छत्तीसगढ़ः मायावती की चाल से कांग्रेस हुई बेहाल

श्रीराजेश

 |  04 Oct 2018 |   6
Culttoday

मायावती के एक अकेले मारक मूव ने कांग्रेस की पूरी चुनावी बिसात पलटा कर रख दी है. कम से कम छत्तीसगढ के विधानसभा चुनावों के बारे में तो यह अब साफ है.

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन ने यह तय कर दिया है कि छत्तीसगढ में सत्ता विरोधी लहर और कई दूसरे कारणों से हारती भाजपा को जीवनदान मिल गया है.

जोगी की पार्टी कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाएगी यह तय है. ऐसे में न सिर्फ भाजपा की कम अंतर से जीती जाने वाली सीटों की संख्या बढ़ जायेगी बल्कि मतों का समीकरण और विभाजन बदल जाने से अंतत: भाजपा को ही फायदा होगा.

बसपा का कुछ एक क्षेत्रों में बेहतर प्रभाव है. यहां 31.8 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति की है, जबकि अनुसूचित जाति की आबादी 11.6 प्रतिशत है. प्रदेश में सर्वाधिक आबादी पिछड़ा वर्ग की है. यह बसपा के लिये दमदार फसल है तो कई आदिवासी क्षेत्रों में जेसीसी की भी बेहतर पकड़. यह अधिकतर वही क्षेत्र हैं जहां कांग्रेस भी अपना दावा ठोक सकती थी.

जाहिर है जो घाटा होना है वह कांग्रेस का और जो फायदा है वह भाजपा के खाते में. ऐसे में तिलमिलाई कांग्रेस के पी एल पूनिया का कहना कि ," यह बीजेपी का बड़ा खेल है.

 पूरी डील ही बीजेपी के इशारे पर हुई है. जोगी कांग्रेस में रहते हुए भी बीजेपी के इशारे पर काम करते थे." सियासी खेल में कांग़्रेस की विफलता और अकुशलता के  गंभीर संकेत देते हैं.

 कांग़्रेस ने गठबंधन और राज्य विशेष में तालमेल का सारा जिम्मा राहुल गांधी पर छोड़ रखा था. जाहिर है वे इस बात से बेखबर रहे कि अजित जोगी जब दुर्घटना के बाद गुरुग्राम के अस्पताल में थे वहीं बहन जी ने उनसे मिलकर यह सब तय कर लिया था. जो आज उजागर हुआ है.

 राहुल गांधी और कांग्रेस कई और सियासी इबारतों को समय से पढने में चूक गयी. उसे यह खबर कि जेसीसी और बीएसपी दोनों मिल कर छत्तीसगढ विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे, मुख्यमंत्री का चेहरा अजीत जोगी होंगे, बहुत पहले पता हो जानी चाहिये थी.

मध्य प्रदेश में बसपा कांग़्रेस का हाथ नहीं पकड़ेगी वह अकेले लड़ेगी. यहां हाथी किसी का साथी नहीं बनेगा तो उत्तरप्रदेश में भी कुछ दिनों से हाथी को हाथ के साथ से गुरेज है.

मायावती अखिलेश को भी समय नहीं दे रही हैं. फिलहाल छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश में मायावती के इस पैंतरे ने न सिर्फ कांग्रेस की नींद उड़ा दी है, सपा को सोच में डाल दिया है बल्कि महागठबंधन की भी नींव हिला दी है. आखिर अचानक मायावती को हो क्या गया है?

 सियासी नजूमी यह अंदाजा लगाने में मुब्तिला हैं कि आखिर उनकी मंशा क्या है. अभी चार महीने पहले कांग्रेस से कोई दुराव न था. कर्नाटक में सोनिया के साथ गलबंहिया डाले फोटो अचानक इस कदर धुंधली कैसे हो गयी.

बसपा, सपा, रालोद, कांग्रेस के महागठबंधन के प्रति बेरुखी वाला रुख भी बस दो महीनों की बात है. अचानक इन दो महीने में मायावती को क्या हो गया. इसे समझने के लिये ज़रा इन खबरों को याद कीजिये.

पहली खबर, पांच महीने पहले की है. मायावती कहती हैं,”भाजपा सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है.”. अब दूसरी सुनी सुनाई से कुछ ज्यादा पुष्ट खबर जिसकी उम्र अभी बमुश्किल दो महीने हुई होगी, कि बहन जी के एक नजदीकी को सरेशाम उठा लिया गया और उन्हें यह समझाया गया कि सियासी बिसात पर महगठबंधन की ओर बढते समय हाथी की चाल धीमी ही रहे. अन्यथा उनके लिये मुश्किलें पैदा हो सकती हैं.

अब तीसरी खबर,  रासुका आरोपी रावण ने मायावती का समर्थन और भाजपा का खुला विरोध किया तो मायावती ने बयान दिया कि उससे मेरा कोई रिश्ता नहीं. चौथी खबर इसके उत्तर से संबंधित है.

 मायावती की इस प्रतिक्रिया पर पर रावण का जवाब काबिले गौर था कि. बुआ मायावती सीबीआई के दबाव में हैं, उन्हें डरना नहीं चहिये. इसी सिरीज में बहन जी का वह बयान भी जोड़ लीजिये कि महागठबंधन तब होगा जब सम्मानजनक सीटें मिलेंगी.

 मायावती का यह बयान सीटों के बंटवारे पर उस सहमति के दो महीने महीने बाद आया जिसके तहत सपा ने अपने से ज्यादा सीटें बसपा के खाते में डाल दी थीं. इसके बाद एक और खबर. अदालत ने उत्तर प्रदेश के स्मारक घोटाले में जो आदेश दिया वह न सिर्फ मायावती की चिंता बढाने वाला था बल्कि यह राज भी खोला कि सीबीआई और दूसरी जांच एजेंसियां बहुत धीमा काम कर रही हैं.

अब शायद यह समझने में आसानी हो कि मध्यप्रदेश और छतीसगढ में विपक्षी गठबंधन की उम्मीद धूमिल करने वाले फैसलों की वजह क्या है. कांग्रेस का आरोप है कि यह सब भाजपा के दबाव और सियासी चाल के चलते हो रहा है.

जाहिर है इतना गुस्सा और ऐसी घातक प्रतिक्रिया नसीमुद्दीन सिद्दीकी के कांग्रेस का दामन थाम लेने से तो नहीं है. तो फिर क्या वाकई कांग्रेस के इस आरोप में दम है कि इन सबके पीछे भाजपा का खेल है. इसका मतलब क्या यह समझा जाये कि केंद्र सरकार सीबीआई को अंकुश की तरह इस्तेमाल कर रही है.

क्या हाथी को कोई अदृश्य महावत हांक रहा है. अगर नहीं तो आखिरकार इन चालों के पीछे मायावती की असली मंशा क्या है?  क्या अगला चुनाव गठबंधन, मायावती और मोदी का तिकोना संघर्ष होगा?

 राजनीति में सब जायज और संभव है. तो इस बात से कैसे इनकार किया जा सकता है कि भविष्य में भाजपा और बसपा मिलकर उत्तर भरत की सारी सियासी गणित को नहीं उलट देंगे. बसपा और भाजपा का अतीत इसकी पुष्टि भी करता है.


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