मुलायम के दांव से शिवपाल को लगा घाव

श्रीराजेश

 |  04 Oct 2018 |   10
Culttoday

मुलायम ने अपने ही छोटे भाई शिवपाल को ऐसा धोबी पाट दांव क्यों दिया यह सियासी गलियारे में बहस का बायस बना हुआ है. यह भी चर्चा का विषय है कि रातो रात ऐसा क्या हो गया कि परिवार में पलड़ा एक से दूसरी तरफ झुक गया. असल में मुलायम को अपने और मीडियाई सूत्रों ने बताया कि उनके साथ के पुराने समाजवादी जो अखिलेश के नौजवान सथियों की हरकतों से या किसी भी दूसरी वजहों से कभी भी दुखी महसूस किया था या जिन्हें लगता है कि अखिलेश की मंडली से उनका सहज संवाद मुश्किल होगा, अथवा वे जो जानते हैं कि राजनीति कि उनकी शैली अखिलेश को नहीं भाने वाली वे सब शिवपाल की तरफ इकट्ठा हो रहे हैं. मुलायम ने यह अंदाजा लगाया कि यह संख्या बड़ी हो सकती है. ऐसे में न सिर्फ उनके बेटे अखिलेश की सियासी जहाज गोते खा सकता है बल्कि बड़ी मेहनत से तैयार की उसकी सियासी जमीन और मूल समाजवादी पार्टी भी दरक सकती है. इस आसन्न संकट से केवल यही संकेत बचा सकता है कि मुलयम सिंह यादव कभी अखिलेश के साथ हैं, उन पर उनका आशीर्वाद बना हुआ है.

मुलायम सिंह यादव को उस घटना के बारे में भी पता चल चुका है जिसमें नाराज और ऊबे हुये शिवपाल यादव ने अमर सिंह के कहने पर भाजपा का दामन थामने या फिर भाजपा के इशारे पर अपनी राजनीतिक रणनीति तय करना स्वीकार लिया था. कहते हैं कि अमर सिंह ने शिवपाल यादव की मुलाकात भाजपा अध्यक्ष से करा दी थे और पाऋटी में शामिल होने की फाइनल बात के लिये लखनऊ में चार्टर्ड प्लेन लग चुका पर अंत समय में बहुत कुछ सोच विचार कर शिवपाल ने यह दांव खेलने से मना कर दिया. शिवपाल ने यह रिस्क तो नहीं लिया पर यह खबर आम होने के बाद मुलायम सिंह का शंकालु होना लाजिम था. साइकिल रैली के समापन पर जंतर मंतर में अखिलेश के साथ मंच साझा करने से ठीक एक रात पहले पारिवारिक डिनर पर अखिलेश मुलायम सिंह के दिल्ली आवास पर गये. वहां धर्मेंद्र यादव और रामगोपाल यादव के अलावा अखिलेश के खेमे वाले दूसरे परिवारीगण भी थे. दो घंटे में रामगोपाल यादव ने ढेर सारी राजनीति समझाते हुये मुलायम सिंह यादव को अखिलेश के मंच पर आने कोके लिये मना लिया. पर यह बात महज एक रात के ही नहीं  है.  इसके बीज तभी पड़ चुके थे जब भाजपा ने मुलायम को सीबीआई का भय दिखाया और बहुत दिनों बाद राजधानी लखनऊ स्थित पार्टी दफ्तर लगातार दो दिन पहुंचे थे और उन्हें लगा था कि इस संकट में अखिलेश और रामगोपाल ही ज्यादा सहायक हो सकते हैं.

फिलहाल मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल का खेल बिगाड़ दिया है. एक ही झटके ने शिवपाल के सपनों का शीश महल तोड़ दिया है. अखिलेश के साथ मंच साझा कर के उन्होंने यह संकेत दे दिया है कि शिवपाल के उस दावे में कोई दम नहीं है जिसमें वे यह कहते फिर रहे हैं कि मुलायमसिंह का आशीर्वाद उन्हीं के साथ है. झंडे पर चेहरा चिपका कर वे ऐसा दर्शा रहे थे और यह भी दम भर रहे थे कि नेताजी उनके मोर्चे के संरक्षक बन सकते हैं, उनकी पार्टी समाजवादी सेक्युलर मोर्चे के टिकट पर वे मैनपुरी से लड़ सकते हैं. मुलायम ने जंतर मंतर में अखिलेश यादव को सियासी मंत्र फूंकने के क्रम में उनके साथ जो मंच साझा किया, सार्वजनिक तौर पर उनको आशीर्वाद दिया उससे साफ हो गया है कि चचा शिवपाल को अभी और संघर्ष करना होगा. बड़े भाई मुलायम बेटे के साथ हैं, छोटे भाई के संग नहीं. पारवारिक तनातनी और सियासी उतार चढाव वाली कहानी अब मुलायम के इस कारगुजारी की बाद और पेचीदा हो गयी है. बेशक इस घटना के बाद शिवपाल का जंगी जुनून और बढेगा.

 

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