पिछले हफ्ते नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के विरोध में समाजवादी पार्टी के विधायक साइिकल से विधानसभा पहुंचे. अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. यह सक्रियता तब आई जब प्रियंका गांधी ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में खुले आम कहा, “ राज्य में अन्य विपक्षी दल इस बारे में ज्यादा नहीं बोल रहे हैं. दूसरी पार्टियां सरकार से डर रही हैं, वह कुछ नहीं कह रही हैं. लेकिन हम डरने वाले नहीं हैं, हम आवाज उठाते रहेंगे. चाहे हमें अकेले चलना पड़े. हमें अगले विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने के लिए तैयार रहना होगा. कांग्रेस को संघर्ष की चुनौती स्वीकार है. दमनकारी विचारधारा से हमारी टक्कर है. कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के दिल में न तो भय और न ही हिंसा.
इस प्रेस कांफ्रेंस के बाद सपा बसपा दोनो ने प्रतिक्रिया दी, बसपा ने प्रियंका की भरपूर निंदा की और सपा ने सरकार विरोध के कुछ उपक्रम किया. पर इससे पहले नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी के मुद्दे पर कांग्रेस ने बढत ले ली. राज्य भर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान उत्तर प्रदेश पुलिस के रवैये को लेकर बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने आ गई. दुबकी हुई सी बसपा और सपा के बारे में यह धारणा बननी शुरू हो गयी कि वे केंद्र सरकार के दबाव और डर से ग्रस्त हैं.
कांग्रेस की ओर से पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी ने कमान संभाली और लगातार राज्य के उन इलाकों का दौरा किया जहां विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस पर ज़्यादती अंधाधुंध गिरफ़्तारियों के आरोप लगे. उधर सपा ने भाजपा सरकार जनहित की एक भी योजना लागू नहीं कर सकी है, समाजवादी सरकार ने विकास को जो दिशा दी थी, उसमें भाजपा ने अवरोध पैदा करने का काम किया है, भाजपा को लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करना चाहिए, सपा नागरिकता सत्याग्रह जैसे बयानों से ज्यादा आगे नहीं बढ सकी. राजनीतिक विश्लेषक श्रीराजेश कहते हैं कि., इस राउंड में कांग्रेस ने बाज़ी मारी. अगर सपा और बसपा ने उचित तरीके अख्तियार नहीं किये तो यह निष्क्रियता उन के लिये सियासी तौर पर भारी पड़ेगी.