बिहार चुनाव में राजनीतिक दलों का जातीय समीकरण

जलज वर्मा

 |  18 Oct 2020 |   294
Culttoday

बिहार विधान सभा चुनावों में सभी राजनीतिक पार्टियां समाज के विभिन्न वर्गों को अपनी तरफ लुभाने और लामबंद करने में जुटी हैं. विपक्षी महागठबंधन की अगुवाई कर रहे तेजस्वी यादव जहां पिता लालू यादव के परंपरागत वोट बैंक माय (मुस्लिम यादव) के अलावा नीतीश कुमार के परंपरागत वोट बैंक ईबीसी (अति पिछड़ी जातियों) में सेंधमारी कर नए सामाजिक समीकरण गढ़ने की फिराक में लगे हैं, वहीं नीतीश राजद के माय समीकरण में सेंधमारी की कोशिशों में जुटे हैं. तेजस्वी ने नए सियासी समीकरण को साधते हुए भाजपा के भी वोट बैंक में भी सेंधमारी की कोशिश की है. तेजस्वी की कोशिश है कि वह माय के अलावा एक नया वोट बैंक भी तैयार करें और उसे अपने पाले में करें.

इसी कोशिश में पहली बार राजद ने कुल 144 सीटों में से 24 सीटों पर अति पिछड़ी जाति (ईबीसी) और एक दर्जन सीटों पर उच्च जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है. पिछले चुनावों में राजद ने ईबीसी को चार और उच्च जाति के दो उम्मीदवारों को ही टिकट दिया था. राजद ने 30 महिलाओं को भी टिकट दिया है. इसके अलावा राजद ने अपने परंपरागत वोट बैंक के दो वर्गों यादवों और मुस्लिमों को क्रमश: 58 और 17 टिकट दिए हैं. उधर, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के लिए 2005 और 2010 के चुनावों से ही ईबीसी और महादलित परंपरागत वोट बैंक रहे हैं. पार्टी ने इस बार 19 ईबीसी, 15 कुशवाहा और 12 कुर्मी उम्मीदवारों को टिकट दिया है. नीतीश कुमार ने 17 अनुसूचित जाति के लोगों को भी चुनावी टिकट दिया है. जेडीयू ने 11 मुस्लिमों और 18 यादवों को टिकट देकर माय समीकरण में घुसपैठ की कोशिश की है.

राज्य में 26 फीसदी ओबीसी और 26 फीसदी ईबीसी का वोट बैंक है. ओबीसी में बड़ा हिस्सा यादवों का है जो 14 फीसदी के करीब है. यादवों को राजद का परंपरागत वोट बैंक समझा जाता है. इसके अलावा ओबीसी में 8 फीसदी कुशवाहा और 4 फीसदी कुर्मी वोट बैंक है. इन दोनों पर नीतीश कुमार का प्रभाव है. वैसे उपेंद्र कुशवाहा भी आठ फीसदी कुशवाहा समाज पर प्रभाव का दावा करते हैं. इनके अलावा 16 फीसदी वोट बैंक मुस्लिमों का है. मौजूदा सियासी समीकरण में इस वोट बैंक पर राजद का प्रभाव दिखता है लेकिन जेडीयू भी उसे अपने पाले में करने की कोशिशों में जुटी है. पहले भी माय समीकरण का बड़ा हिस्सा नीतीश को समर्थन दे चुका है.

बिहार में अति पिछड़ी जाति के मतदाताओं का हिस्सा 26 फीसदी के करीब है. इसमें लोहार, कहार, सुनार, कुम्हार, ततवा, बढ़ई, केवट, मलाह, धानुक, माली, नोनी आदि जातियां आती हैं. पिछले चुनावों में ये अलग-अलग दलों को वोट करते रहे हैं लेकिन 2005 के बाद से इनका बड़ा हिस्सा नीतीश के साथ रहा है. अब तेजस्वी इसे तोड़ने की कोशिश में जुटे हैं. 2014 और 2019 के चुनावों में इस समूह का झुकाव बीजेपी की तरफ था.

राज्य में दलितों का वोट परसेंट 16 फीसदी के करीब है. इनमें पांच फीसदी के करीब पासवान हैं बाकी महादलित जातियां (पासी, रविदास, धोबी, चमार, राजवंशी, मुसहर, डोम आदि) आती हैं, जिनका करीब 11 फीसदी वोट बैंक है. पासवान को छोड़कर अधिकांश महादलित जातियों का झुकाव भी 2010 के बाद से जेडीयू की तरफ रहा है. तेजस्वी इसे भी तोड़ने की कोशिश में लगे हैं. पासवान का झुकाव लोजपा की तरफ शुरू से ही रहा है.

राज्य में 15 फीसदी वोट बैंक उच्च जातियों (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ) का है. भाजपा और कांग्रेस का फोकस सवर्णों पर रहा है लेकिन पहली बार राजद ने इसमें भी सेंधमारी की कोशिश की है और दर्जन भर टिकट उच्च जाति के उम्मीदवारों को दिए हैं. जेडीयू ने भी 10 भूमिहार, 7 राजपूत और दो ब्राह्मणों को टिकट दिया है.उधर, भाजपा भी ईबीसी और यादवों को अधिक टिकट देकर रिझाने की कोशिशों में जुटी है. यानी सभी दल एक-दूसरे के परंपरागत वोट बैंक में सेंधमारी कर रहे हैं. ऐसे में जो दल मतदाताओं को लामबंद कर पाने में सफल रहेगा, जीत उसी की होगी.


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