आसान नहीं है गुर्जर आरक्षण की राह
जलज वर्मा
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12 Nov 2020 |
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राजस्थान में गुर्जर आरक्षण को लेकर आन्दोलन तेज है. गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी बैंसला का कहना है कि दो वर्षों से समाज को सिर्फ आश्वासन मिल रहा है, इसलिए मजबूरी में उन्हें आन्दोलन का रास्ता अपनाना पड़ा. हालांकि एक नवम्बर से जारी इस आन्दोलन से पहले ही गुर्जर समाज इस आन्दोलन को लेकर दोफाड़ हो गया है, जिनमें से एक खेमा 31 अक्तूबर को सरकार के साथ कुछ बिन्दुओं पर सहमति बनने के बाद समाज हित में आन्दोलन खत्म करने की अपील कर रहा है तो कर्नल बैंसला के नेतृत्व में दूसरा खेमा आन्दोलन को उग्र रूप देने पर उतारू है. राज्य में एमबीसी (मोस्ट बैकवर्ड कास्ट) की भर्तियों सहित 6 सूत्रीय मांगों को लेकर शुरू हुए गुर्जरों के इस आन्दोलन की कमान कर्नल बैंसला के पुत्र विजय बैंसला संभाले हुए हैं, जिनके नेतृत्व में गुर्जर समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रेलवे ट्रैकों पर डटे हैं और कुछ जगहों पर फिश प्लेटें उखाड़ दी गई हैं.
राजस्थान में गुर्जर आन्दोलन की रूपरेखा 17 अक्तूबर को उसी समय तय हो गई थी, जब भरतपुर में हुई महापंचायत में गुर्जर समुदाय ने 6 मांगों को लेकर हुई महापंचायत में सरकार को एक नवम्बर तक का अल्टीमेटम दिया था. उस महापंचायत में 80 गांवों के पंच पटेल शामिल थे और उस दौरान कर्नल किरोड़ी बैंसला ने एक नवम्बर तक मांगें नहीं माने जाने पर आन्दोलन करने और चक्का जाम करने की चेतावनी दी थी. गुर्जर समाज की मांगों की बात करें तो उनकी प्रमुख मांगों में एमबीसी आरक्षण को केन्द्र की 9वीं अनुसूची में शामिल करने, समझौते और चुनावी घोषणापत्र में वादों के मुताबिक बैकलॉग भर्तियां निकालने और सभी भर्तियों में पांच फीसदी आरक्षण का लाभ देने, एमबीसी कोटे से भर्ती हुए 1252 कर्मचारियों को नियमित करने, पहले हुए गुर्जर आन्दोलनों में मारे गए युवाओं के परिजनों को नौकरी और मुआवजा देने, आन्दोलन के तहत दर्ज मुकद्दमे वापस लेने, देवनारायण बोर्ड गठन करने जैसी मांगें शामिल हैं.
हालांकि राजस्थान के खेलमंत्री अशोक चांदना का कहना है कि गुर्जर समाज की ओर से 6 बिन्दुओं को लेकर वार्ता होनी थी लेकिन जब सरकार और गुर्जर समाज के प्रतिनिधिमंडल के बीच वार्ता हुई तो उनकी मांगें 14 बिन्दुओं तक पहुंच गई. उनके मुताबिक गुर्जर समाज की अन्य जो भी मांगें हैं, सरकार उन्हें भी जल्द ही पूरा करेगी. राजस्थान सरकार द्वारा 13 फरवरी 2019 को विधानसभा में एक बिल पारित कराकर राज्य में गुर्जर सहित पांच जातियों को पांच फीसदी आरक्षण का प्रावधान करते हुए केन्द्र से इस व्यवस्था को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल करने की अपील की गई थी. राजस्थान पिछड़ा वर्ग अधिनियम 2017 के संशोधन विधेयक के रूप में गुर्जर, बंजारा, बालदिया, लबाना, गाडि़या लोहार, गाडोलिया, राईका, रैबारी, देवासी, गडरिया, गाडरी व गायरी जातियों के लिए इस आरक्षण का प्रावधान किया गया था लेकिन गुर्जर नेताओं का कहना है कि पिछले दो वर्षों से उन्हें सरकार की ओर से केवल आश्वासन मिल रहा है.
जहां तक राजस्थान में आरक्षण के लिए गुर्जरों के आन्दोलन की बात है तो वर्ष 2006 से अब तक पिछले 14 वर्षों में गुर्जर समुदाय कई बार आन्दोलन का रास्ता अपना चुका है. सबसे पहले 2006 में गुर्जरों को अलग से आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर गुर्जरों ने आन्दोलन किया था. गुर्जरों को एसटी में शामिल करने की मांग पर शुरू हुए उस आन्दोलन के दौरान कुछ स्थानों पर रेल पटरियां उखाड़ डाली गई थी, जिसके बाद तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा उन्हें आरक्षण देने के लिए एक कमेटी बनाई गई लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला. 2007-08 में गुर्जर आन्दोलन हिंसक होने के कारण आन्दोलनकारियों पर सख्ती के चलते 70 से भी ज्यादा लोग पुलिस और सुरक्षा बलों की गोलियों का निशाना बनकर मौत के मुंह में समा गए थे. तत्पश्चात् भाजपा सरकार द्वारा गुर्जर समुदाय को विशेष पिछड़ा वर्ग (एसबीसी) कोटे के तहत पांच प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया गया किन्तु सरकार का वह फैसला राजस्थान हाईकोर्ट में अटक गया. दरअसल उस समय गुर्जरों के लिए अलग से पांच फीसदी आरक्षण दिए जाने पर आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण के लिए तय कुल 50 फीसदी की तय सीमा को पार कर गया था.
2010 में गुर्जर आन्दोलन ने फिर जोर पकड़ा तो गुर्जर समुदाय के दबाव में कांग्रेस सरकार ने उन्हें पांच फीसदी आरक्षण देने का वायदा किया. चूंकि आरक्षण का मामला पहले से ही अदालत में था, इसलिए गुर्जर समुदाय को अति पिछड़ा श्रेणी के तहत एक फीसदी आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया क्योंकि उससे ज्यादा आरक्षण दिए जाने पर वह कुल आरक्षण की 50 फीसदी कानूनी सीमा से ज्यादा हो रहा था. 2015 में फिर आन्दोलन हुआ और दबाव में आकर वसुंधरा सरकार द्वारा विधानसभा में एसबीसी विधेयक पारित कर एक नोटिफिकेशन जारी कर गुर्जर सहित पांच जातियों को एसबीसी आरक्षण का लाभ दे दिया गया. हालांकि गुर्जर समुदाय को करीब 14 माह तक उसका लाभ मिला भी किन्तु कुल आरक्षण 54 फीसदी हो जाने के चलते राजस्थान हाईकोर्ट ने उसे खत्म कर दिया.
बार-बार होते रहे गुर्जर आन्दोलनों के चलते सरकारों द्वारा पांच बार आरक्षण दिए जाने के बावजूद इस समुदाय को आरक्षण नहीं मिल सका. सबसे पहले तत्कालीन भाजपा सरकार ने 2008 में गुर्जरों को 5 फीसदी और सवर्णों को 14 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था, जो जुलाई 2009 में लागू किया गया था किन्तु उस पर राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगा दी गई थी. उसके बाद कांग्रेस सरकार द्वारा गुर्जर समुदाय को विशेष पिछड़ा वर्ग कोटे में 5 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया गया और जुलाई 2012 में पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा 5 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई लेकिन मामला पहले से अदालत में लंबित होने के चलते एक फीसदी आरक्षण दिया गया. 22 सितम्बर 2015 को भाजपा सरकार द्वारा विधानसभा में बिल पारित कर 5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया, जिस प्रकार राजस्थान हाईकोर्ट ने 9 दिसम्बर 2016 को रोक लगा दी. 17 दिसम्बर 2017 को गुर्जर सहित पांच जातियों को एक फीसदी आरक्षण का बिल विधानसभा में पारित किया गया. इसी एक फीसदी आरक्षण का लाभ गुर्जर सहित पांच जातियों को अभी मिल रहा है लेकिन ये जातियां पांच फीसदी आरक्षण की मांग पर अडिग हैं.
फरवरी 2019 में विधानसभा में बिल पारित कराकर भले ही प्रदेश सरकार ने गुर्जरों को आरक्षण दिए जाने का रास्ता साफ करने के संकेत दिए थे लेकिन प्रदेश सरकार के लिए यह रास्ता इतना आसान नहीं था. उस समय बिल पारित होने से कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा भी था कि पिछली बार पांच फीसदी आरक्षण को विधानसभा में पारित कर लागू करने का प्रयास किया गया था किन्तु हाईकोर्ट द्वारा उस पर रोक लगा दी गई थी और अब गुर्जर समाज की मांग संविधान संशोधन करके ही पूरी हो सकती है. उनका कहना था कि यह बात गुर्जर नेताओं को भी मालूम है, इसलिए उन्हें अपनी मांगों का ज्ञापन प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री को देना चाहिए. दरअसल संवैधानिक रूप से किसी भी राज्य में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तक ही हो सकती है, इसीलिए इस समुदाय को संविधान में संशोधन के बगैर आरक्षण दिया जाना संभव प्रतीत नहीं होता. अब यह केन्द्र सरकार पर निर्भर करता है कि वह गुर्जर सहित पांच जातियों को इनके सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को देखते हुए संविधान में संशोधन कर नवीं अनुसूची में शामिल करने का निर्णय लेती है या नहीं. जाहिर है कि गुर्जर नेताओं और सरकार के बीच भले ही विभिन्न बिन्दुओं पर जो भी सहमति बने लेकिन गुर्जर आरक्षण की राह अभी इतनी आसान नहीं दिखती.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा राजनीतिक विश्लेषक हैं)