क्या विपक्षी दल इमरान ख़ान को कर पाएंगे सत्ता से बेदखल?

संदीप कुमार

 |   16 Oct 2020 |   9
Culttoday

पाकिस्तान की सत्ता संभाले हुए इमरान खान को दो साल बीत गये हैं औऱ इस दौरान पाकिस्तान की न केवल माली हालत बल्कि वैश्विक स्तर पर भी उसके खास को बट्टा लगा है. इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के लिए बीते 20 सितंबर को मुस्लिम लीग (नवाज़), पाकिस्तान पीपल्स पार्टी, जमीयत-उलेमा-इस्लाम और कुछ अन्य विपक्षी पार्टियां इस्लामाबाद में ऑल पार्टी कॉन्फ़्रेंस के लिए जमा हुई. ये सभी विपक्षी पार्टियाँ इमरान ख़ान की सरकार को कड़ी चुनौती देने का दावा करती रही हैं लेकिन वो एक साथ आने में और सरकार के ख़िलाफ़ एक साझा रणनीति बनाने में हमेशा नाकाम रही हैं. इसे लेकर कहा जा रहा था कि विपक्षी पार्टियों का यह ‘फ्लाप शो’ हैं. 
लेकिन आम लोगों की यह राय उस वक़्त बदल गई जब पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने लंदन से वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए इस कार्यक्रम में शिरकत की. उन्होंने इस दौरान शानदार स्पीच दी जो कॉन्फ़्रेंस का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया.
पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने नवाज़ शरीफ़ को भ्रष्टाचार का दोषी क़रार देते हुए उनके ज़िंदगी भर के लिए सियासत करने पर पाबंदी लगा दी है. इन दिनों नवाज़ शरीफ़ अपने इलाज के सिलसिले में लंदन में रह रहे हैं.
विपक्षी पार्टियों की कॉन्फ़्रेंस में नवाज़ शरीफ़ ने महीनों के बाद कुछ बोला था. पिछले साल (2019) नवंबर में लंदन जाने से पहले वो जेल में थे और अभी भी वो ज़मानत पर ही लंदन में हैं. कॉन्फ़्रेंस के ख़त्म होने के बाद विपक्षी पार्टियों ने एक साथ मिलकर पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट का गठन किया और इमरान ख़ान को सत्ता से हटाने के लिए विरोध प्रदर्शनों का एक ख़ाक़ा पेश किया. लेकिन उस दिन नवाज़ शरीफ़ का भाषण सब पर भारी पड़ा.
नवाज़ शरीफ़ ने कहा था, "मेरी लड़ाई इमरान ख़ान से नहीं है बल्कि उनसे है जिन्होंने इमरान ख़ान को कुर्सी पर बैठाया है."  एक प्रकार से उन्होंने इशारों में पाकिस्तानी सेना पर राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मामलों में दख़ल देने का आरोप लगाया और कहा कि पाकिस्तान में स्टेट के ऊपर भी एक स्टेट है.
उन्होंने कहा, "यह दुख की बात है कि हालात यहाँ तक पहुँच गए हैं कि स्टेट के ऊपर भी एक स्टेट है. यही समानांतर सरकार हमारी सारी बुराइयों और परेशानियों की जड़ है. इस सरकार को हटाना हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. हमारा संघर्ष इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ नहीं है. आज हमारी लड़ाई उनसे है जिन्होंने इमरान ख़ान को लॉन्च किया और चुनाव में धांधली कर इमरान ख़ान जैसे नाक़ाबिल शख़्स को सत्ता की कुर्सी पर बैठाया और मुल्क को बर्बाद कर दिया."
नवाज़ शरीफ़ ने कहा, "अगर हालात नहीं बदले तो इससे मुल्क को काफी क्षति होगी. यह बहुत ज़रूरी है कि हमारी सेना हमारी सरकार से दूर रहे. सरकार संविधान और क़ायद-ए-आज़म (पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना) की स्पीच के अनुसार चले और सेना लोगों की पसंद में दख़ल ना दे. हमने इस देश को ख़ुद अपनी नज़रों में और अंतरराष्ट्रीय जगत की नज़रों में भी एक मज़ाक़ बना दिया है."
नवाज़ शरीफ़ ने इमरान ख़ान को 'सेना की कठपुतली' क़रार देते हुए कहा था कि इमरान ख़ान को सत्ता में लाने के लिए साल 2018 के चुनाव में धोखाधड़ी की गई थी. मौजूदा समस्याओं का मुख्य कारण वही लोग हैं जिन्होंने अनुभवहीन लोगों को सत्ता पर बैठाकर आवाम के जनादेश पर क़ब्ज़ा कर लिया था. नवाज़ का कहना था, "यह संविधान का उल्लंघन है. क्या किसी ने इस पर गंभीरता से विचार किया है कि जनादेश को चुराना कितना बड़ा जुर्म है? क्या मैं पूछ सकता हूं कि चुनाव के दौरान आरटीएस सिस्टम क्यों घंटों तक बंद रहा था? मतों की गिनती के दौरान क्यों पोलिंग एजेंटों को बाहर कर दिया गया था? चुनाव में धांधली किसके कहने पर की गई और क्यों? चुनाव आयोग के सचिव को इन सवालों के जवाब देने चाहिए. इसके लिए जो भी ज़िम्मेदार हैं उन सब को इसका जवाब देना पड़ेगा."
नवाज़ शरीफ़ ने कहा कि देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए विपक्षी दलों को एक बेहतरीन रणनीति पेश करनी होगी और 'समानांतर सरकार' की समस्या के समाधान के लिए एक विस्तृत प्रोग्राम बनाना होगा.
विपक्षी पार्टियों ने इमरान ख़ान से फ़ौरन इस्तीफ़े की माँग की और कहा कि ऐसा नहीं करने पर विपक्षी पार्टियां पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट के बैनर पर सरकार के ख़िलाफ़ देश-व्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू करेंगी.
प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि इमरान ख़ान सरकार को 'फ़र्ज़ी स्थायित्व भी उसी सिस्टम के ज़रिए दिया जा रहा है जिस सिस्टम ने चुनावी प्रक्रिया में दख़ल देकर इमरान ख़ान को सत्ता में बिठाया है.' प्रस्ताव में सेना (इस्टैबलिश्मेंट) के बढ़ते हस्तक्षेप पर गंभीर चिंता जताई गई है और इसे देश के स्थायित्व और संस्थाओं के लिए ख़तरा बताया गया है. नवाज़ शरीफ़ की स्पीच के कुछ दिनों बाद सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल बाबर इफ़्तिख़ार ने भी सेना की आलोचना पर इशारों में ही जवाब दिया. सेना के प्रवक्ता ने एक न्यूज़ चैनल एआरवाई से बात करते हुए कहा, "पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता मोहम्मद ज़ुबैर ने नवाज़ शरीफ़ और उनकी बेटी मरियम नवाज़ के बारे में बातचीत करने के लिए सेना प्रमुख से ख़ुफ़िया मीटिंग की है."
प्रवक्ता के अनुसार इसी तरह की एक मीटिंग अगस्त के आख़िरी सप्ताह में हुई थी और सात सितंबर एक और मीटिंग हुई थी. सेना के प्रवक्ता के अनुसार दोनों ही बैठकें मोहम्मद जु़बैर के आग्रह पर हुईं थीं और इसमें से एक बैठक में ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख भी मौजूद थे. पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि नवाज़ शरीफ़ के क़ानूनी मामले देश की अदालतों के ज़रिए हल होंगे, उनके राजनीतिक मामलों का हल संसद तलाश करेगी और सेना को इन सब मामलों से अलग रखा जाना चाहिए.
लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि ख़ुफ़िया मुलाक़ातों को सार्वजनिक करके सेना यह संदेश देना चाहती है कि उन पर राजनीति में दख़ल देने के आरोप बेबुनियाद हैं क्योंकि राजनेता ख़ुद अपनी सेना को राजनीति में घसीटते हैं.

इस बैठक में जिन आरोपों का दौर चला उनका जवाब प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पहले से ही देते आए हैं. कुछ दिनों पहले उन्होंने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल समा टीवी को दिए इंटरव्यू में कहा था कि सेना देश की 'संपत्ति' है. इमरान ख़ान ने कहा था, "पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ सेना पर राजनीति में दख़ल देने का आरोप लगाकर 'ख़तरनाक खेल' खेल रहे हैं."
इमरान ख़ान ने ये आरोप भी लगाया था कि अपनी बातें फैलाने के लिए नवाज़ शरीफ़ भारत का सहारा ले रहे हैं. इमरान ने इस इंटरव्यू में भारत की ओर इशारा करते हुए कहा था, "अगर हमारी सेना कमज़ोर हो जाती है तो इससे किसका फ़ायदा होगा? हमारे दुश्मनों का."
इमरान ने कहा था, "हम सुरक्षित क्यों हैं? अगर हमारी सेना न होती तो हमारा देश टुकड़ों में बंट चुका होता. भारत के थिंक टैंक कहते हैं कि वो पाकिस्तान को तोड़ना चाहता है."
इमरान ख़ान ने ये भी कहा था कि मौजूदा समय में पाकिस्तान सरकार और पाकिस्तानी सेना के रिश्ते 'अब तक के इतिहास में सबसे अच्छे' हैं क्योंकि अभी सभी संस्थाएं संवैधानिक दायरों में काम कर रही हैं.
इमरान ख़ान ने यहाँ तक कहा था कि वो पाकिस्तान के उन चुनिंदा प्रधानमंत्रियों में से हैं जो 'सेना की नर्सरी' में नहीं बने. वो नवाज़ शरीफ़ की राजनीति में एंट्री की ओर इशारा कर रहे थे. कई लोगों का मानना है कि नवाज़ शरीफ़ को 80-90 के दशक में सैन्य प्रमुख रहे ज़िया-उल-हक़ ने लॉन्च किया था.
शहबाज़ ने नवाज़ शरीफ़ और पाकिस्तानी सेना के पूर्व प्रमुखों के कड़वाहट भरे रिश्तों पर तंज़ कसते हुए कहा, "ऐसा क्यों है कि नवाज़ शरीफ़ हमेशा सेना से उलझते रहे हैं? नवाज़ शरीफ़ की दिक्क्त ये है कि वो हर चीज़ पर काबू करके 'अमीर-उल-मोमिनीन' (सर्वेसर्वा) बनना चाहते हैं ताकि वो भ्रष्टाचार करते हैं और उन पर कोई सवाल न उठाए."
शहबाज़ गिल ने कहा कि नवाज़ शरीफ़ जब भारत दौरे पर गए थे तो उन्होंने हुर्रियत नेताओं के शिष्टमंडल से मिलने से इनकार कर दिया लेकिन वो भारतीय कारोबारी जिंदल और उनके परिवार से मिले. गिल का आरोप है कि जिंदल भी तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शराफ़ से मिलने के लिए बिना वीज़ा पाकिस्तान आए थे. उन्होंने कहा, "अगर आप पिछले पांच बरसों में भारतीय न्यूज़ चैनलों की सुर्खियाँ और नवाज़ शरीफ़ के भाषण को सुनें तो पाएंगे कि दोनों एक ही तरह की बातें कर रहे हैं. नवाज़ शरीफ़ अपने हिंदुस्तानी आकाओं के सुरों पर नाच रहे हैं."
पाकिस्तान में विपक्षी पार्टियां लगातार ये आरोप लगाती रही हैं देश में उन्हें निशाना बनाया जाता है. अब इमरान ख़ान पर भी ये आरोप लग रहे हैं कि वो नैब जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल विरोधियों को चुप कराने के लिए कर रहे हैं.
हालाँकि सरकार का कहना है कि नेशनल अकाउंटिबिलिटी ब्यूरो एक स्वतंत्र संस्था है और निष्पक्ष रूप से सभी के ख़िलाफ़ भी भ्रष्टाचार मामलों की जाँच कर रही है.
पाकिस्तानी सरकार का कहना है कि विपक्षी पार्टियाँ नैब की जाँच को लेकर इतना हंगामा सिर्फ़ इसलिए मचा रही हैं ताकि वो बड़े भ्रष्टाचार और घोटालों से बच सकें.
राजनीतिक विश्लेषक ग़िना मेहर मानती हैं कि अपने राजनीतिक विरोधियों को गद्दार कहने का चलन पाकिस्तान में नया नहीं है. अतीत में भी सभी पार्टियाँ एक-दूसरे के साथ ऐसा करती रही हैं. ग़िना कहती हैं, "ये बेहद निराशाजनक है कि मुल्क में नवाज़ शरीफ़ के ख़िलाफ़ एक बार फिर 'भारत-समर्थित' होने वाला कार्ड खेला जा रहा है. ये एक ऐसा लेबल है जो पाकिस्तान में किसी भी राजनीतिक पार्टी या नेता को बर्बाद कर सकता है."
ग़िना मेहर के अनुसार ये एक ख़तरनाक खेल है जिसे रोका जाना चाहिए. हालाँकि वो ये भी मानती हैं कि नवाज़ शरीफ़ के भाषण के कारण राजनीतिक रूप से बँटा हुआ पाकिस्तान और ज़्यादा बँट गया है. 

(यह रिपोर्ट बीबीसी हिंदी पर प्रकाशित है, वहां से साभार)


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