पौधारोपण का ही परिणाम है कि आज करीब तीन हजार पौधे हरियाली प्रदान कर रहे है. इसमें सबसे अहम बात यह भी है कि इन पौधों में ज्यादातर फलदार पौधे हैं जो आर्थिक आय का बड़ा आधार है.
शिक्षा में किया सुधार
शिक्षा में सुधार लाने के लिए ग्रामसभा ने व्यापक पहल की.सरकार से सात नये विद्यालय की स्थापना की मंजूरी ली गई. पहले से एक प्राथमिक और मध्य विद्यालय यहां स्थापित थे. सन् 2001 में इस पंचायत के जहां 46 प्रतिशत लोग शिक्षति थे आज यह आंकड़ा तकरीबन 65 प्रतिशत तक पहुंच गया है.
स्वच्छता और पेयजल की हुआ गुणात्मक सुधार
पंचायत के सभी बीपीएल परिवारों के पास इंदिरा आवास मिल चुका है. लगभग हर घर में सौर ऊर्जा द्वारा पेयजल आपूर्ति को सुनिश्चित किया गया. 50 प्रतिशत से ज्यादा बीपीएल घरों में शौचालय की सुविधा है.
महिला मृत्यु दर में कमी
महिलाओं में जागरूकता आने का एक परिणाम यह भी सामने आया कि महिला अपने अधिकार को जानने लगी. पंचायत के लिंगानुपात में सुधार आया और महिला मृत्यु दर में भारी गिरावत आयी.
(संदीप कुमार कल्ट करंट के पटना ब्यूरो प्रमुख हैं)