नीतीश कुमार को छका पाएंगे तेजस्वी?

संदीप कुमार

 |  15 Oct 2020 |   51
Culttoday

बिहार के राघोपुर से विधायक तेजस्वी यादव  ने एक बार फिर उसी सीट से नामांकन किया है, लेकिन कहा है कि अगर नीतीश कुमार  उनकी चुनौती स्वीकार कर लेते हैं तो वो एक और सीट से चुनाव लड़ सकते हैं - और ये चैलेंज बेरोजगारी  को चुनावी मुद्दा बनाने से अलग है.

बतौर आरजेडी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव पहली बार राघोपुर से चुनाव मैदान में उतर रहे हैं - और ये वही राघोपुर है जहां से विधायक बन कर उनके पिता लालू यादव मां राबड़ी देवी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. वैशाली जिले का राघोपुर विधानसभा क्षेत्र बरसों से लालू परिवार का गढ़ रहा है. लालू यादव 1995 और 2000 में इसी सीट से विधानसभा पहुंचे थे, जिसे बाद में राबड़ी देवी के हवाले कर दिया.
तेजस्वी यादव का मुकाबला बीजेपी उम्मीदवार सतीश कुमार यादव से होने जा रहा है. खास बात ये है कि सतीश यादव 2010 में राबड़ी देवी को जेडीयू उम्मीदवार के तौर पर शिकस्त भी दे चुके हैं. 2015 में भी राघोपुर से ही चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन आरजेडी के साथ गठबंधन होने के कारण नीतीश कुमार ने बोल दिया कि वो कोई और सीट चुन लें. तब तक लालू यादव तय कर चुके थे कि तेजस्वी राघोपुर और तेज प्रताप यादव महुआ से चुनाव लड़ेंगे. वैसे तेज प्रताप यादव ने अपना चुनाव क्षेत्र बदल कर हसनपुर कर लिया है. बड़ा भाई होने के नाते तेज प्रताप नामांकन भी पहले ही कर चुके हैं. 
2015 में जब जेडीयू से टिकट नहीं मिला तो सतीश कुमार ने पार्टी छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर लिया, लेकिन तेजस्वी यादव से चुनाव हार गये - नीतीश कुमार के एनडीए में आ जाने के बाद इस बार राघोपुर की सीट बीजेपी ने अपने पास ही रखा और उम्मीदवार भी नहीं बदला है.
राघोपुर से नामांकन भरने से पहले तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को चुनाव लड़ने की चुनौती दी, बोले - वैसे तो हम राघोपुर से नामांकन भरने जा रहे हैं, लेकिन नीतीश जी नालंदा की किसी भी सीट से नामांकन करें तो हम भी वहां से नामांकन दाखिल करेंगे. नालंदा, दरअसल, नीतीश कुमार का गृह जनपद है और फिलहाल वो विधान परिषद के सदस्य हैं.
तेजस्वी यादव जब नामांकन के लिए निकल रहे थे तो राबड़ी देवी ने उनको दही खिलायी और फिर वो मां के साथ साथ बड़े भाई तेज प्रताप यादव का पैर छूकर आशीर्वाद लिया. राबड़ी देवी जब नामांकन के लिए तेज प्रताप को विदा कर रही थीं तो वो अपने हाथों में लालू यादव की तस्वीर लिये हुए थीं.
राबड़ी देवी, दरअसल, खास मौके पर लालू यादव की मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश कर रही थीं. एक वजह तो भावनात्मक लगती है, जिसमें बेटे को पिता का आशीर्वाद दिलाने की कोशिश है, लेकिन दूसरी तो साफ तौर पर राजनीतिक मानी जाएगी.

मौके पर लालू यादव की तस्वीर का प्रदर्शन यूं भी ध्यान तो खींच ही रहा था, इसलिए भी क्योंकि आरजेडी दफ्तर पर जो पोस्टर लगा है उसमें सिर्फ तेजस्वी यादव की तस्वीर है - न तो लालू यादव की है, न राबड़ी देवी और न ही तेज प्रताप और मीसा भारती की. फिर नामांकन के मौके पर राबड़ी देवी हाथ में लालू यादव की तस्वीर लेकर क्या मैसेज देने की कोशिश कर रही थीं?  असल में तेजस्वी यादव बीजेपी और नीतीश कुमार के जंगलराज के आरोपों को लेकर कई बार माफी मांग चुके हैं - और कोशिश है कि लोग बीती बातें भुलाकर तेजस्वी को एक फ्रेश चेहरे के तौर पर देखें और नयी उम्मीदों के साथ एक बार फिर आरजेडी को सत्ता का मौका दें. साथ ही साथ, तेजस्वी यादव ये बताना भी नहीं भूलते कि उनकी पार्टी वादे को लेकर कितनी पक्की है. तेजस्वी यादव की कोशिश जैसे भी संभव हो 10 लाख नौकरी देने के अपने वादे पर यकीन दिलाने की कोशिश होती है. तेजस्वी यादव का कहना है 2015 में जेडीयू के साथ आरजेडी का चुनावी गठबंधन था और जेडीयू की सीटें कम आने के बावजूद आरजेडी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने का वादा निभाया - और अब ठीक वैसे ही महागठबंधन की सरकार बनती है ति 10 लाख युवाओं को रोजगार देने का वादा पूरा किया जाएगा.
सुशांत सिंह राजपूत केस चुनावी मुद्दा तो बना नहीं, न ही महाराष्ट्र-हरियाणा, झारखंड और दिल्ली चुनावों की तरह धारा 370, नागरिकता कानून, अयोध्या में राम मंदिर जैसे मुद्दों के लिए जगह बन पा रही है. बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने करीब करीब पांच साल पुरानी चेतावनी ही नये तरीके से दोहरायी है. 2015 में अमित शाह ने कहा था कि अगर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी तो पाकिस्तान में पटाखे छूटेंगे - अब नित्यानंद राय कह रहे हैं कि इस बार ऐसा हुआ तो कश्मीर की तरह बिहार आतंकवादियों का अड्डा बन जाएगा.
ये तो मानना पड़ेगा कि तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरी की बात कर बड़ा एजेंडा सेट कर दिया है और अब बीजेपी की तरफ से बस रिएक्शन दिया जा रहा है. चुनाव में बेरोजगारी और विकास जैसे जरूरी मुद्दों पर बात होने लगे इससे बड़ी बात क्या हो सकती है भला. बीजेपी जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धियों का बखान कर रही है, वहीं नीतीश कुमार अपने 15 साल के काम घूम घूम कर गिना रहे हैं.
रोजगार के वादे के साथ साथ तेजस्वी यादव का कहना है कि आरजेडी के पिछले शासन में गरीबों का सामाजिक विकास हुआ और अब सत्ता में आने पर आर्थिक विकास किया जाएगा. तेजस्वी का बीपीएल मुक्त बिहार और 10 लाख नौकरियों के वादे ने नीतीश कुमार की नींद हराम कर दी है. डिप्टी सीएम सुशील मोदी के बेरोजगारी पर दिये बयान पर राबड़ी देवी ने जोरदार हमला बोला है -
बड़ी बात ये भी है कि नीतीश कुमार ने दलित परिवार में हत्या होने की सूरत में घर में एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने का वादा किया तो तेजस्वी यादव ने तीखी आलोचना की. बोले कि ये तो हत्या का बढ़ावा देने जैसा है. तेजस्वी यादव ने ये भी कहा कि नौकरी देने में भेदभाव क्यों - नौकरी की जरूरत सबको है तो सबको मिलनी चाहिये.
एक अनुमान के मुताबिक बिहार की आबादी अभी 12.5 करोड़ है और उसमें 58 फीसदी युवा हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक बिहार में 18 से 19 साल के 7.14 लाख वोटर हैं और 30 से 39 साल के करीब दो करोड़ मतदाता है. साफ है तेजस्वी यादव ने इस युवा वोट बैंक को ध्यान में रख कर ही सत्ता में आने पर कैबिनेट की पहली ही बैठक में पहली दस्तखत से 10 लाख नौकरी के इंतजाम करने का वादा किया है.  नीतीश कुमार ने भी रोजाना 10 लाख रोजगार का वादा किया है, लेकिन वो भूल रहे हैं कि मनरेगा के जरिये रोजगार और सरकारी नौकरी का फर्क सबको अच्छी तरह मालूम है. यूपी में अखिलेश यादव का छात्रों को मुफ्त लैप-टॉप और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के मुफ्त बिजली-पानी के वादे का असर देखा जा चुका है. भले ही तेजस्वी यादव के वादे को नीतीश कुमार ये कह कर खारिज कर रहे हों कि बड़ी तादाद में लोगों को सरकारी नौकरी देना संभव ही नहीं है - लेकिन लगता है वो भूल रहे हैं कि अगर लोगों ने तेजस्वी के वादे को 'अच्छे दिन...' की तरह मन में बिठा लिया तो एक बार फिर उनको 2014 जैसे नतीजे निराश भी कर सकते हैं.
 


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