फ्रांस में निर्दोषों का गला काटने वालों का भारत में साथ देनेवाले कौन?

श्रीराजेश

 |  03 Nov 2020 |   1039
Culttoday

अब यह तो सरासर ज्यादती ही कही जाएगी कि भारत से हजारों मील दूर फ्रांस में सरकार और कठमुल्लों के बीच चल रही तनातनी के खिलाफ भारत के मुसलमानों का एक वर्ग भी आग बबूला हो उठे . यहाँ के कठमुल्ले भी मुंबई, भोपाल, सहारनपुर वगैरह शहरों में भी फ़्रांस के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे हैं. इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि ये प्रदर्शनकारी गला काटने वाले आतंकियों के समर्थन में सड़कों पर उतर आए हैं.

सच में यह ग़ज़ब के लोग है. फ्रांस में मासूमों को मारा जा रहा है और भारत में ये विक्षिप्त लोग आंदोलन कर रहे है, वह भी कातिलों के हक में.  इस मसले पर कोई बहस तो नहीं हो सकती कि पैगंबर मोहम्मद का कार्टून बनाना सही नहीं है. पर क्या इसका जवाब मासूम लोगों की गर्दन काट कर ही दिया जाए ? गौर करें कि भोपाल में कांग्रेस विधायक के नेतृत्व में फ्रांस के खिलाफ एक रैली निकाली गई, वहीं मुंबई की गलियों को फ्रांसिसी राष्ट्रपति के पोस्टरों से पाट दिया गया. यह तो साफ है कि रैली और प्रदर्शन करने वाले खून खराबा करने वालों का खुलेआम साथ दे रहे है. क्या यह किसी सभ्य समाज में स्वीकार किया जा सकता है? तो क्या इसी को कहते हैं उदार इस्लाम का असली सामाजिक स्वरुप? अच्छी बात है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन सनकी लोगों पर सख्त एक्शन लेने का वादा किया है जो भोपाल की रैली में मौजूद थे.

इससे पहले भारत सरकार ने फ्रांस की हालिया घटनाओं पर रोष जताते हुए साफ कर दिया था कि आतंकवाद के खिलाफ जंग में भारत फ्रांस के साथ ही खड़ा है. फ्रांस के गिरिजाघर में हुए हमले पर प्रधाननंत्री नरेन्द्र मोदी यह पहले ही कह चुके हैं . अब सारी दुनिया को यह तो पता है ही कि भूमध्यसागरीय शहर नीस में गिरिजाघर में एक सिरफिरे कठमुल्ले हमलावर द्वारा चाकू से किए गए हमले में तीन निर्दोष लोगों की मौत हो गई थी. प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही कहा- ‘‘फ्रांस में एक गिरिजाघर में हुए हमले सहित हाल के दिनों में वहां हुई आतंकवादी घटनाओं की मैं कड़े शब्दों में निंदा करता हूं.'' उन्होंने कहा, ‘‘पीड़ित परिवारों और फ्रांस की जनता के प्रति हमारी गहरी संवेदनाएं हैं.”

यह कहना न होगा कि भारत का यह स्टैंड साबित करता है कि भारत आतंकवाद के मसले पर किसी भी कीमत पर समझौता करने को तैयार नहीं है. चूंकि भारत दशकों से आतंकवाद से बार-बार लहूलुहाल होता रहा है, इसलिए उसका इस्लामी चरमपंथ पर फ्रांस का साथ देना अति स्वाभाविक है. भारत को मित्र देश फ्रांस के राष्ट्रपति एमेनुअल मैक्रों का इस आड़े वक्त में साथ देना ही चाहिए था . आखिर फ्रांस भी तो पिछले कुछ वर्षों से बर्बर आतंकवादी हमले झेल रहा है. वहां पर बेरहमी से अनेकों मासूमों को मारा गया है.

फ्रांस की घटनाओं से पूरा विश्व स्तब्ध है. अब जरा देखिए कि भारत में प्रदर्शन करने वाले जाहिल लोग यह मांग करने लग रहे हैं कि भारत फ्रांस से बेहद आधुनिक और शक्तिशाली राफेल विमानों की अगली खेप न ले. जब भारत के दो शत्रु देश क्रमश: चीन और पाकिस्तान भारत को युद्ध की धमकियां दे रहे हैं तब ये सड़क छाप प्रदर्शनकारी भारत से अपने सीमाओं की रक्षा को ताक पर रखने की मांग कर रहे हैं. तो ये पाकिस्तान और चीन के हित की बात कर रहे हैं . ये देश के दुश्मन ही तो हैं. आपको पता है कि फ्रांस से 36 राफेल विमानों की पहली खेप भारत आ चुकी है . निश्चित रूप से राफेल लड़ाकू विमानों का भारत में आना हमारे सैन्य इतिहास में नए युग का श्रीगणेश है. इन बहुआयामी विमानों से वायुसेना की क्षमताओं में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे. राफेल विमान का उड़ान के दौरान प्रदर्शन श्रेष्ठ रहा है. इसमें लगे हथियार, राडार एवं अन्य सेंसर तथा इलेक्ट्रॉनिक युद्धक क्षमताएं लाजवाब माने जाते हैं. कहना न होगा राफेल के आने से भारतीय वायुसेना को बहुत ताकत मिली है. लेकिन, ये कठमुल्ले भारत की ताकत कम करने के पक्ष में हैं . यह देशद्रोह का प्रदर्शन नहीं है तो क्या है . कुछ सिरफिरों को छोड़ भारत की 130 करोड़ जनता यह कैसे स्वीकारेगी ?

फ्रांस की घटनाओं को लेकर दुनिया भर के देशों का आतंकवाद पर रूख साफ होने वाला है. अब पता चल जाएगा कि कौन सा देश या समाज आतंकवाद का साथ देता है और कौन इससे लड़ता है. भारत के अभी तक के स्टैंड से फ्रांस संतुष्ट है. प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बाद भारत में फ्रांस के राजदूत एमेनुअल लिनेन ने भारत का आभार जताया और कहा कि दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ जंग में एक-दूसरे का सहयोग कर सकते हैं.

भारत के भरोसे का मित्र फ्रांस

दरअसल भारत- फ्रांस के बीच घनिष्ठ संबंध इसलिए स्थापित हुए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बीच निजी मित्रवत संबंध बन चुके हैं. मोदी विगत मार्च, 2018 में फ्रांस की यात्रा पर गए थे. तब फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा था कि भारत और फ्रांस ने आतंकवाद और कट्टरता से निपटने के लिए मिलकर काम करने का फैसला किया है. रक्षा के क्षेत्र में भी भारत और फ्रांस के रिश्ते चट्टान की तरह हैं. फ्रांस भारत के सबसे भरोसे का रक्षा साझेदारों में से एक देश है. दोनों देशों के रक्षा उपकरणों और उत्पादन में संबंध भी मजबूत हुये हैं. याद रखा जाए कि रक्षा क्षेत्र में फ्रांस भारत की मेक इन इंडिया योजना का समर्थन करता रहा है.

 बच न पाएं अस्थिरता फैलाने वाले 

भारत-फ्रांस के इतने घनिष्ठ संबंधों के आलोक में भारत को उन तत्वों पर सख्ती तो दिखानी ही होगी जो भारत में मजहब के नाम पर हिंसा और अस्थिरता फैलाने की चेष्टा कर रहे हैं. यह मान कर चलिए कि यदि कठमुल्लों की लगाम नहीं कसी गई तो भारत के लिए भी बड़ा संकट मंडराने लगेगा. यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि क्या भोपाल के इकबाल मैदान में कुछ ही घंटों में जुटी भीड़ का आयोजक कांग्रेस के विधायक आरिफ मसूद को अपने प्रदेश और राष्ट्रीय नेताओं का भी समर्थन हासिल था या नहीं ? कोरोना काल में बिना इजाजत इस तरह की रैली कैसे निकाली गई? साफ है कि ऱैली के आयोजक और उसमें शामिल लोगों पर कस कर चाबुक चले . राहुल और सोनिया स्पष्ट करें कि आरिफ मसूर के प्रदर्शन से वे सहमत हैं अथवा नहीं ? मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  ने  सही कहा है  'मध्य प्रदेश शांति का टापू है. इसकी शांति को भंग करने वालों से हम पूरी सख्ती से निपटेंगे. किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह कोई भी हो.'

इस बीच,फ्रांस में अध्यापक की उसके ही मुस्लिम छात्र द्वारा की गयी हत्या पर शायर मुनव्वर राणा द्वारा इस हत्या को औचित्यपूर्ण ठहराने के संबंध में दिया गया बयान, निंदनीय, शर्मनाक और असंवैधानिक है. किसी भी प्रकार से मानव हत्या के अपराध को औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता है, जो वे खुलेआम कर रहे हैं . आस्था से हुआ आहत भाव कितना भी गंभीर हो, पर उसकी प्रतिक्रिया में की गयी किसी मनुष्य की हत्या एक हिंसक और बर्बर आपराधिक कृत्य ही तो है. यह जो नहीं समझ पा रहा है वह इंसान तो नहीं ही है, बाकि जो कुछ भी कह लें आप.

अगर आहत भाव पर ऐसी हत्याओं का बचाव किया जाएगा और उनको औचित्यपूर्ण ही ठहराया जाएगा तो आहत होने पर हत्या या हिंसा की हर घटना औचित्यपूर्ण ठहराई जाने लगेगी. फिर कानून के शासन का कोई मतलब नहीं रह जायेगा. 

यह सच है कि इस्लाम को सबसे ज़्यादा नुकसान खुद कट्टरपंथी  मुसलमान  पहुंचा रहे हैं. ये अंधकार से निकलना ही नहीं चाहते. फ्रांस की घटनाओं पर सड़कों पर उतरे मुसलमान कब बेहतर शिक्षा, सेहत और रोजगार जैसे सवालों पर प्रदर्शन करेंगे.

पाकिस्तान में जन्मे और कनाडा में रह रहे विद्वान, लेखक और विचारक तारिक पतेह ठीक ही कहते हैं . सारी समस्या उन अनपढ़ कठमुल्लों की वजह से है जो “अल्ला के इस्लाम को मुल्ला के इस्लाम” में बदलने पर आमदा हैं . इनसे सबको सावधान रहना होगा और ख़त्म करना होगा .

 (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

 


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