मिशन 2022 के लिये बढी मायावती की मुसीबतें
जलज वर्मा
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03 Jan 2020 |
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सियासी सूत्रों की मानें तो निकट भविष्य में बसपा अभी और उलट फेर करने वाली है. पार्टी और संगठन स्तर पर अभी कुछ और बदलाव होने बाकी है. उप चुनाव में हार के बाद पार्टी लगातार बदलाव और बिखराव के दौर से गुजर रही है. पार्टी सुप्रीमों मायावती और उनके कुछ समर्थकों के अलावा कोई भी इन्हें सकारात्मक तरीके से नहीं ले रहा. बसपा सियासत के चौसर पर जिस तरह की अटपटी चालें चल रही है,जैसे फैसले ले रही है, विपक्षी ही नहीं राजनीतिक पर्यवेक्षक भी उसे बदहवास बता रहे हैं. इनका मानना है कि बसपा अपनी अपेक्षा और आकांक्षाओं से बहुत दूर जाती नजर आ रही है और यह इसी हताशा और ज़ल्दबाज़ी का नतीजा है. बसपा सुप्रीमो ने हाल ही में कुछ पार्टी नेताओं को पार्टी से अलग कर दिया जबकि कई नेता स्व्यं ही बसपा छोड़ कर चले गये, माना जा रहा है कि तकरीबन आधा दर्जन नेता बसपा से किसी दूसरी पार्टी में जाने का उचित अवसर देख रहे हैं.
पार्टी सुप्रीमो मयावती के लिये यह दौर अपनी राजनीतिक कुशलता प्रदर्शित करने का है पर उनका पुराना सियासी तेवर नजर नहीं आ रहा. मायावती इस आवाजाही और पार्टी में लगने वाली संभावित सेंध से इस कदर सतर्क हैं कि रावण की दिल्ली से हुई गिरफ्तारी को रावण का बुना षणयंत्र बता रही है. इन सब को देख कर लगता है कि बसपा वास्तव में संकट के दौर से गुजर रही है. नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में बसपा की भूमिका महज चंद बयान के अलावा कुछ नहीं रही. ऐसे वक्त में जब मुसलमान आंदोलित हो कर सड़क पर था तब मुसलमानों की अलमबरदार समझे जानी वाली पार्टी की भूमिका महज दूर से आग सेंकने वाले की थी. या फिर पीछे से आवाज, गुहार लगाने वाले की.
पार्टी यह तय नहीं कर पार रही है कि वह पहले पार्टी के भीतर के मसलों से निबटे या फिर बाहरी मामलों से . पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा और उससे पहले उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में बुरा प्रदर्शन करने के बाद झारखंड में भी वह उल्लेखनीय नहीं कर पाई. दिल्ली के चुनावों में कई सीट पर बसपा की प्रभावशाली उपस्थिति रहती आई है और तकरीबन दहाई सीटों पर उसके वोट मिलते रहे हैं. पर इस बार भाजपा, आप की टक्कर में कांग़्रेस त्रिकोणीय लड़ाई बनाने की फिराक में है ऐसे में बसपा के लिये दिल्ली और उसके बाद और बिहार से भी कोई आशा नहीं जगती. इन हालात में बदहवसी और ऐसे बयान सामने आते हैं तो आश्चर्य नहीं है. मायावती कहती हैं कि,“ भीम आर्मी का चन्द्रशेखर, विरोधी पार्टियों के हाथों खेलकर खासकर बसपा के मजबूत राज्यों में षड्यन्त्र के तहत चुनाव के करीब वहां पार्टी के वोटों को प्रभावित करने वाले मुद्दे पर, प्रदर्शन आदि करके फिर जबरन जेल चला जाता हैयूपी में रहने वाले रावण ने दिल्ली में अपनी गिरफ्तारी इसलिये करवाई क्योंकि दिल्ली में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.”
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