प्यारे देशवासियों, आपको सब पता है, वह भी पता है जो आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को भी नहीं पता है. तभी तो आप इतने खुश हुए जा रहे हो जितने ये दोनों भी नहीं हैं. आपने इनसे पहले ही मान लिया कि अब आपकी मेहनत की कमाई से कोई कालाधन वाला नहीं बन पाएगा. बताइए यही संविधान था, यही कानून था, इसी तरह के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री थे, इसी तरह के आरबीआई गवर्नर थे, लेकिन पिछले करीब 70 वर्षों से आपके रुपये से कालाधन वाले बन जा रहे थे. अब भला कोई बन कर दिखाए. ऐसा कर दिया गया है कि अब आपके पास जब रुपया रहेगा ही नहीं तो कौन-कैसे बन सकेगा कालाधन वाला. बस इतनी सी बात आपको पहले से नहीं पता थी जबकि आपको सब पता होता है.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी कहां रुपये के बारे में कुछ पता था और उनके काबिल वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने रुपया देखा ही नहीं था, तो बेचारे क्या जानते रुपये और कालाधन के बारे में. पर आप तो जनता हो, आप तो लाल बुझक्कड़ हो, आप तो सर्वज्ञ हो. कितना दुख और आश्चर्य होता है कि सारी राजनीतिक पार्टियां आपको सबसे बड़ा विद्वान और जानकार कहते नहीं थकतीं और आप हैं कि निरा बुद्धू निकले. यही काम आप पहले ही अपने आप 2014 में सरकार बनने की शुरुआत में ही कर दिए होते तो आखिर मोदीजी को इतनी जहमत क्यों उठानी पड़ती और अपनी जान क्यों जोखिम में डालनी पड़ती. क्या वह कोई अपने लिए यह सब कर रहे हैं. क्या करेंगे अपने लिए कुछ करके, आखिर है कौन उनका? कुछ एक यार-दोस्त हैं, वह भी कोई लंगोटिया या बचपन के नहीं. अभी कोई तीन-चार साल के बीच बने हैं. उनके लिए वे क्या करेंगे, कर भी क्या सकते हैं. वे जो कुछ करते आप ही के लिए करते. इस सबमें न लगना पड़ता तो देश के लिए कुछ अच्छा करते.
आप ही लोगों ने उन्हें इन्हीं छोटे-छोटे कामों में उलझा कर रख दिया है. अगर आप शुरू में ही समझ जाते और खुद ही पहल कर दिए होते तो क्या जरूरत थी प्रधानमंत्री को रात-रात भर जागकर सोचने और गुरिल्ला युद्ध छेड़ने की. वह तो बहुत सम्मान और सलीके से आपको लगातार बता रहे थे कि आपके पास एक रुपये, दो रुपये, जो भी हैं, सरकार को देते जाइए. आप खुद को इतने समझदार समझ रहे थे कि कुछ कर ही नहीं रहे थे. मुफ्त में खाते खुलवा लिए और रुपये तकिया-गद्दे के नीचे और बोरों में रखने लगे. असल में आप समझ रहे थे कि आपके प्रधानमंत्री बुद्धू हैं, चाय बेचने वाले हैं. वह तो घर में भी नहीं रहे. बचपन में ही घर और सयानेपन में पत्नी को छोड़कर चले गए थे. उन्हें क्या पता कि गरीब रुपये किस-किस तरह छुपाकर रखता है. जब आपको ही पचासों सालों में कभी पता नहीं चला कि आपकी पत्नी कितने रुपये बोरों और तकियों के नीचे छिपा कर रखे हुए हैं, तो इसी तर्क पर यह भी मान लिए कि प्रधानमंत्री को भी नहीं पता होगा. अब तो मान गए लोहा न प्रधानमंत्री का? विदेश से कालाधन नहीं ला पाए और 15-15 लाख रुपये आपके खाते में नहीं जमा करा पाए तो आपने आसमान सिर पर उठा लिया. याद है आप लोगों को आपने कितनी गालियां दी थीं प्रधानमंत्री को. यहां तक कहने लगे थे कि कैसा प्रधानमंत्री बना दिया, जिसे यह भी पता नहीं था कि विदेश से पैसा नहीं लाया जा सकता.
इतना आसान होता तो क्या मनमोहन सिंह जी और अटल जी न उठा लाए होते. प्रधानमंत्री को असल में देश को सोने की चिड़िया बनाना है और वह कभी विदेशियों के भरोसे ऐसा नहीं करना चाहेंगे. विदेशियों को वह कतई पसंद नहीं करते. कभी-कभार पर्यटन के लिए या मन बहलाने के लिए हफ्ते-दस दिन में अगर कहीं बाहर चले जाते हैं, तो आप यह कैसे मान लेते हैं कि वह रुपये लाने गए हैं. वह तो बस ऐसे ही थोड़ी तफरी लेने, आप लोगों की काहिलियत से परेशान होकर थोड़ी ऊर्जा अर्जित करने चले जाते हैं. उनका तो स्वदेश में ही विश्वास है और वह सब कुछ स्वदेश से ही करना चाहते हैं. अब देखिए न गोबर से लेकर गणेश तक और मंजन से लेकर जहाज तक सब कुछ प्राकृतिक एलोवेरा वाला नहीं बनाने लगे हैं अपने स्वदेशी बाबा रामदेव जो बाबा भी हैं व्यापारी भी. कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी वाला कहां टिक पा रहा है उनके सामने. चीन तक को धता बता दिया, बड़ा आया था झालर-छुरछुरिया बेचने.
हमारे गांवों में एक कहावत है बुद्धिमान के आगे झौवा रखा जाता है, तो यह नहीं कहा जाता है कि इस धान को उठा कर ले जाओ घर के भीतर रख दो. हमारे प्रिय प्रधानमंत्री ने आने के साथ ही आपके सामने झौवा रखना शुरू कर दिया था, लेकिन आप हैं कि अपनी समझदारी के आगे किसी को गिनते ही नहीं. जब वह स्वच्छता लेकर आए थे, तब भी गीता के उपदेश की तरह कहा था कि जिस दिन सभी देशवासी चाह लेंगे और थोड़ा-थोड़ा योगदान कर देंगे, उस दिन देश से गंदगी साफ हो जाएगी. आपने चाहा, नहीं चाहा. नहीं चाहा तो मजबूरी में देश की सफाई की खातिर आप पर बड़ा सा थोड़ा टैक्स लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा. हमारे प्रधानमंत्री सहज तो कोई काम कर ही नहीं पाते, उन्हें हर काम मजबूरी में करना पड़ता है. आप उन्हें मजबूर जो कर देते हैं. अब देखिए हो गया न देश साफ. कहीं किसी प्रकार की गंदगी दिखती है आपको, नहीं दिखती न.
हमारे प्रधानमंत्री कभी हार मानने वाले नहीं हैं, न आपकी तरह थक कर बैठ जाने वाले हैं. आप लोग नहीं माने तो जनधन खाता खुलवा दिए कि शायद अब आप समझ जाएं, लेकिन आप की समझदारी की अकड़ कोई आज की तो थी नहीं, वह तो पिछले 70 सालों में बनी थी. आप तो मानकर बैठे थे कि पहले की ही तरह कालाधन जमा करते रहेंगे और सरकार परेशान होती रहेगी अपने दोस्तों को थोड़ा-मोड़ा भी देने के लिए. इत्ता भी नहीं समझे कि आप जो थोड़ा-थोड़ा कालाधन हारी-गाढ़ी के लिए दीवारों के पीछे छिपाकर रख रहे हो, उसे इस खाते में ही डाल दो ताकि प्रधानमंत्री का काम कुछ आसान हो सके. आपने वह भी नहीं किया. खाता भी खुलवा दिया, तब भी रुपये गद्दे के नीचे. यह तो हमारे प्रधानमंत्री की महानता है कि इसके बाद भी आपको परेशान नहीं किया और न ही आपकी समझदारी पर कोई सवाल उठाया. एक के बाद, अपने स्तर पर प्रयास करते रहे. कभी किसान बीमा लेकर आए तो कभी फसल बीमा लेकर तो कभी स्मार्ट कार्ड लेकर आए, लेकिन आप थे कि कुछ भी सुनने-मानने को तैयार ही नहीं. रेल में भी एक रुपया बीमा कराया कि चलिए कुछ नहीं करते तो दक्षिणा की तरह एक रुपया ही हर टिकट के साथ दे दीजिए. वह भी करने को आप तैयार नहीं हुए. जरा सोचिए, ऐसे में कोई प्रधानमंत्री क्या करेगा? किसी को समझ में ही नहीं आ रहा था कि रेल टिकट के साथ एक रूपये के बीमा का मतलब क्या होता है? समझ में तब आया जब पुखराया हो गया. आया कि नहीं आया. पहले बात मान लिए होते तो हो सकता है कि पुखराया की नौबत ही नहीं आती.
अब प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और भाजपा नेता भले न बोल रहे हों, आंकड़े तो बोल रहे हैं. 97 प्रति बैन नोट बैंक में आ चुके हैं. लोगों के पैसे अभी भी नहीं निकल रहे हैं, न निकट भविष्य में आसानी से निकल पाने की कोई उम्मीद है. नकली नोटों के मिलने और करोड़ों के नए नोट पकड़े जाने की शिकायतें भी आ रही हैं. सीमा पर हमले जारी हैं. कोई कालाधन वाला न लाइन में दिखा न पकड़ा गया. लोग जरूर अपराधी घोषित कर दिए या अपराधबोध के शिकार बना दिए गए. विजय माल्या जैसे कुछ स्वनामधन्य लोग जरूर आराम से जीवन बिता रहे हैं. इस तरह एक बड़ी समस्या से हमारे प्रधानमंत्री ने हमेशा के लिए मुक्ति दिला दी की नहीं दिला दी. आखिर पिछले 70 सालों में कोई प्रधानमंत्री ऐसा कर पाया था. नहीं कर पाया था न. तो अपना ही पैसा गंवाकर उनके गुण गाइए और जीवन आ चुके संकटों से जूझते रहिए.