बिहार के चुनाव का शोर है, शोरगुल में नाम है जेल में बंद लालू प्रसाद यादव से लेकर हैदराबाद के ओवैसी तक का. मुख्य मुकाबला है नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच. और इस मुकाबले को दिलचस्प बनाने के लिए अलग से हैं उपेन्द्र कुशवाहा, पप्पू यादव और चिराग पासवान. गठबंधन और महागठबंधन का भी दांव खूब चला जा रहा है. हर पार्टी अपनी पूरी मेहनत कोरोना संकट के बावजूद झोंक रही है. राज्य में मानो कोरोना नाम की कोई बीमारी कभी आयी ही न रही हो, भीड़ जुट रही है चुनाव प्रचार हो रहा है. सारे दावेदारों और राजनीतिक दलों के बीच एक नाम ऐसा भी है जो सोशल मीडिया पर खूब छाया हुआ है, हालांकि पूरा बिहार भी अभी उनके नाम से वाकिफ नहीं है लेकिन जो भी जानता है वह सीधे उन्हें मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में ही जानता और पहचानता है. नाम है पुष्पम प्रिया चौधरी.
सुर्खियों में तब आईं जब वह लंदन से पढ़ाई करके बिहार लौंटी और सभी अखबारों के फ्रंट पेज में विज्ञापन देकर खुद को बिहार का अगला मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया. चुनाव में बहुत अधिक समय नहीं था फौरन ही पार्टी का ऐलान कर दिया और नाम रखा प्लूरल्स पार्टी. अब बिहार के विधानसभा चुनाव में ये प्लूरल्स पार्टी पूरी तरह से कूद पड़ी है. राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं.
खुद पार्टी की मुखिया पुष्पम प्रिया चौधरी दो सीटों से चुनाव लड़ रही हैं. ये दोनों सीट बांकीपुर और बिस्फी की है. पुष्पम प्रिया खुद ही अपनी पार्टी की लगाम थामे हुए हैं और हर दिन जनता के बीच पहुंच रही हैं. छह महीने पहले तक पु्ष्पम प्रिया को जानने वालों की तादाद गिनती की रही होगी लेकिन अब उनके कार्यकर्ता से लेकर विरोधी दलों तक के लोगों के बीच वह काफी पापूलर हैं. लेकिन ये पुष्पम प्रिया हैं कौन, इसको भी जानना ज़रूरी है.
पुष्पम प्रिया बिहार के दरभंगा जिले की रहने वाली हैं. इऩके पिता विनोद चौधरी जेडीयू से एमएलसी रह चुके हैं और नीतीश कुमार के करीबी रहे हैं. पुष्पम प्रिया ने लंदन से मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की है. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह किसी नौकरी का ख्वाब न देखकर बिहार की स्थिति को बदलने का ख्वाब देखती हैं. उनका कहना है कि अगर उनको मौका मिल जाए साल 2020 के चुनावी नतीजे के बाद मुख्यमंत्री बनने का तो वह 2025 तक बिहार को भारत के अगली पंक्ति वाला राज्य बना देंगी और साल 2030 तक बिहार की तुलना किसी अंतराष्ट्रीय देशों के राज्यों से की जा सकेगी.
प्लूरल्स प्राटी का लोगो है पंख लगा हुआ घोड़ा, पुष्पम प्रिया कहती हैं कि बिहार की तस्वीर यही घोड़ा बदलेगा और यही पंख बिहार को नई उड़ान देगा. पुष्पम प्रिया कैमरे के सामने आने के बजाए ज़मीन पर जाकर मेहनत करने को अहमियत देती हैं और इसके लिए उनकी तैयारी भी काफी रोचक है. इसीलिए उन्होंने अपना जनसंपर्क अभियान भी नीतीश कुमार के शहर नांलदा से शुरू किया था और उसी दौरान पु्ष्पम प्रिया ने कहा कि ये शुरूआत है बिहार के बदलने की, अब यहां विश्व स्तर की शिक्षा के व्यवस्था की बात होगी, कृषि में एक नई क्रांति पैदा होगी और बिहार में वैश्विक तरीके के उद्योग लगाए जाएंगे, बिहार के लोगों को बाहर जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी.
पुष्पम प्रिया लगातार हमलावर हैं बिहार के सियासी दलों के ऊपर लेकिन उनपर पहला वार हुआ है चुनाव आयोग का. चुनाव आयोग ने 28 प्लूरल्स उम्मीदवारों का नांमाकन खारिज कर दिया है. यानी पुष्पम प्रिया के 28 सिपहसालार पहले ही होड़ से बाहर हो गए हैं. पुष्पम प्रिया बिहार में क्या गुल खिला सकती हैं इसपर चर्चा करना जल्दबाजी होगी लेकिन जिस ऐजेंडें के साथ पुष्पम प्रिया मैदान में आई हैं वह शायद बिहार की राजनीति को बदलने की एक हल्की सी कोशिश हो.
पुष्पम प्रिया के पास राजनीतिक अनुभव तो नहीं है लेकिन विरासत ज़रूर है. उनके साथ कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी हो रही है. बिहार के कई जिलों के स्कूल, अस्पताल, गांव, चौपाल तक बराबर पुष्पम प्रिया दौड़ लगा रही हैं और बड़ी तेज़ी के साथ लोगों को अपनी पार्टी में जोड़ रही हैं. पुष्पम प्रिया को सिर्फ दिखावी समर्थन हासिल है या फिर सच में लोग उनके साथ आ रहे हैं ये तो चुनावी नतीजा बताएगा लेकिन पुष्पम प्रिया ने एक शानदार काम किया है जिसके लिए वह तारीफ के लायक हैं.
बिहार जैसे राज्य में जहां जातिवाद सिर चढ़ कर बोलता हो वहां वह जाति और धर्म से कोसों दूर रहना चाह रही हैं. इसीलिए जब टिकट का ऐलान किया गया और उनकी लिस्ट जारी की गई तो सभी उम्मीदवारों का धर्म बिहारी और जाति में उनका पेशा लिखा गया. ये एक अनुभव था लेकिन जातिवाद और धर्म के खेल को चुनाव से दूर रखने के लिए अच्छी कोशिश है.
चुनावी पंडितों का कहना है कि पुष्पम प्रिया अपनी सीट ही कैसे जीतेंगी यही एक बड़ा सवाल है. बिहार के चुनाव में किसी नए उम्मीदवार का बिना जातिवाद के सफल हो जाना टेढ़ी खीर होती है. पुष्पम प्रिया मेहनत तो खूब कर रही हैं लेकिन एक पार्टी को खड़ा करने के लिए अभी उन्हें और मशक्कत करने की ज़रूरत है. मुद्दों के साथ ज़मीन पर आना पड़ेगा सिर्फ जनसंपर्क से ही काम नहीं होने वाला है. पुष्पम प्रिया भले ही उतनी मजबूत न हों लेकिन उनके काम करने के तरीके से लगभग सभी पार्टियां प्रभावित हैं.