चिराग के लिए मुश्किल हो रहा बिहार विधानसभा चुनाव, बिन रामविलास पासवान 

संदीप कुमार

 |  15 Oct 2020 |   165
Culttoday

बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खुल्लम खुल्ला चैलेंज कर रहे चिराग पासवान के सामने अचानक नयी चुनौतियां खड़ी हो गयी हैं. बेशक चिराग पासवान को अपने पिता से हर तरह के राजनीतिक फैसला लेने के मैंडेट पहले से ही मिला हुआ है, लेकिन अब सवाल ये उठता है कि क्या रामविलास पासवान की गैरमौजूदगी में भी वो नीतीश कुमार को उतनी ही मजबूती से चैलेंज कर पाएंगे?  रामविलास पासवान के निधन के बाद आया केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान तो ये संकेत भी दे रहा है कि बीजेपी को भी अपनी रणनीति बदलने के बारे में सोचना पड़ सकता है. आखिर बीजेपी को भी तो इस बात का एहसास होगा ही कि बदले हालात में भी अगर नीतीश कुमार के सपोर्ट में वो चिराग पासवान का विरोध जारी रखती है तो कहीं लेने के देने न पड़ जायें? 
कोई दो राय नहीं कि चिराग पासवान के सामने एक साथ कई चुनौतियां खड़ी हो गयी हैं, लेकिन खास बात ये भी है कि राजनीतिक तौर पर वो नीतीश कुमार के सामने भी नयी परिस्थितियों में ज्यादा मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं - और बीजेपी को भी ये अच्छी तरह समझ आने लगा है!
रामविलास पासवान के निधन के बाद की परिस्थितियों में बीजेपी का स्टैंड समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि चिराग पासवान को सहानुभूति का राजनीतिक लाभ भी मिल सकता है क्या? 
सहानुभूति की लहर चुनावी राजनीति में कैसे वोट दिलाती है, ये सबक पासवान परिवार से बेहतर कौन जान सकता है. 1984 में रामविलास पासवान भी उसी हाजीपुर लोक सभा सीट से चुनाव हार गये थे जहां से ठीक सात साल पहले जीत का रिकॉर्ड कायम कर वो अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज कराये थे. 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में सहानुभूति की लहर थी और कांग्रेस को सबसे ज्यादा फायदा मिला था. तब कांग्रेस उम्मीदवार रामरतन राम ने रामविलास पासवान को हरा दिया था. 1977 में उसी हाजीपुर सीट से रामविलास पासवान ने कांग्रेस के बालेश्वर राम को करीब सवा चार लाख वोटों से हराया था - और कांग्रेस प्रत्याशी को महज 44,462 वोट मिले थे क्योंकि 89.30 फीसदी वोट रामविलास पासवान को लोगों ने दे दिये थे.
बिहार में 16 फीसदी दलित वोटों में करीब 6 फीसदी पासवान (जो दुसाध भी कहे जाते हैं) वोट हैं - और रामविलास पासवान की राजनीति इन्हीं वोटों के सहारे चमकती रही है. बाकी दलित वोट थोड़े बहुत तो बंट भी जाते हैं, लेकिन एक बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार को मिलता है क्योंकि वे सभी महादलित कैटेगरी में डाल दिये गये हैं. नीतीश कुमार ने सरकारी नीतियां भी ऐसी तैयार की हैं जिनका सीधा फायदा महादलितों को मिले और उनके बलबूते ही एलजेपी की सत्ता की राजनीति में भागीदारी बनी हुई है. अब सवाल ये उठता है कि क्या ये वोट बैंक चिराग पासवान के साथ भी वैसे ही जुड़ा रहेगा जैसे अब तक वो रामविलास पासवान के साथ खड़ा रहा है? ये सवाल सिर्फ चिराग कुमार के सामने नहीं है, बीजेपी के सामने भी खड़ा नजर आ रहा होगा - और तो और नीतीश कुमार का भी उसी तरीके से पीछा कर रहा होगा?
चिराग पासवान के लिए भले ही अपने खानदानी वोट बैंक को अपने साथ बनाये रखने की चुनौती हो, लेकिन बीजेपी के सामने ये चुनौती खड़ी हो गयी है कि क्या वो चिराग पासवान को लेकर संभावित सहानुभूति को नजरअंदाज कर पाएगी?  क्या बीजेपी नीतीश कुमार को एनडीए का नेता और मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बताते हुए लोगों के बीच कह पाएगी कि अगर चिराग पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल किया तो एफआईआर दर्ज करा देंगे?
क्या बीजेपी नेतृत्व लोगों से उन इलाकों में भी चिराग पासवान को वोट न देने के लिए कह पाएगा जहां एलजेपी ने जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिये हैं?  वैसे तो पहले से ही समझा जा रहा है कि चिराग पासवान बीजेपी के अंडरकवर मिशन पर हैं, लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि बीजेपी को खुल कर बताना ही होगा कि एलजेपी को लेकर बिहार चुनाव में उसका आधिकारिक स्टैंड क्या है?
रामविलास पासवान के निधन की खबर आने से कुछ ही देर पहले एलजेपी की तरफ से बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखा एक पत्र सार्वजनिक किया गया था जिसकी काफी चर्चा हो रही है. चिराग पासवान ने पत्र में जो बातें लिखी हैं वो नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा कर रही हैं - और लगता है कि चिराग पासवान ने नीतीश कुमार को काउंटर करने के लिए ये पत्र सबके सामने ला दिया है. जेपी नड्डा को ये पत्र चिराग पासवान ने 24 सितंबर को लिखा था.
नीतीश कुमार ने चिराग पासवान को घेरने के मकसद से हाल ही में पूछ डाला था कि रामविलास पासवान अगर राज्य सभा पहुंचे हैं तो उसमें जेडीयू की कोई भूमिका नहीं है क्या? जेपी नड्डा को लिखे पत्र में चिराग पासवान बताते हैं - लोकसभा चुनाव के वक्त ही हुए सीटों के बंटवारे में ही एलजेपी को राज्य सभा की एक सीट देने की बात हुई थी. चिराग पासवान का आरोप है कि नीतीश कुमार बाद में आनाकानी करने लगे. नामांकन के समय तो पहुंचे भी नहीं. बाद में विधानसभा पहुंचे और इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में काफी गुस्सा रहा, लेकिन पार्टी की तरफ से व्यक्तिगत तौर पर कभी कुछ नहीं कहा गया. चिराग पासवान ने अपने पिता की बीमारी को लेकर भी नीतीश कुमार के व्यवहार पर क्षोभ प्रकट किया है. चिराग पासवान याद दिलाते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री ने हर संभव मदद का भरोसा दिलाया और बराबर जानकारी भी लेते रहे, लेकिन जब पत्रकारों ने नीतीश कुमार से प्रेस कांफ्रेंस में उनके पिता की सेहत के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि बीमारी को लेकर उनको कोई जानकारी नहीं है. लोक जनशक्ति पार्टी के बारे में समझा जाता है कि दलितों के साथ साथ बाकी वर्गों का भी समर्थन उसे मिलता रहा है, लेकिन चिराग पासवान ने जो बात कही है वो नीतीश कुमार पर गंभीर आरोप है.  चिराग पासवान का कहना है कि एक बार जब वो नीतीश कुमार से एलजेपी विधायकों को मंत्रिमंडल में लेने की रिक्वेस्ट किये तो नीतीश कुमार से बड़ा ही अजीब जवाब सुनने को मिला था. चिराग पासवान के मुताबिक, नीतीश कुमार का कहना था कहां आप लोग ब्राह्मण ठाकुर के चक्कर में पड़े हैं, परिवार का कोई हो तो बतायें. गौर करने वाली बात ये है कि लोक जनशक्ति पार्टी के दो ही विधायक हैं और दोनों में से कोई भी दलित नहीं है.
सर्वे में नीतीश कुमार की लोकप्रियता में गिरावट और सत्ता विरोधी लहर का हवाला देते हुए चिराग पासवान ने यहां तक सलाह दे डाली है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने से एनडीए को हार का मुंह भी देखना पड़ सकता है, ऐसे में बीजेपी को मुख्यमंत्री पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित करना चाहिये. समझा जाता है कि नीतीश कुमार के पक्ष में टीना फैक्टर काम कर रहा है और बीजेपी के भी उनको एनडीए का नेता घोषित करने की एक बड़ी वजह यही है. TINA फैक्टर उस स्थिति को कहते हैं जब कोई अल्टरनेटिव नहीं होता. ये तो सही है ही कि बीजेपी के पास नीतीश कुमार की टक्कर का कोई नेता नहीं है और विपक्षी खेमे से भी तेजस्वी यादव भले ही चैलेंज कर रहे हों लेकिन वो भी खुद को विकल्प के तौर पर पेश नही कर पाये हैं. ऐसे तो ये भी लगता है कि चिराग पासवान बिहार के लोगों के सामने एक विकल्प पेश करने की कोशिश कर रहे हैं. चूंकि वो भी जानते हैं कि विकल्प के तौर पर नीतीश के मुकाबले वो भी खड़े होने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए विकल्प ऐसे पेश कर रहे हैं कि अगर एलजेपी को चुनाव में ठीक-ठाक सीटें मिलीं तो वो बीजेपी के नेतृत्व में सरकार बनाने में मददगार बनेंगे - और ये नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ा चैलेंज है.
 


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