आजकल मुख्य रूप से पंजाब और थोड़े बहुत हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश की एक भीड़ ने किसानों के आन्दोलन के नाम पर राजधानी दिल्ली में डेरा जमाया हुआ है. इनकी अपनी कुछ मांगें हैं. इन्हें अपनी बात रखने या मांगें मनवाने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से लड़ने का तो पूरा अधिकार प्राप्त है. सरकार भी आंदोलनकारी किसानों से बात कर रही है.
अब इस मामले में कनाडा को हस्तक्षेप करने का किसने अधिकार दे दिया, यह समझ से परे है. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो किसानों के आंदोलन का समर्थन कर रहे है. किस आधार पर कर रहे हैं? ट्रूडो कह रहे हैं कि "कनाडा दुनिया में कहीं भी किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा रहेगा." पर ट्रूडो यह क्यों भूल रहे हैं कि उनके देश में भारत विरोधी तत्व खुलकर बोलते खेलते हैं. यदि मोदी जी यह कहना शुरू करें कि विश्व भर में कहीं भी भारत विरोधी आतंकवादी होंगे तो वे उसे समूल नष्ट कर देंगे . तब डूडो महाशय कहाँ के रहेंगें . उन्हें आतंकवादियों के समर्थन के लिये विश्व में कौन समर्थन करेगा . उन्हें संभल कर कदम बढ़ाने होंगे. वे अपने देश के भारत विरोधी तत्वों पर बिना कोई कार्रवाई किए भारत को बिना मांगे हुए कोई ज्ञान नहीं दे सकते. उनकी हरकत से भारत का नाराज होना लाजिमी है. क्या भारत कनाडा के आंतरिक मामलों में कभी हस्तक्षेप करता है? नहीं ना. मैं आगे बढ़ने से पहले एक बात को साफ करना चाहता हूं कि जो किसान आंदोलन में खालिस्तानी कोण तलाश रहे हैं वे भी सही नहीं कर रहे हैं. इतना तो सही है कि कुछ खालिस्तानी और कुछ कश्मीरी आतंकवादी आन्दोलनकारियों के बीच हथियार सहित पकड़े गए हैं . पर आंदोलनकारी किसान हमारे हैं और हमारे देश के अन्न दाता है. यह भी सबको पता है कि इस आंदोलन में सिर्फ सिख किसान ही शामिल नहीं है. पर कनाडा में इन मेहनती किसानों के हक में जस्टिन ट्रूडो के अलावा वहां के रक्षा मंत्री हरजीत सिंह सज्जन ने भी खुलकर समर्धन दिया है. सज्जन की छवि एक घनघोर खालिस्तानी समर्थक की रही है. कुछ साल पहले वे भारत आए थे तब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो उनसे मुलाकात करने तक से ही इंकार कर दिया था. सज्जन, जिनकी हरकतें कतई सज्जन इंसान की नहीं रही हैं, ने कहा है "भारत में शांतिपूर्ण प्रदर्शन को कुचलने की खबरें बहुत परेशान करने वाली हैं. मेरे कई मतदाताओं के परिवार वहां रहते हैं और वे अपने करीबी लोगों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं." इससे बड़ा झूठा प्रचार और क्या हो सकता है .
भारत के किसानों के हक में दुबल हो रहे ट्रुडो और सज्जन भूल रहे हैं कि उनकी ये जिम्मेदारी है कि वे कनाडा में स्थित भारतीय हाई कमीशन की सुरक्षा को सुनिश्चित करें. पर वे इस मोर्च पर तो पूरे तौर पर असफल रहे हैं. वहां पर भारतीय मिशन पर लगातार भीड़ एकत्र हो रही है. इससे भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है.
कितने सज्जन है कनाडा के मंत्री सज्जन
हरजीत सिंह सज्जन ने अपने एक भारत दौरे के समय 1984 में सिख विरोधी दंगों जैसे संवेदशील सवाल को भी उठाया था. बड़बोले सज्जन ने एक अखबार के साथ एक साक्षात्कार में कहा था कि “1984 में भारत में सिख विरोधी दंगों से उनके देश में रहने वाले सिख बहुत आहत हुए थे. उन दंगों के संबंध में सोचकर मुझे लगता है कि हम कितने भाग्यशाली हैं कि कनाडा में रहते हैं, जिधर मानवाधिकारों को लेकर संवेदनशीलता बरती जाती है”. वे होते कौन हैं इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी करने वाले. उनपर आरोप लगते रहे है कि वे खालिस्तान समर्थकों के मित्र हैं.
उन्हें क्या पता नहीं है कि शत प्रतिशत फ्रांसीसी राज्य मॉन्ट्रियल में जब फ्रेंच आन्दोलन होते हैं तो उसे किस बेरहमी से कुचला जाता है.
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो साल पहले 2018 में भारत यात्रा पर आए थे. वे अमृतसर से लेकर आगरा और मुंबई से लेकर अहमदाबाद का दौरा करने के बाद जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिले तो मोदी जी ने उन्हें कायदे से समझा दिया था कि " भारत धर्म के नाम पर कट्टरता तथा अपनी एकता, अखंडता और संप्रभुता के साथ समझौता नहीं करेगा." जाहिर है कि उनका इशारा कनाडा में खालिस्तानी तत्वों की नापाक भारत विरोधी गतिविधियों से था. कनाडा की लिबरल पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो कहने को तो एक उदार देश से हैं. पर उन्हें भी यह समझ लेना होगा कि भारत भी एक उदार और बहुलतावादी देश है. भारत के लिए यह स्वीकार करना भी असंभव होगा कि कोई व्यक्ति या समूह भारत के आंतरिक मामलो में दखल दे या इसे तोड़ने की चेष्टा करें. इस मसले पर तो सारा देश ही एक है. उनकी उस भारत यात्रा के समय तब तगड़ा हंगामा हो गया था, जब पता चला था कि नई दिल्ली में कनाडा हाई कमीशन ने अपने प्रधानमंत्री के सम्मान में आयोजित एक कार्य्रक्रम में कुख्यात खालिस्तानी आतंकी जसपाल अटवाल को आमंत्रण भेजा है. अटवाल पर कनाडा में वर्ष 1986 में एक निजी दौरे पर गए पंजाब के मंत्री मलकीत सिहं सिद्धू पर जानलेवा हमला करने का आरोप साबित हो चुका है. हालांकि जब विवाद गरमाया तो उस निमंत्रण को वापस ले लिया गया.
खालिस्तानियों का गढ़ कनाडा
आज के दिन कनाडा में खालिस्तानी तत्व अति सक्रिय हैं. ये भारत को फिर से खालिस्तान आंदोलन की आग में झोंकना चाहते हैं. कनाडा की ओंटारियो विधानसभा ने 2017 में 1984 के सिख विरोधी दंगों को सिख नरसंहार और सिखों का राज्य प्रायोजित कत्लेआम करार देने वाला एक प्रस्ताव भी पारित किया था. ये सब गंभीर मामले हैं. कनाडा का या सार्वभौम गणतंत्र भारत के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के समान है. इस तरह की गतिविधियों से स्पष्ट है कि कनाडा में भारत के शत्रु बसे हुये हैं. ये खालिस्तानी समर्थक हैं. और क्या कोई भूल सकता है कनिष्क विमान का हादसा. सन 1984 में स्वर्ण मंदिर से आतंकियों को निकालने के लिए हुई सैन्य कार्रवाई के विरोध में यह हमला किया गया था. मांट्रियाल से नई दिल्ली जा रहे एयर इंडिया के विमान कनिष्क को 23 जून 1985 को आयरिश हवाई क्षेत्र में उड़ते समय, 9,400 मीटर की ऊंचाई पर, बम से उड़ा दिया गया था और वह अटलांटिक महासागर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. उस आतंकी हमले में 329 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक ही थे.
दरअसल हाल के सालों में भारत-कनाडा संबंधों में तनाव की एक मात्र वजह यही है कि वहां पर सरकार खालिस्तानी तत्वों पर लगाम नहीं लगा पा रही है. भारत सरकार इसके चलते कनाडा सरकार से खासी नाराज भी है. जस्टिन ट्रूडो की उस 8 दिन लंबी यात्रा के दौरान भारत ने अपनी नाराजगी जाहिर भी की. तब कनाडा सरकार चाहती थी कि जस्टिन ट्रूडो के अहमदाबाद दौरे के समय प्रधानमंत्री मोदी भी उनके साथ रहें. पर भारत ने कनाडा के इस आग्रह को विनम्रता पूर्वक ठुकरा दिया.
अब भारत प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से भारत इतनी अपेक्षा तो अवश्य ही करेगा कि वे न केवल खुद चुप रहे बल्कि सज्जन जैसे संदिग्ध मंत्री की जुबान पर भी ताला लगवाएँ. वे याद रख लें कि भारत अपने मसले हल करने में सक्षम भी है.
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)