सरकार ने आज तुरंत प्रभाव से रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क 50 प्रतिशत से घटाकर 45 प्रतिशत और कच्चे पाम तेल (सीपीओ) पर आयात शुल्क 40 प्रतिशत से घटाकर 37.5 प्रतिशत कर दिया. उद्योग ने सरकार के इस कदम का यह कहते हुए विरोध जताया है कि इससे घरेलू रिफाइनरों को नुकसान होगा.
इस संबंध में वित्त मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी की है. अधिसूचना में कहा गया है कि यह शुल्क कटौती आसियान समझौते और भारत-मलेशिया व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (आईएमसीईसीए) के तहत की गई है. इस कदम का विरोध करते हुए सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) ने कहा कि आयात शुल्क में इस कटौती के बाद कच्चे पाम तेल और रिफाइंड पाम तेल के बीच शुल्क का अंतर 10 प्रतिशत से घटकर 7.5 प्रतिशत रह गया है.
सीईए के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने एक बयान में कहा कि इससे घरेलू पाम तेल रिफाइनिंग उद्योग और तिलहन किसानों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. हमें इस बात का डर है कि इससे रिफाइंड पाम तेल आयात में इजाफा होगा और हमारे उद्योग की स्थापित क्षमता पर असर पड़ेगा जिससे परिणामस्वरूप रोजगार जाने की आशंका है.
लंबे समय बाद घरेलू तिलहन की बिक्री इनके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक स्तर पर होने लगी थी. उन्होंने कहा कि कम आयात शुल्क के कारण एमएसपी प्राप्त करना भी मुश्किल हो जाएगा और तिलहन किसानों के उत्साह में कमी आएगी. उन्होंने कहा कि देश का खाद्य तेल आयात अब उपभोग के 70 प्रतिशत भाग को छू रहा है. शुल्क में इस कटौती से उत्पादकता में कमी आएगी और यह घरेलू तिलहन उत्पादन बढ़ाने के सरकार के घोषित लक्ष्य के विपरीत होगा.
एसईए ने इस बात पर जोर दिया है कि भारत को भी मलेशिया और इंडोनेशिया की तरह किसानों के हितों का संरक्षण करना चाहिए. संगठन ने कहा कि इंडोनेशिया ने 1 जनवरी से कच्चे पाम तेल पर 50 डॉलर और रिफाइंड पाम तेल पर 30 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगा दिया है. इसी तरह मलेशिया ने कच्चे पाम तेल पर 31 प्रतिशत आयात शुल्क लगाया है और रिफाइंड पाम तेल पर निर्यात शुल्क शून्य कर दिया है. इस तरह प्रभावी शुल्क अंतर मुश्किल से केवल 2.5 प्रतिशत ही है.
उद्योग के संगठन ने कहा कि हम सरकार से उचित कदम उठाकर कच्चे पाम तेल और रिफाइंड पाम तेल के बीच शुल्क अंतर बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने का अनुरोध करते हैं.