भारतीय जनता पार्टी जैसे ही उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की अफ़रातफ़री शुरु हो गई. नाराज़ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कई जगह पर नारेबाज़ी की और पुतले फूंके.यही नहीं, राजनीति में परिवारवाद का विरोध करने वाले दल में कई नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट नहीं मिलने पर भी पार्टी में ज़बरदस्त विरोध हो रहा है. हालात यह है कि पांच दिन से ज़्यादा समय तक मंथन करने के बावजूद पार्टी अपनी दूसरी सूची अब तक जारी नही कर पाई है.हालांकि पार्टी को इसका अंदेशा पहले ही था. लिहाज़ा, पार्टी शुरू से ही टिकट बाँटने के मामले में फूंक फूंक कर क़दम रख रही थी.
लंबे इंतज़ार के बाद पार्टी ने 16 जनवरी को 149 सीटों से उम्मीदवारों की घोषणा की थी. पहली सूची में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के पोते समेत उनके चार रिश्तेदारों को टिकट दिया गया. कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह एटा से सांसद हैं. उनके बेटे संदीप सिंह को अतरौली से टिकट दिया गया है. वहीं, कल्याण सिंह के भतीजे देवेंद्र लोधी को भी कासगंज सीट से उम्मीदवार बनाया गया है. देवेंद्र लोधी कल्याण सिंह की जनक्रांति पार्टी से 2012 में विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. कल्याण सिंह के चचेरे भाई के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह को भी भाजपा ने अमापुर विधानसभा से अपना उम्मीदवार बनाया है. यही नहीं, बीजेपी ने एटा सदर से जिन वीरेंद्र वर्मा को टिकट दिया है, वे कल्याण सिंह के भांजे हैं. जानकारों का कहना है कि कल्याण सिंह के परिवार में अब शायद ही कोई ऐसा बचा हो जो जनप्रतिनिधि बनने की योग्यता रखता हो और बीजेपी ने उसे इसका मौक़ा न दिया हो.
वर्तमान सूची में ऐसे और भी कई नाम हैं. इसके अलावा पार्टी के कई और क़द्दावर नेता हैं, जो अपने परिवार वालों और रिश्तेदारों को टिकट दिलाने के लिए रात-दिन एक किए हुए हैं.ज़ाहिर है, टिकट बाँटने के इन तरीकों का विरोध अब खुल्लमखुल्ला हो रहा है. कई जगहों पर पुराने लोगों के टिकट कटने की वजह से बीजेपी के कार्यकर्ता सड़क पर उतर आए हैं और केंद्रीय नेतृत्व के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू कर दिया है. बरेली, मेरठ, नोएडा जैसी कई जगहों से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी हुई और पुतले फूंके गए. लखनऊ स्थित प्रदेश कार्यालय पर तो बुधवार को एक व्यक्ति ने आत्मदाह की भी कोशिश की. उन्हें बड़ी मुश्किल से बचाया गया.
कार्यकर्ताओं का आरोप है कि दूसरी पार्टियों से आने वालों को टिकट दिया गया है, जबकि पार्टी वफ़ादारों को नज़रअंदाज़ किया गया है. पार्टी के राष्ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा ने कहा, "उत्तर प्रदेश में इस समय बीजेपी की लहर चल रही है, ऐसे में एक सीट से टिकट के कई दावेदार हैं. लेकिन टिकट तो एक को ही मिलेगा. जो नाराज़ हैं, धीरे- धीरे वे भी स्थिति समझ लेंगे."
लेकिन, दूसरे दलों से आने वाले नेताओं में भी पहली लिस्ट के बाद काफ़ी बेचैनी है. ख़ासकर बहुजन समाज पार्टी से आए स्वामी प्रसाद मौर्य को लेकर अटकलें लग रही हैं कि वे कभी भी बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने फ़िलहाल इस पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है, लेकिन जानकार बताते हैं कि वे दूसरी लिस्ट का इंतज़ार कर रहे हैं. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्र कहते हैं, "स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा में आकर ही बहुत बड़ी ग़लती की थी. बीएसपी में उनका जो सम्मान में था, पता नहीं वे भाजपा में वैसी जगह की उम्मीद कैसे कर बैठे थे? वे भले ही कह रहे हों कि अमित शाह से उनकी तीस सीटों पर बात हुई थी, यदि उन्हें दो या तीन सीटों से ज़्यादा मिल जाती है तो पार्टी में बग़ावत के हालात पैदा हो जाएंगे."
सुभाष मिश्र कहते हैं कि यह हाल सिर्फ़ स्वामी प्रसाद मौर्य का ही नहीं है. कांग्रेस से आई रीता बहुगुणा जोशी समेत भाजपा में दाख़िल हुए दूसरे नेताओं का भी यही हाल है. यह पार्टी उन्हें पुरानी पार्टी वाला सम्मान नहीं दे रही है और अब ये नेता बेचैन हो रहे हैं.
भाजपा के सामने अभी दुविधा सिर्फ़ अपने नेताओं और दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को ही संतुष्ट करने की नहीं है, सहयोगी दलों को भी संतुष्ट करने की है. ख़ासकर अनुप्रिया पटेल गुट वाले 'अपना दल' और पासियों के नेता सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी के साथ तालमेल का मसला भी चुनौती बना हुआ है.
बहरहाल, अभी ढाई सौ से ज़्यादा सीटें बची हुई हैं. विरोध सबसे ज़्यादा बाहरी लोगों को टिकट दिए जाने का हो रहा है, लेकिन बाहरी लोगों का पार्टी में आना जारी है.