राष्ट्रीय एकता के प्रति सरदार पटेल की निष्ठा (जयंती विशेष)

जलज वर्मा

 |  30 Oct 2020 |   743
Culttoday

राजनीतिक और कूटनीतिक क्षमता का परिचय देते हुए स्वतंत्र भारत को एकजुट करने का असाधारण कार्य बेहद कुशलता से सम्पन्न करने के लिए जाने जाते रहे सरदार पटेल की जयंती 31 अक्तूबर को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाई जाती है. यह दिवस मनाए जाने की शुरूआत 31 अक्तूबर 2014 को उस समय हुई थी, जब माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिवस को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी. दरअसल देश के पहले गृहमंत्री और पहले उप-प्रधानमंत्री रहे सरदार पटेल का भारत के राजनीतिक एकीकरण के लिए अविस्मरणीय योगदान रहा और उसी योगदान को चिरस्थाई बनाए रखने के उद्देश्य से अब प्रतिवर्ष यह दिवस मनाया जाता है. राष्ट्रीय एकता के प्रति सरदार पटेल की निष्ठा आजादी के इतने वर्षों बाद भी पूरी तरह प्रासंगिक है. एकता की मिसाल कहे जाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल गुजरात के नाडियाद में एक किसान परिवार में 31 अक्तूबर 1875 को जन्मे थे, जिन्होंने सदैव देश की एकता को सर्वोपरि माना. सरदार पटेल ने भारत को खण्ड-खण्ड करने की अंग्रेजों की साजिशों को नाकाम करते हुए बड़ी ही कुशलता से आजादी के बाद करीब 550 देशी रियासतों तथा रजवाड़ों का एकीकरण करते हुए अखण्ड भारत के निर्माण में सफलता हासिल की थी.
सरदार पटेल ने लंदन से वकालत की पढ़ाई पूरी कर अहमदाबाद में प्रैक्टिस शुरू की थी. वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से अत्यधिक प्रेरित हुए और इसीलिए उन्होंने गांधी जी के साथ भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में हिस्सा लिया. वे भाई-भतीजावाद की राजनीति के सख्त खिलाफ थे और ईमानदारी के ऐसे पर्याय थे कि उनके देहांत के बाद जब उनकी सम्पत्ति के बारे में जानकारियां जुटाई गई तो पता चला कि उनकी निजी सम्पत्ति के नाम पर उनके पास कुछ नहीं था. वह जो भी कार्य करते थे, पूरी ईमानदारी, समर्पण, निष्ठा और हिम्मत से साथ पूरा किया करते थे. उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे प्रसंग सामने आते हैं, जो इस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कुशल प्रशासक के जीवन को समझने में सहायक हैं.
एक किसान परिवार में जन्मे वल्लभ भाई पटेल जब छोटे थे, तब अपने पिताजी के साथ खेत पर जाया करते थे. एक दिन जब उनके पिताजी खेत में हल चला रहे थे तो वल्लभ भाई पटेल उन्हीं के साथ चलते-चलते पहाड़े याद कर रहे थे. उसी दौरान उनके पांव में एक बड़ा सा कांटा चुभ गया किन्तु वे हल के पीछे चलते हुए पहाड़े कंठस्थ करने में इस कदर लीन हो गए कि उन पर कांटा चुभने का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा. जब एकाएक उनके पिताजी की नजर उनके पांव में घुसे बड़े से कांटे और बहते खून पर पड़ी तो उन्होंने घबराते हुए बैलों को रोका और बेटे वल्लभ भाई के पैर से कांटा निकालते हुए घाव पर पत्ते लगाकर खून बहने से रोका. बेटे की यह एकाग्रता और तन्मयता देखकर वे बहुत खुश हुए और जीवन में कुछ बड़ा कार्य करने का आशीर्वाद दिया.
वल्लभ भाई पटेल वकालत की पढ़ाई करने के लिए सन् 1905 में इंग्लैंड जाना चाहते थे लेकिन पोस्टमैन ने उनका पासपोर्ट और टिकट उनके भाई विठ्ठल भाई पटेल को सौंप दिए. दोनों भाइयों का शुरूआती नाम वी. जे. पटेल था, ऐसे में बड़ा होने के नाते उस समय विट्ठल भाई ने स्वयं इंग्लैंड जाने का निर्णय लिया. वल्लभ भाई पटेल ने बड़े भाई के निर्णय का सम्मान करते हुए न केवल बड़े भाई को अपना पासपोर्ट और टिकट दे दिया बल्कि इंग्लैंड में रहने के लिए उन्हें कुछ धनराशि भी भेजी.
सरदार पटेल का जीवन कितना सादगीपूर्ण था और उनका स्वभाव कितना सहज तथा नम्र था, यह इस किस्से से आसानी से समझा जा सकता है. सरदार पटेल उन दिनों भारतीय लेजिस्लेटिव असेंबली के अध्यक्ष थे. असेंबली के कार्यों से निवृत्त होकर एक दिन जब वे घर के लिए निकल ही रहे थे, तभी एक अंग्रेज दम्पत्ति वहां पहुंचा, जो विदेश से भारत घूमने के लिए आया था. सरदार पटेल सादे वस्त्रों में रहते थे और उन दिनों उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी. अंग्रेज दम्पत्ति ने इस वेश में देखकर उन्हें वहां का चपरासी समझ लिया और असेंबली में घुमाने के लिए कहा. सरदार पटेल ने बड़ी ही विनम्रता से उनका यह आग्रह स्वीकार करते हुए उन्हें पूरे असेंबली भवन में घुमाया. इससे खुश होकर दम्पति ने सरदार पटेल को बख्शीश में एक रुपया देने का प्रयास किया लेकिन सरदार पटेल ने अपनी पहचान उजागर न करते हुए विनम्रतापूर्वक लेने से इन्कार कर दिया. अगले दिन जब असेंबली की बैठक हुई तो वह अंग्रेज दम्पत्ति लेजिस्लेटिव असेंबली की कार्रवाई देखने के लिए दर्शक दीर्घा में पहुंचा और सभापति के आसन पर बढ़ी हुई दाढ़ी तथा सादे वस्त्रों वाले उसी शख्स को देखकर दंग रह गया. वह मन ही मन ग्लानि से भर उठा कि जिस शख्स को चपरासी समझकर उन्होंने उसे असेम्बली घुमाने के लिए कहा, वो कोई और नहीं बल्कि खुद इस असेंबली के अध्यक्ष हैं. अंग्रेज दम्पत्ति सरदार पटेल की सादगी, सहज स्वभाव और नम्रता का कायल हो गया और उसने असेम्बली की कार्रवाई के बाद सरदार पटेल से क्षमायाचना की. एकीकृत भारत की निर्माता यही महान् शख्सियत 15 दिसम्बर 1950 को चिरनिद्रा में लीन हो गई.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा सामयिक मामलों के विश्लेषक हैं.)


RECENT NEWS

नाबार्ड सहकार हाट का हुआ विधिवत समापन
कल्ट करंट डेस्क |  21 Dec 2025  |  41
नौसेनाओं का नव जागरण काल
संजय श्रीवास्तव |  01 Dec 2025  |  35
SIR: प. बंगाल से ‘रिवर्स एक्सोडस’
अनवर हुसैन |  01 Dec 2025  |  34
पूर्वी मोर्चा, गहराता भू-संकट
संदीप कुमार |  01 Dec 2025  |  33
दिल्ली ब्लास्टः बारूदी त्रिकोण
संतोष कुमार |  01 Dec 2025  |  39
आखिर इस हवा की दवा क्या है?
संजय श्रीवास्तव |  01 Dec 2025  |  31
प्रेत युद्धः अमेरिका का भ्रम
जलज श्रीवास्तव |  30 Sep 2025  |  85
भारत के युद्धक टैंकःभविष्य का संतुलन
कार्तिक बोम्माकांति |  02 Sep 2025  |  104
भारत@2047 : रणनीति का दुर्ग
संजय श्रीवास्तव |  02 Sep 2025  |  125
गेम ऑन, पेरेंट्स ऑफ़ ?
कुमार संदीप |  02 Sep 2025  |  124
BMD का सवाल, सुरक्षा या सर्वनाश?
कार्तिक बोम्माकांति |  01 Aug 2025  |  146
भारत और नाटोः रक्षा सौदों की रस्साकशी
संजय श्रीवास्तव |  01 Aug 2025  |  120
To contribute an article to CULT CURRENT or enquire about us, please write to cultcurrent@gmail.com . If you want to comment on an article, please post your comment on the relevant story page.
All content © Cult Current, unless otherwise noted or attributed. CULT CURRENT is published by the URJAS MEDIA VENTURE, this is registered under UDHYOG AADHAR-UDYAM-WB-14-0119166 (Govt. of India)