राष्ट्रपति कोई बने, भारत-अमेरिका तो रहेंगे करीब ही

श्रीराजेश

 |  07 Nov 2020 |   517
Culttoday

अब तो यह निश्चित हो गया कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस के दिन पूरे हो गए हैं. वैसे तो ट्रंप अपने शासन काल में भारत के कमोबेश मित्र ही बने रहे. हालांकि वे बीच-बीच में भारत को लेकर सनकी भरे बयान भी देते रहते थे. उन्हें याद किया जाएगा कि वे कोरोना संकट को ठीक ढंग से सम्भाल नहीं सके थे. ट्रंप ने कोरोनो वायरस महामारी को अमेरिका की एक त्रासदी में बदल दिया. वे अक्सर मास्क नहीं पहनते थे और इस कारण वे स्वयं कोरोना के शिकार भी हुए. उनका कार्यकाल बेहद रद्दी सा ही रहा, यह ज़्यादातर विश्लेषकों का मानना रहा . जिस अमेरिका के राष्ट्रपति पद को अब्राहम लिंकन, रूजवेल्ट ,  कैनेडी, बराक ओबामा जैसी बुलंद शख्सियतें राष्ट्रपति पद को सुशोभित कर चुकी हों,  वहां पर ट्रंप जैसे हल्के मिज़ाज के इंसान का अमेरिका का राष्ट्रपति बनना भी तो कोई सामान्य बात नहीं ही थी.

बहरहाल एक बात तो शीशे की तरह साफ है कि भारत-अमेरिका के संबंध तो  भविष्य में भी मधुर ही बने ही रहेंगे. दोनों देशों ने विश्व के महानतम प्रजातंत्रो की हैसियत से एक-दूसरे पर सदा भरोसा ही  किया है. दोनों के संबंधों में खुलापन और स्पष्टता है. कुछ मसलों पर दोनों देश कभी - कभी  असहमत भी हुए हैं. लेकिन, सच्चे मित्र के रूप में दोनों हमेशा से एक-दूसरे की बातों को सम्मानपूर्वक स्वीकार भी  करते रहे हैं, क्योंकि दोनों के अधिकांश मूलभूत हित तो समान ही हैं. इस आपसी विश्वास का एक बड़ा आधार यू॰एस॰में रह रहे लाखों भारतीयों का कार्यकलाप और उनका व्यवहार भी रहा है . इस स्वीकृति ने इन्हें  असहमति के मध्य कार्य करने में समर्थ बनाया है.

रक्षा क्षेत्र में आए करीब

भारत- अमेरिका ने हाल ही में रक्षा क्षेत्र में कई प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर करके साबित कर दिया है कि दोनों के संबंध चट्टान की तरह मजबूत हैं. यह समझौता सूचनाओं के आदान-प्रदान की दिशा में नया आयाम स्थापित करेगा.दोनों देशों ने सैन्य साजो-सामान और सुरक्षित संचार के आदान-प्रदान के लिए जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इंफॉर्मेशन एग्रीमेंट (2002), लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम एग्रीमेंट (2016), कम्युनिकेशन कम्पेटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (2018) पर हस्ताक्षर ट्रम्प के कार्यकाल में ही किए हैं. ताजा करारों से अमेरिका अपने सैन्य सैटेलाइट के जरिये संवेदनशील भौगोलिक क्षेत्रों की अहम सूचनाएं और डेटा तुरंत ही भारत से साझा कर पाएगा.साथ ही भारत हिंद महासागर में चीनी युद्धपोतों की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने में भी सक्षम हो सकेगा. अगर फिर कभी बालाकोट की तरह सर्जिकल स्ट्राइक की जाती है तो भारत अपनी टारगेट की सफलता को सत्यापित करने के लिए अमेरिका से उपग्रह और अन्य तमाम उपलब्ध सैन्य  डेटा का उपयोग कर सकेगा. तो साफ है कि अमेरिका आगे भी भारत को सहयोग करता ही  रक्षा क्षेत्र में.

प्रवासी भारतीयों का योगदान

भारत- अमेरिका संबंधों को गति देनें में अमेरिका में बसे विशाल प्रवासी भारतीयों का भी अहम योगदान रहा है.  ये पूरी तरह से अमेरिकी जीवन से जुड़े हैं और अभी भी भारत के साथ निकट संबंध रखते हैं. भारतीय प्रवासियों ने अमेरिका में अनेकों सफल स्टार्टअप्स स्थापित किए हैं. वहां पर स्थापित कुल स्टार्टअप में से लगभग 33 प्रतिशत भारतीयों के ही हैं. यह प्रतिशत किसी भी अन्य देशों के प्रवासी समूहों से अधिक है. निश्चित रूप से भारतीयों और अमेरिकियों के बीच पारस्परिक आदान-प्रदान के मानवीय आकार ने इन अविश्वसनीय आंकड़ों में भरपूर योगदान किया है. अमेरिका में भारतीय बेहद मजबूत, सम्मानित, अनुशासित और समृद्ध प्रवासी  समूह  है.कमाई के मामले में तो भारतीय अमेरिकी सबसे धनी माने जाते हैं. भारतीय महिलाओं ने अमेरिकी महिलाओं को भी पछाड़ दिया है कमाई के स्तर पर. उनकी सालाना औसत आय अमेरिका में जन्मीं मांओं से दोगुनी से भी ज्यादा है. वे औसतन 51 हजार 200 डॉलर सालाना कमाती हैं जबकि मां बन चुकीं भारतीय महिलाओं की औसत आय सालाना एक लाख 4 हजार 500 डॉलर है. सारी सिलिकॉन वैली भारतीय पेशेवरों से ही भरी पड़ी है.सारा अमेरिका भारतीयों के ज्ञान और मेहनत का लोहा मानता है.इस बीच,डेमोक्रेटिक पार्टी की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस का चुनाव में जीतना भी सारे भारत के लिए एक ब़ड़ी खुशखबरी है. कमला हैरिस की मां श्रीमती श्यामला गोपालन ने दिल्ली के लेडी इरविन कॉलेज से 50 के दशक के अंत में ग्रेजुएशन किया था. कमला हैरिस के पुरखे तमिलनाडू से है. उनके उपराष्ट्रपति बनने से बेशक दोनों देशों के संबंधों को नई दिशा मिलेगी. कमला हैरिस  भारतीय-अफ्रीकी मूल की पहली ऐसी शख़्स हैं जो उप-राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाई गयी थीं. इस बार के चुनाव में भारतीय-अमेरिकी मतदाताओं की अहम भूमिका मानी जा रही थी. चुनाव प्रचार के दौरान डेमोक्रैट्स और रिपब्लिकन दोनों ही भारतीय मतदाताओं को लुभाने में और अपनी ओर करने में लगे हुए थे. हालांकि परंपरागत रूप से भारतीय-अमेरिकी डेमोक्रैट्स को ही समर्थन देते आए हैं.  यही नहीं,अमेरिकी चुनाव में डेमोक्रैटिक पार्टी की ओर से भारतीय मूल के चार नेताओं ने एक बार फिर से अपनी जीत दर्ज कर ली है. इनके नाम हैं- डॉक्टर एमी बेरा, रो खन्ना, प्रमिला जयपाल और राजा कृष्णमूर्ति.इससे पहले भारतीय मूल के रिकॉर्ड पाँच नेताओं ने अमेरिकी कांग्रेस (जिसमें सीनेट और हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव दोनों शामिल है) में सदस्य के तौर पर जनवरी 2017 में शपथ ग्रहण किया था. उस वक़्त इन चार के अलावा कमला हैरिस सीनेट के सदस्य के तौर पर चुनी गईं थीं, जबकि बाक़ी के चारों ने हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव के सदस्य के तौर पर शपथ ग्रहण किया था. इस बार भी ये चारों हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव के लिए ही चुने गए हैं.

तो यह मानकर ही चलें कि वाशिंगटन में सत्ता परिवर्तन का भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों पर कोई असर नहीं होगा. दोनों देशों के संबंध उस दायरे से कहीं आगे जाते हैं, जब सत्ता परिवर्तन का असर संबंधों पर होता है.भारत और अमेरिका स्वाभाविक और परम्परागत साझेदार हैं ; क्योंकि वे एक दूसरे की जरूरतों के संदर्भ में पूरक हैं. भारत-अमेरिका पहले से कहीं बेहतर हैं . क्योंकि दोनों देश समुद्री सुरक्षा से लेकर आतंकवाद विरोधी लड़ाई तक कई मुद्दों पर मिलकर आगे बढ़ रहे हैं.

भारत-अब अमेरिका के साथ बराबरी का रिश्ते बनाना चाहता है. अमेरिका भी बदले हालात को समझ और स्वीकार भी कर चुका है. अब दोनों देशों को एक दूसरे की ताकत और एक दूसरे की जरूरत के बारे में कोई गलतफहमी भी नहीं है.

अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए अमेरिका को भारत का बड़ा और समृद्ग बाजार तो हर हालत में चाहिए. इसलिए अमेरिका किसी भी सूरत में भारत को इग्नोर नहीं कर सकता.एक दूसरी बड़ी बात यह है कीं चीन से मोहभंग होने के बाद अमेरिका को एक दूसरा स्थान चाहिये जहां अमरीकी कम्पनियाँ सस्ता माल बना सकें. जहां का संसाधन भी विस्वशनीय हो और श्रम संसाधन भी सस्ता . ऐसी जगह अमेरिका के पास दूसरी नहीं दिखती .लेकिन अब भारत भी बराबरी के मंच पर है.दोनों देशों के बीच बढ़ती साझेदारी के पीछे  आपसी व्यापारिक हित भी अहम हैं.वैसे बाईडेन की जीत पर पाकिस्तान में ख़ुशियाँ तो मनाईं  जा रही हैं. पर पाकिस्तानी बाईड़ेन को इमरान जैसा बेवक़ूफ़ समझने की भूल न करे! बहरहाल, भारत- अमेरिका के बीच रिश्ते तो सहयोग पूर्ण ही रहने वाले दिख रहे हैं.

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

 


RECENT NEWS

भारत का शक्ति प्रदर्शन: टैलिसमैन सेबर
आकांक्षा शर्मा |  16 Jul 2025  |  31
ब्रह्मोस युग: भारत की रणनीतिक छलांग
श्रेया गुप्ता |  15 Jul 2025  |  19
भारत बंद: संघर्ष की सियासत
आकांक्षा शर्मा |  10 Jul 2025  |  28
रणभूिम 2.0ः भारत की एआई शक्ति
आकांक्षा शर्मा |  30 Jun 2025  |  24
To contribute an article to CULT CURRENT or enquire about us, please write to cultcurrent@gmail.com . If you want to comment on an article, please post your comment on the relevant story page.
All content © Cult Current, unless otherwise noted or attributed. CULT CURRENT is published by the URJAS MEDIA VENTURE, this is registered under UDHYOG AADHAR-UDYAM-WB-14-0119166 (Govt. of India)