यूपी पुलिस की नजर में छह साल पहले मृत लोग भी ‘दंगाई’
संदीप कुमार
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04 Jan 2020 |
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उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के सिलसिले में पुलिस ने दंगा फैलाने वालों लोगों को चिनिह्त कर उन्हें नोटिस भेजा है तथा कइयों को गिरफ्तार भी किया है, लेकिन इस मामले में पुलिस खुद अपनी फजीहत भी करा बैठी है.
फिरोजाबाद में हिंसक प्रदर्शन के दौरान जिन लोगों पर पुलिस ने कार्रवाई की है, उनमें एक ऐसे व्यक्ति का भी नाम है जिनकी मृत्यु छह साल पहले हो चुकी है. हालांकि मामला सामने आने के बाद प्रशासन इसकी जांच करा रहा है लेकिन यह मामला सिर्फ फिरोजाबाद तक ही सीमित नहीं है बल्कि ऐसे कई मामले दूसरी जगहों से भी सामने आए हैं.
फिरोजाबाद में 20 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जमकर उपद्रव हुआ था जिसमें छह लोगों की जान चली गई थी और कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे. पुलिस ने हिंसक प्रदर्शन के संदर्भ में 49 मुकदमे दर्ज किए हैं और शांतिभंग में कार्रवाई करते हुए 199 लोगों को नोटिस भेजे हैं. जिन लोगों को नोटिस भेजे गए, उनमें मृतक बन्ने खां का नाम भी शामिल है, जिनकी मृत्यु छह साल पहले हो चुकी है. इसके अलावा नब्बे वर्षीय अंसार हुसैन को भी नोटिस भेजा गया है जो सदर बाजार स्थित जामा मस्जिद के सचिव हैं. नोटिस पाने वालों में फिरोजाबाद में कुछेक शिक्षण संस्थानों की स्थापना से जुड़े 93 वर्षीय फसाहत मीर खां भी शामिल हैं.
फसाहत मीर खान फिरोजाबाद में एक कॉलेज के संस्थापक है, जबकि सूफी अंसार हुसैन करीब छह दशकों से स्थानीय मस्जिद में संरक्षक के तौर पर काम कर हैं. दोनों ही स्थानीय शांति समितियों के सदस्य हैं और किसी भी क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए पुलिस के साथ नियमित रूप से समन्वय करते हैं. दोनों को जारी किए गए नोटिस में, उन्हें एक सरकारी मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने और दस लाख रुपये का बांड जमा करने के बाद जमानत के लिए आवेदन करने को कहा गया है.
हालांकि प्रशासन ने मामले को गंभीरता से लेते हुए इसकी जांच के आदेश दिए हैं. फिरोजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट कुंवर पंकज सिंह का कहना है, "हिंसक प्रदर्शन के बाद करीब दो सौ लोगों को नोटिस भेजा गया है. पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की गई है. इसमें सिर्फ जवाब देना है. जो भी नाम गलत तरीके से जुड़े पाएंगे, उन्हें हटा दिया जाएगा. किसी भी निर्दोष व्यक्ति को डरने की जरूरत नहीं है.”
वहीं वाराणसी में प्रदर्शन के बाद गिरफ्तार किए गए 56 लोगों को कोर्ट ने जमानत दे दी जिसके बाद इनकी रिहाई का रास्ता खुल गया है. हालांकि ज्यादातर लोग गुरुवार को रिहा भी कर दिए गए. इन लोगों में से तमाम सामाजिक कार्यकर्ता और बीएचयू के कुछ छात्र शामिल थे. गिरफ्तार लोगों में एकता शेखर और उनके पति रवि शेखर भी शामिल थे जिनकी चौदह महीने की बच्ची अपने मां-बाप का इंतजार कर रही थी.
रिहाई के बाद एकता शेखर ने आरोप लगाया कि उन लोगों को सिर्फ ये कहकर ले जाया गया था कि धारा 144 के उल्लंघन में छोटा सा चालान भरना है. उन्होंने बताया, "लेकिन पुलिस लाइन में रात भर रखने के बाद अगले दिन बिना किसी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए हमें जेल भेज दिया गया. हमें ये तक नहीं बताया गया कि हमारे खिलाफ एफआईआर में कौन सी धाराएं लगी हैं. हमें एफआईआर की कॉपी तक नहीं दी गई. बिना किसी जुर्म के चौदह दिन तक जेल में रखा गया.”
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शन के मामले में मुजफ्फरनगर में पुलिस ने चार ऐसे लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया था जिन्हें बाद में ये कहते हुए रिहा कर देने की अपील की कि इन लोगों को गलती से पकड़ लिया था. गिरफ्तार लोग खुद को बेगुनाह बताते रहे लेकिन पुलिस ने उन्हें 11 दिन तक जेल में रखने के बाद अपनी गलती स्वीकार की.
गिरफ्तार लोगों में मुजफ्फरनगर के ही रोजगार कार्यालय में क्लर्क के रूप में तैनात 56 वर्षीय मोहम्मद फारूक भी थे. बीस दिसंबर को पुलिस ने तमाम लोगों के साथ मोहम्मद फारूक और उनके बीस वर्षीय बेटे को भी गिरफ्तार किया था. इसके अलावा एक ही परिवार के तीन अन्य लोग भी थे जो उस दिन अपने एक बीमार रिश्तेदार को लेकर मेरठ के एक अस्पताल में ले जा रहे थे.
राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उपद्रव में शामिल होने के नाम पर तमाम बेगुनाहों के खिलाफ नामजद और अज्ञात नाम से एफआईआर कर दी है लेकिन अब उन्हें अदालत में जवाब देते नहीं बन रहा है. यही वजह है कि लगातार लोग कोर्ट से जमानत पा जा रहे हैं. वहीं, पुलिस पर ये भी आरोप लग रहे हैं कि अज्ञात लोगों में नाम शामिल होने का डर दिखाकर लोगों से वसूली भी की जा रही है. ऐसी शिकायतें कानपुर, लखनऊ, फिरोजाबाद, मेरठ, मऊ जैसे कई जिलों से मिल रही हैं.
हालांकि राज्य के डीजीपी और दूसरे अधिकारी भी कई बार ये बात दोहरा चुके हैं कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी लेकिन अब तक ऐसे दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं जिन्हें खुद पुलिस ने निर्दोष माना है. ऐसे में इन लोगों ने जेल में जो दिन काटे हैं, उसकी भरपाई कैसे होगी, ये अहम सवाल है. यही नहीं, तमाम लोगों ने ये भी आरोप लगाया है कि पुलिस ने न सिर्फ उन्हें गिरफ्तार किया बल्कि उनके साथ मारपीट भी की गई. मुजफ्फरनगर के रोजगार दफ्तर में काम करने वाले मोहम्मद फारूक कहते हैं कि उनके घर में सारी चीजें तोड़ दी गईं और उनके मोबाइल भी जब्त करा लिए गए, जिन्हें रिहा होने के बाद भी वापस नहीं किया गया.
वहीं, एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बिना किसी संदेह के कोई भी गिरफ्तार नहीं हुआ है. अधिकारी के मुताबिक, "जमानत मिलने से ये साबित नहीं होता कि कोई व्यक्ति निर्दोष है. अभी शुरुआती दौर की कार्रवाई हो रही है. जिनकी संलिप्तता नहीं है, उन्हें छोड़ा जा रहा है लेकिन बाकी लोगों के खिलाफ सबूत इकट्ठा किए गए हैं और दूसरे चरण में चार्ज शीट तैयार की जाएगी.”
गिरफ्तार किए गए लोगों में पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी और कांग्रेस नेता और अभिनेत्री सदफ जाफर भी शामिल हैं. इन लोगों को प्रदर्शन के बाद हुई हिंसा में नुकसान हुए सामान की भरपाई के लिए नोटिस भी दिया गया है.
पिछले साल 19 और 20 दिसंबर को राज्य के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन हुए थे जिनमें कम से कम बीस लोगों की जान चली गई, कई लोग घायल हैं और करोड़ों रुपये की सरकारी और गैर सरकारी संपत्ति का नुकसान हुआ है. राज्य की योगी सरकार ने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के अपराध में कुछ लोगों की पहचान करके नोटिस भेजा है और उनसे इस संपत्ति की भरपाई करवाने का फैसला किया है.