अरुणाचल प्रदेश में प्रस्तावित 11,000 मेगावाट की सियांग अपर मल्टीपर्पज़ प्रोजेक्ट (SUMP), 2024 में प्रस्तावित हुई थी और अब यह तीव्र विरोध का केंद्र बन चुकी है। विशेष रूप से आदि जनजाति के लोग इस मेगा-डैम को लेकर गहरी पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और आजीविका संबंधी चिंताएं जता रहे हैं।
यह परियोजना सियांग नदी पर नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (NHPC) द्वारा 300 मीटर ऊँचा डैम बनाने की योजना है। विरोध जुलाई 2024 में शुरू हुआ जब NHPC ने सर्वे के लिए सुरक्षा मांगी और CAPF व राज्य पुलिस की तैनाती बेजिंग, गेеку और परोंग जैसे गाँवों में की गई। इसका विरोध स्थानीय संगठनों जैसे सियांग इंडिजिनस फार्मर्स फोरम (SIFF), ईस्ट सियांग डाउनस्ट्रीम डैम अफेक्टेड पीपल्स फोरम और दिबांग रेसिस्टेंस द्वारा किया गया।
इस प्रोजेक्ट का विरोध इसलिए भी गहरा है क्योंकि यह 300 से ज्यादा गाँवों को डुबो सकता है, जिनमें वन्यजीवों के आवास और पारिस्थितिक तंत्र शामिल हैं। नदी में तलछट फंसने से कृषि भूमि को मिलने वाला उपजाऊ पदार्थ भी रुक जाएगा। बाढ़ और डैम फटने का खतरा भी बढ़ सकता है। आदि जनजाति नदी को पवित्र मानती है और इसे अपने देवता का निवास स्थान मानती है, इसलिए यह परियोजना उनकी संस्कृति और पहचान पर खतरा बनकर आई है। साथ ही, उनकी जीविका के स्रोत — खेती, मछली पकड़ना और नदी पर आधारित अन्य गतिविधियाँ — भी खतरे में पड़ जाएंगी। NHPC ने ₹325 करोड़ का CSR पैकेज देने की बात कही है, लेकिन स्थानीय लोगों को यह अपने नुकसान की भरपाई के लिए बेहद कम लगता है।
ऐसा विरोध इस क्षेत्र के लिए नया नहीं है। 1980 के दशक में ब्रह्मपुत्र बोर्ड द्वारा पहली बार सियांग पर डैम का प्रस्ताव आया था और तभी से विरोध चलता आ रहा है। राज्य सरकार ने 169 जलविद्युत परियोजनाओं के लिए MoUs पर हस्ताक्षर किए थे, जिनमें से 53 परियोजनाएँ स्थानीय विरोध या कंपनी विफलताओं के कारण रद्द हो चुकी हैं।
फिर भी सरकार इस परियोजना को "रणनीतिक रूप से आवश्यक" मानती है। 2023 में ग्राम प्रधानों को विरोध न करने का निर्देश जारी किया गया और 2024 में CAPF की तैनाती की गई। साथ ही, 2023 के वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम के तहत सीमावर्ती क्षेत्रों में आने वाली रणनीतिक परियोजनाओं को वन मंजूरी से छूट दे दी गई, जिससे SUMP को आगे बढ़ने में मदद मिली। सरकार पर विरोध को दबाने, लोगों को हिरासत में लेने और विरोध को रोकने के आरोप भी लगे हैं।
तो आखिर सरकार क्यों इस पर ज़ोर दे रही है? चीन तिब्बत में यारलुंग त्संगपो पर 60,000 मेगावाट की मेडोग डैम परियोजना पर काम कर रहा है। इससे भारत में पानी की उपलब्धता पर असर पड़ सकता है। भारत के लिए SUMP एक "डैम बनाम डैम" रणनीति का हिस्सा बन गई है — जिससे चीन के अचानक जल छोड़े जाने या पानी मोड़ने के असर को नियंत्रित किया जा सके।
सियांग डैम के विरोध में खड़े समुदाय केवल अपने पर्यावरण या आजीविका के लिए नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं। वहीं सरकार सुरक्षा, कूटनीति और भौगोलिक मजबूरी के नाम पर इस परियोजना को आगे बढ़ा रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थानीय अधिकारों के बीच संतुलन बनाना यहां सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।
रिया गोयल कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
निजी हैं और कल्ट करंट का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।